रक्षाबंधन के त्योहार को भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन बहन अपने भाई को रक्षा का सूत्र बांधती है और भाई उसकी रक्षा का वचन लेता है। राखी के पर्व के लिए कुछ पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं जिनमें इस बात का जिक्र है कि कैसे माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर भगवान विष्णु को उनसे मांगा था।
मान्यता है कि तभी से यह पर्व हमारे बीच प्रसिद्ध हो गया। इस पर्व से जुड़े कई ऐसे रोचक तथ्य हैं जो इसे ख़ास बनाते है और भाई बहन के बीच प्रेम का प्रतीक बनाते हैं। इस साल रक्षाबंधन का पावन त्योहार 11 अगस्त को मनाया जाएगा। आइए अयोध्या के पंडित राधे शरण शास्त्री जी से जानें कि रक्षाबंधन के त्योहार में क्या खास है और इससे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है।
राजा बलि से जुड़ी रक्षा बंधन की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में जब राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे। उस समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को छलने के लिए वामन अवतार लिया और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। उस समय राजा बलि ने सोचा कि यह ब्राह्मण तीन पग में भला कितनी जमीन नापेगा और उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। देखते ही देखते वामन रुप धारण किए हुए विष्णु जी का आकार बढ़ने लगा और उन्होंने दो पग में ही सब नाप लिया।
उस समय तीसरे पग में राजा बलि ने स्वयं को ही सौंप दिया और विष्णु जी ने राजा बलि को पाताल लोक दे दिया। उस समय बलि ने भगवान विष्णु से एक वचन मांगा कि वो जब भी देखें तो सिर्फ विष्णु जी को ही देखें और विष्णु जी ने तथास्तु कहकर वचन को पूर्ण कर दिया। अपने वचन के अनुसार भगवान ने तथास्तु कह दिया और पाताल लोक में रहने लगे।
इस पर माता लक्ष्मी जी को अपने स्वामी विष्णु जी की चिंता होने लगी। उसी समय लक्ष्मी जी को देवर्षि ने एक सुझाव दिया जिसमें उन्होंने कहा कि वो बलि को अपना भाई बना लें और अपने स्वामी को वापस ले आएं। उसके बाद माता लक्ष्मी स्त्री का भेष धारण करके रोटी हुई पाताल लोक पहुंचीं।
इस पर राजा बलि ने उनके रोने का कारण पूछा उनके पूछने पर लक्ष्मी जी ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं, इसलिए में अत्यंत दुखी हूं। तब बलि ने कहा कि तुम मेरी धर्म बहन बन जाओ। इसके बाद लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपने स्वामी भगवान विष्णु को वापस मांग लिया। ऐसी मान्यता है कि उसी समय से रक्षाबंधन का त्योहार चलन में आया।
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श्रीकृष्ण और द्रौपदी से जुड़ी रक्षाबंधन की कथा
एक अन्य कथा के अनुसार श्री कृष्ण ने महाभारत में द्रौपदी को अपनी बहन के रूप में स्वीकार किया और इसकी कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने जब अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया, तब उनकी कनिष्ठा ऊंगली कट गई जिससे भगवान कृष्ण की उंगली से रक्त की धार बहने लगी।
उस समय द्रोपदी ने अपने साड़ी के चीर के एक टुकड़े को श्रीकृष्ण की ऊंगली पर बांध दिया। इसके बाद से ही श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन के रूप में स्वीकार किया और हर संकट की परिस्थिति में उनकी रक्षा करने का वचन दिया। उसी वचन की वजह से भरी सभा में श्री कृष्ण ने द्रौपदी को दुर्योधन के द्वारा चीर हरण होने से बचाया था।
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इस प्रकार रक्षाबंधन का त्योहार इन्हीं पौराणिक कथाओं की वजह से सदियों से चला आ रहा है और इसकी मान्यता बहुत खास है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए आप हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करें और जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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