करीब 800 साल पुरानी मस्जिद को क्यों कहा जाता है 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा'

Adhai Din Ka Jhonpra: राजस्थान के साथ-साथ देश की सबसे प्राचीन मस्जिदों में शामिल 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' को बनाने के पीछे क्या है कहानी? आइए इस लेख में जानते हैं।

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राजस्थान का अजमेर शहर बेहतरीन इमारत, पैलेस और विश्व प्रसिद्ध फोर्ट का इतिहास अपने अंदर समेटे हुआ है। जैसे-नाहरगढ़ फोर्ट, तारागढ़ फोर्ट और अकबरी मस्जिद का इतिहास विश्व भर में प्रसिद्ध है। ये विश्व प्रसिद्ध धरोहर देखने में जितने खूबसूरत लगते हैं इनका इतिहास भी उससे कई गुणा अधिक रोचक माना जाता है।

अजमेर में मौजूद विश्व प्रसिद्ध मस्जिद 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' का इतिहास भी बेहद रोचक माना जाता है। यह कई लोग जानने की कोशिश करते रहते हैं कि इसका नाम इतना क्यों अलग है।

ऐसे में अगर आप भी अढ़ाई दिन का झोपड़ा का इतिहास जानना चाहते हैं और यहां घूमने जाना चाहते हैं तो फिर हम आपको इस मस्जिद के बारे में पूरी जानकारी बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं।

अढ़ाई दिन का झोपड़ा का इतिहास

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अढ़ाई दिन का झोपड़ा का इतिहास लगभग 800 साल से भी अधिक प्राचीन माना जाता है। इस मस्जिद को लेकर कहा जाता है कि कुतुब-उद-दीन-ऐबक 1199 ईस्वी में दिल्ली का पहला सुल्तान था और इसी के द्वारा इस मस्जिद का निर्माण करवाया गया था। कहा जाता है कि कुछ वर्षों बाद मस्जिद का पुनर्निर्माण हुआ और इसकी तस्वीर बदल गई।

इस मस्जिद को लेकर एक अन्य कहानी है कि तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गोरी द्वारा पृथ्वी राज चौहान III की हार के बाद मस्जिद का निर्माण किया गया था।

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अढ़ाई दिन का झोपड़ा नाम क्यों और कैसे पड़ा?

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यह लगभग हर कोई जानना चाहता है कि आखिर क्यों इस मस्जिद को अढ़ाई दिन का झोपड़ा के नाम से जाना जाता है। दरअसल, इस मस्जिद को लेकर यह कहा जाता है कि इस अद्भुत और खूबसूरत मस्जिद का निर्माण सिर्फ अढ़ाई दिन में कर दिया गया था, इसलिए इसका नाम भी अढ़ाई दिन का झोपड़ा रखा गया।(जैसलमेर के भुतहा फोर्ट्स)

इस मस्जिद को लेकर एक अन्य कहानी है कि उस समय मस्जिद के सामने अढ़ाई दिन का मेला (उर्स) आयोजित होता था, इसलिए कई लोग इसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा के नाम से जानते हैं।

अढ़ाई दिन का झोपड़ा को लेकर अन्य कहानी

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अढ़ाई दिन का झोपड़ा को लेकर अन्य कई कहानियां हैं। जी हां, इस मस्जिद को लेकर यह कहा जाता है कि यहां पहले मस्जिद नहीं बल्कि, संस्कृत विद्यालय और मंदिर हुआ करता था। जब बाहर से शासक अजमेर में पहुंचें तो उन्होंने विद्यालय और मंदिर को तोड़कर इस मस्जिद का निर्माण करवाया था। कई लोगों का मानना है कि मस्जिद की दीवार पर संस्कृत के शब्द देखे गए हैं।

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अढ़ाई दिन का झोपड़ा घूमने का समय

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अगर आप अढ़ाई दिन का झोपड़ा घूमना चाहते हैं तो आसानी से घूम सकते हैं। यहां आप सुबह 6 बजे से लेकर शाम 6 बजे के बीच कभी भी घूमने के लिए जा सकते हैं। आपको बता दें कि यहां घूमने के लिए किसी भी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता है।(दुनिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान)

अढ़ाई दिन का झोंपड़ा के आसपास में मौजूद अजमेर शरीफ की मजार, आनासागर झील और नारेली का जैन मंदिर जैसी बेहतरीन जगहों पर भी घूमने जा सकते हैं।

अढ़ाई दिन का झोपड़ा कैसे पहुंचें?

अढ़ाई दिन का झोंपड़ा तक पहुंचना बहुत ही आसान है। इसके लिए देश के किसी भी कोने से अजमेर रेलवे स्टेशन पहुंच सकते हैं। रेलवे स्टेशन से टैक्सी या कैब लेकर यहां आप घूमने के लिए जा सकते हैं। सबसे पास में किशनगढ़ हवाई अड्डा है। यहां से भी टैक्सी या कैब लेकर अढ़ाई दिन का झोंपड़ा घूमने जा सकते हैं।

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Image Credit:(@suttterstocks,wiki)

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