भगवान शिव के अंगूठे की प्रार्थना का क्या है रिवाज, भारत के इस हिस्से में होती है पूजा

भगवान शिव का वो मंदिर जहां होती है उनके अंगूठे की पूजा। जानें क्या है इस मंदिर का रिवाज। 

Shiva temple in mount abu

क्या आप अर्ध काशी के बारे में जानते हैं? अर्ध काशी किस जगह को कहा जाता है और वहां पर शिव के किस रूप की पूजा की जाती है? आज हम बात कर रहे हैं राजस्थान के इकलौते हिल स्टेशन माउंट आबू की जहां पर शिव का एक बहुत ही प्रसिद्ध धाम है। इस जगह पर इतने शिव मंदिर हैं कि इसे अर्ध काशी कहा जाता है। इस जगह को भले ही आप सिर्फ हिल स्टेशन के लिए ही जानते हों, लेकिन ये एक बहुत ही प्रसिद्ध स्थल है आस्था के लिए।

इस जगह पर एक मंदिर है जो ना सिर्फ पूरे भारत में बल्कि पूरे विश्व में अपनी एक खासियत के लिए प्रसिद्ध है। ये है अचलेश्वर महादेव मंदिर जिसे उसकी एकमात्र खासियत के लिए जाना जाता है। इस जगह भगवान शिव के अंगूठे की पूजा की जाती है और इसे बहुत ही लकी माना जाता है।

भगवान शिव के अंगूठे की पूजा का है रिवाज

ये मंदिर माउंट आबू शहर से लगभग 11 किलोमीटर दूर है और इसे अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। जहां एक ओर वाराणसी यानी काशी को बहुत ही महत्व दिया जाता है शिव की आराधना के लिए वहीं माउंट आबू को भी भगवान शिव का गढ़ माना जाता है। इस मंदिर में असल मायने में शिव की मूर्ति या फिर शिवलिंग की पूजा नहीं होती है बल्कि यहां शिव के पैर के अंगूठे की पूजा होती है। यहां पर भोलेनाथ का रूप उनके पैर के अंगूठे के रूप में विराजमान है।

achaleshwar mahadev

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क्या है इस मंदिर की मान्यता?

इस मंदिर की मान्यता कहती है कि भगवान शिव के पैर का अंगूठा इस जगह मौजूद है इसलिए ही माउंट आबू के पहाड़ अपनी जगह पर मौजूद हैं। अगर वो ना रहे तो पहाड़ भी स्थिर नहीं रहेंगे।

temple in mount abu

मंदिर में एक शिवलिंग बदलता है रंग

इस मंदिर में सिर्फ एक ही खासियत नहीं है बल्कि एक बात जिसके बारे में लोग आश्चर्य जताते हैं वो ये है कि इस मंदिर में एक शिवलिंग है जो दिन में तीन बार रंग बदलता है। सुबह लाल, दोपहर में केसरिया और रात में काला दिखने वाला ये शिवलिंग अलग ही दिखता है। इसके सामने नंदी की मूर्ति है जिसे बनाने में पांच अलग धातुओं का इस्तेमाल किया गया है।

mount abu nandi bhagwan

क्या है इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा?

मंदिर में शिव के अंगूठे की पूजा होती है ये तो हमें पता चल गया, लेकिन ये क्यों होती है इसके बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। पौराणिक मान्यता है कि हिमालय में जब शिव की आराधना भंग हुई तो अर्बुद पर्वत अपनी जगह से हिलने ललगा। उस पर्वत में नंदी भी थे और उन्हें कोई नुकसान ना पहुंचे इसलिए भगवान शिव ने अपने पैर का अंगूठा फैलाया और अर्बुद पर्वत स्थिर हो गया। इस तरह से नंदी भी बच गए और भगवान शिव का पदचिन्ह यहां हमेशा के लिए विराजित हो गया।

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शिव के पद चिन्ह के नीचे नहीं भरता पानी

जिस जगह यहां पर शिव का पदचिन्ह है वहां पर भोलेनाथ का एक और चमत्कार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसके नीचे मौजूद गड्ढे में कभी भी पानी नहीं भरता भले ही कितना भी पानी इसमें भर दिया जाए। जो पानी इसमें डाला जाता है वो कहां जाता है इसको लेकर अभी तक कोई भी जानकारी नहीं है।

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माना जाता है कि माउंट आबू में 108 से भी ज्यादा शिव मंदिर है। क्या आपने इससे पहले सुना था अचलेश्वर महादेव के मंदिर के बारे में? अपने जवाब हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।

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