दक्षिण भारत अपनी प्राकृतिक ख़ूबसूरती और संस्कृति के लिए काफ़ी मशहूर है। यहां कई ऐसे मशहूर मंदिर हैं, जहां लोग दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। बता दें कि साउथ में भगवान शिव के कई मंदिर हैं, जो अलग-अलग नामों से प्रचलित हैं। आज एक ऐसे ही शिव मंदिर के बारे में बात करेंगे जो बेहद अद्भुत है। इस मंदिर में नागराज के वेश में भगवान शिव विराजमान हैं। हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु के कुंभकोणम स्थित नागेश्वर स्वामी मंदिर के बारे में, जो देखने में ना सिर्फ़ ख़ूबसूरत है बल्कि इस मंदिर को लेकर अलग-अलग मान्यताएं भी है।
बता दें कि उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण के मंदिरों की रूपरेखा काफ़ी अलग होती है। यही वजह है कि यह लोगों को काफ़ी आकर्षित भी करते हैं। वहीं इस मंदिर को सबसे प्रचीन मंदिरों में गिना जाता है। आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ ख़ास बातें...
नागेश्वरस्वामी मंदिर का इतिहास
मंदिर से जुड़े कई शिलालेख हैं, जो चोल, तंजावुर नायक और तंजावुर मराठा राज्य के योगदान का संकेत देते हैं। भगवान शिव के इस मंदिर का निर्माण चोल राजा आदित्य ने 9वीं शताब्दी में करवाया था। इस मंदिर की ख़ास बात है कि तमिल महीने चित्तीराई यानी अप्रैल और मई के शुरुआती तीन दिनों के दौरान सूर्य की रौशनी सीधे यहां प्रवेश करती है। यही वजह है कि इसे सूर्य कोट्टम और किझा कोट्टम के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर परिसर राज्य में सबसे बड़ा है और इसमें तीन गेटवे टावर हैं, जिन्हें गोपुरम के नाम से जाना जाता है। यही नहीं मंदिर में कई और भी मंदिर हैं, जिनमें नागेश्वर, प्रलयमनाथर, और पेरियानायगी सबसे प्रमुख हैं। वहीं मंदिर परिसर में कई हॉल और तीन उपसर्ग हैं।
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नागेश्वरस्वामी मंदिर की ख़ासियत
नागेश्वरस्वामी मंदिर में रोज़ाना सुबह 5:30 बजे से रात 10 बजे तक 6 अनुष्ठान होते हैं और इसके कैलेंडर पर बारह वार्षिक उत्सव होते हैं। वहीं भोलेनाथ के इस मंदिर का वर्णन थेवरम यानी शिव वंदना के भजनों में भी किया गया है। इसके अलावा इसे पादल पेत्रा स्थालम की श्रेणी में भी रखा है। इस मंदिर में भगवान शिव कुंभकोणम के मध्य में स्थित हैं। मौजूदा समय में इस मंदिर का रखरखाव और प्रशासित तमिलनाडु सरकार के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोस्त विभाग द्वारा किया जाता है।
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इस मंदिर को लेकर क्या है मान्यताएं
इस मंदिर से जुड़ी कथाओं के अनुसार जब नागराज पर अधिक धरती भार महसूस होने लगा, तब उन्होंने तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर माता पार्वती प्रकट हुईं थीं और उन्होंने उन्हें शक्ति प्रदान की। इस मंदिर में एक जलाशय भी है, जिसे नागा थीर्थम कहा जाता है। इसके अलावा मंदिर में राहु का भी एक स्थान है, जो वनग्रहों के 9 ग्रहों में से एक माना जाता है। इस मंदिर को लेकर एक और पौराणिक कथा है, जिसमें बताया गया है कि नाग दक्षण और कर्कोटक ने यहां भगवान शिव की पूजा की थी। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि राजा नाला ने तिरुनेलर में भगवान शिव की पूजा की थी। वहीं तिरुनागेश्वरम में एक नागनाथर मंदिर है, जिसमें मंदिर जैसी समान विशेषताएं हैं।
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