महाराष्ट्र के नागपुर से करीबन 40 किलोमीटर दूर स्थित रामटेक मंदिर प्रभु राम का अद्भुत मंदिर है। इस मंदिर को लेकर ऐसी कहानी है कि भगवान राम ने वनवास के दौरान इस स्थान पर चार महीने तक माता सीता और भगवान लक्ष्मण के साथ समय बिताया था। इसके अलावा माता सीता ने यहां पहली रसोई भी बनाई थी, उन्होंने खाना बनाने के बाद स्थानीय ऋषियों को भोजन कराया था। इस बात का वर्णन पद्मपुराण में भी किया गया है।
राम नवमी के विशेष अवसर पर इस मंदिर के आसपास मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग शामिल होने के लिए आते हैं। इसकी विशेषताओं की बात करें तो यह मन्दिर सिर्फ़ पत्थरों से बना है, जो एक दूसरे के ऊपर रखे हुए हैं। सैकड़ों वर्ष पुराना यह मंदिर जस का तस है, स्थानीय लोग इसके पीछे भगवान राम की कृपा बताते हैं। आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ ख़ास बातें।
मंदिर कम किला है रामटेक
एक छोटी पहाड़ी पर बने रामटेक मंदिर को गढ़ मंदिर भी कहा जाता है। इसके अलावा इसे सिंदूर गिरि भी कहते हैं। यह देखने में मंदिर कम क़िला अधिक लगता है, विशेष बात है कि इसके पूरब की ओर सुरनदी बहती है। रामटेक मंदिर का निर्माण राजा रघु खोंले ने एक क़िले के रूप में करवाया था। मंदिर के परिसर में एक तालाब भी है, जिसे लेकर ऐसी मान्यताएं है कि इस तालाब में पानी कभी कम या ज़्यादा नहीं होगा। हमेशा सामान्य जल स्तर होने की वजह से लोग काफ़ी हैरान होते हैं। यही नहीं ऐसा माना जाता है कि जब भी बिजली चमकती है तो मंदिर के शिखर पर ज्योति प्रकाशित होती है, जिसमें भगवान राम का अक्स दिखाई देता है।
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भगवान राम से मिले थे ऋषि अगत्स्य
रामटेक ही वह स्थान है, जहां भगवान राम और ऋषि अगत्स्य मिले थे। ऋषि अगत्स्य ने ना सिर्फ़ भगवान राम को शस्त्रों का ज्ञान दिया था बल्कि उन्हें ब्रह्मास्त्र भी प्रदान किया। जब श्रीराम ने इस स्थान पर हर जगह हड्डियों का ढेर देखा तो उन्होंने इस बारे में अगत्स्या से प्रश्न किया। तब उन्होंने बताया कि यह उन ऋषियों की हड्डियां हैं, जो यहां पूजा करते थे। यज्ञ और पूजा करते समय राक्षस विघ्न डालते थे, जिसे जानने के बाद श्रीराम ने प्रतिज्ञा ली थी, कि वह उनका विनाश करेंगे। यही नहीं ऋषि अगत्स्य ने रावण के अत्याचारों के बारे में भी भगवान राम को यहीं बताया था। उनके दिए गए ब्रह्मास्त्र के ज़रिए ही भगवान राम रावण का वध कर पाए थे।
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इस जगह पर कालिदास ने लिखी थी मेघदूत
रामटेक ही वह स्थान है, जहां पर महाकवि कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत लिखी थी। इसलिए इस जगह को रामगिरि भी कहा जाता है, हालांकि कालांतर में इसका नाम रामटेक हो गया। वहीं त्रेता युग में रामटेक में सिर्फ़ एक पहाड़ हुआ करता था। आज के दौर में यह मंदिर भगवान राम के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह ख़ूबसूरत जगह शहर के शोरगुल से अलग श्रद्धालुओं को सुकुन प्रदान करती है।
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