नवाबों का शहर जहां खाने से लेकर घूमने तक बहुत कुछ ऐसा है जिसे एक बार देखने या खाने के बाद आप उसे बार-बार देखना या खाना चाहेंगे। लखनऊ की कुछ जगहें ऐसी हैं जिसे देखे बिना आपको इस शहर को अलविदा नहीं कहना चाहिए।
नवाबों का शहर की धरोहर और इमारतें मुगलों के जमाने की हैं जो हर जगह फेमस हैं। अब इन सब से हट कर बॉलीवुड की कई फिल्मों में लखनऊ को बड़ी ही खूबसूरती के साथ दिखाया गया। अगर पहले की बॉलीवुड फिल्मों की बात की जाएं तो ‘Umrao Jaan’ में बहुत ही बेहतरीन तरीके से लखनऊ की लोकेशन को दिखाया गया है। अगर बाकी फिल्मों की बात की जाए तो Ishaqzaade, Bullett Raja, Dawaat-e-Ishq और Tanu Weds Manu में नवाबों के शहर को अच्छे से दिखाया गया है।
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आइए डालते हैं एक नजर नवाबों के शहर पर:
बड़ा इमामबाड़ा की तर्ज पर ही रूमी दरवाज़े का निर्माण भी अकाल राहत प्रोजेक्ट के अन्तर्गत किया गया था। नवाब आसफउद्दौला ने यह दरवाजा 1783 ई. में अकाल के दौरान बनवाया था ताकि लोगों को रोजगार मिल सके। अवध वास्तुकला के प्रतीक इस दरवाजे को तुर्किश गेटवे कहा जाता है। रूमी दरवाजा कांस्टेनटिनोपल के दरवाजों के समान दिखाई देता है। यहां आपको बता दें कि यह इमारत 60 फीट ऊंची है।
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यह इंडिया का सबसे ऊंचा घंटाघर है। यह घंटाघर 1887 में बनवाया गया था। इसे ब्रिटिश वास्तुकला के सबसे बेहतरीन नमूनों में से एक माना जाता है। 221 फीट ऊंचे इस घंटाघर का निर्माण नवाब नसीरूद्दीन हैदर ने सर जार्ज कूपर के आगमन पर करवाया था। वे संयुक्त अवध प्रान्त के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर थे।
सफेद बारादरी का निर्माण नवाब वाजिद अली शाह ने करवाया था। इसका निर्माण इमामबाड़े के रूप में उपयोग के लिए बनाया गया था। लखनऊ पर ब्रिटिश सरकार का राज कायम होने के बाद इसका उपयोग कोर्ट के रूप में किया जाने लगा।
सफेद पत्थर से बना यह खूबसूरत भवन टूरिस्ट्स को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस बारादरी में मशहूर उमराव जान फिल्म का मशहूर गाना भी फिल्माया जा चुका है।
बेगम हजरत महल पार्क के समीप सआदत अली खां और खुर्शीद जैदी का मकबरा है। यह मकबरा अवध वास्तुकला का शानदार उदाहरण हैं। मकबरे की शानदार छत और गुम्बद इसकी खासियत है।
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लक्ष्मण पार्क लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क के पास स्थित है। इस पार्क में लगी लक्ष्मण की विशालकाय प्रतिमा लखनऊ शहर के इतिहास का बखान करती नजर आती हैं।
ऐसा माना जाता है कि अयोध्या के राजा भगवान राम के भाई लक्ष्मण ने इस शहर को बसाया था जिसके कारण इसका नाम लखनऊ पड़ा। पार्क में लक्ष्मण की कई प्रतिमाएं हैं जो विशाल आकार की हैं।
इसी पार्क से सटा हुआ अमर शहीद राजा जय लाल सिंह पार्क स्थित है जो ब्रिटिश शासन में अवध के कलक्टर रहे जय लाल सिंह की स्मृति में बनवाया था।
यह इमामबाड़ा मोहम्मद अली शाह की रचना है जिसका निर्माण 1837 में किया गया था। इसे हुसैनाबाद इमामबाड़ा भी कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि मोहम्मद अली शाह को यहीं दफनाया गया था। इस इमामबाड़े में मोहम्मद की बेटी और उसके पति का मकबरा भी बना हुआ है। मुख्य इमामबाड़े की चोटी पर सुनहरा गुम्बद है जिसे अली शाह और उसकी मां का मकबरा समझा जाता है।
इस मकबरे के विपरीत दिशा में सतखंड नामक अधूरा घंटाघर है। 1840 में अली शाह की मृत्यु के बाद इसका निर्माण रोक दिया गया था। उस समय 67 मीटर ऊंचे इस घंटाघर की चार मंजिल ही बनी थी। मोहर्रम के अवसर पर इस इमामबाड़े की आकर्षक सजावट की जाती है।
गोमती नदी की सीमा पर बनी तीन इमारतों में मोती महल मुख्य है। इसे सआदत अली खां ने बनवाया था। मुबारक मंजिल और शाह मंजिल अन्य दो इमारतें हैं। नवाबों के लिए बालकनी से जानवरों की लड़ाई और उड़ते पक्षियों को देखने के लिए इन इमारतों को बनवाया गया था।
हुसैनाबाद इमामबाड़े के नॉर्थ में जामा मस्जिद स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण मोहम्मद शाह ने शुरू किया था लेकिन 1840 में उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने इसे पूरा करवाया।
जामा मस्जिद लखनऊ की सबसे बड़ी मस्जिद है। मस्जिद की छत के अंदरुनी हिस्से में खूबसूरत चित्रकारी देखी जा सकती है।
इस residency में ब्रिटिश शासन की स्पष्ट तस्वीरें पेश की गई हैं। सिपाही विद्रोह के समय यह residency ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेन्ट का भवन थी। यह ऐतिहासिक इमारत शहर के केन्द्र में स्थित हजरतगंज एरिया के करीब है। आपको बता दें कि यह residency अवध के नवाब सआदत अली खां द्वारा 1800 में बनवाई गई थी।
हुसैनाबाद इमामबाड़े के घंटाघर के करीब 19वीं शताब्दी में बनी यह पिक्चर गैलरी है। यहां लखनऊ के लगभग सभी नवाबों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं।
ये गैलरी लखनऊ के उस अतीत की याद दिलाती है जब यहां नवाबों का डंका बजता था।
लखनऊ की इस भूल भूलैया का नाम पूरे वर्ल्ड में फेमस है। इसे Bara Imambara के नाम से भी जाना जाता है। लखनऊ की इस ऐतिहासिक धरोहर का निर्माण नवाब आसिफ उद्दौला ने साल 1784 में कराया था। इस ऐतिहासिक भवन के निर्माण की कहानी भी बेहद दिलचस्प है।
ऐसा माना जाता है कि उस दौर में आये भयानक अकाल से परेशान लोगों को रोजगार और मदद मुहैया कराने के मकसद से नवाब ने इस ऐतिहासिक इमारत का निर्माण कराया था। भूल भुलैया की ही तर्ज पर अकाल राहत प्रोजेक्ट के तहत रूमी गेट का भी निर्माण करवाया गया था।
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