शिव के कितने रूप होते हैं? हमारे भोले बारह को देखें, तो रौद्र रूप से लेकर सरल और शांत स्वरूप तक शिव की महिमा कैसी भी हो सकती है, लेकिन किसी एक मंदिर में शिव का कोई एक रूप ही दिखता है। आपको शायद इसके बारे में पता ना हो, लेकिन मंदसौर में शिव की जो मूर्ति है वैसी पूरी दुनिया में कोई और नहीं। यह मंदिर शिवना नदी के घाट पर स्थित है, लेकिन बारिशों में यहां मंदिर के अंदर तक पानी चला जाता है। घाट पर होने के कारण श्रद्धालु यहां स्नान करना भी पसंद करते हैं।
मंदसौर के इस मंदिर का शिवना नदी से बहुत गहरा ताल्लुक है और इसलिए इसे पवित्र माना जाता है।
आखिर क्या है शिवना नदी से इस मंदिर का ताल्लुक?
मान्यता है कि जब भारत में अलग-अलग जगह से आक्रमण हो रहा था, विदेशी ताकतों ने देश के कई मंदिरों को तोड़ना शुरू कर दिया था। तब इस शिवलिंग को आक्रमण से बचाने के लिए शिवना नदी में ही छुपा दिया गया था। इस मंदिर की मूर्ति का पूरी दुनिया में कोई दूसरा रूप नहीं है इसलिए ऐसा किया गया था। इस मूर्ति को 1940 में बाहर निकाला गया था।
इसके बाद मंदिर का मौजूदा स्वरूप 1961 में बना था जब मूर्ति को मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया गया था।
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क्या है अष्टमुखी मूर्ति की खासियत?
इस शिव मूर्ति के आठों मुख जीवन की सभी अवस्थाओं को दिखाते हैं। सबसे पहले पूर्व से बालमुख शुरू होता है, दक्षिण आते ही किशोर मुख दिखता है, इसके बाद युवा अवस्था और अंत में वृद्धावस्था वाला मुख दिखता है। इसे देखकर आपको भी लगेगा कि यह बहुत अनोखी बात है। भगवान शिव की इस मूर्ति को जाग्रत माना जाता है और इसलिए ही यह मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
इस मूर्ति में शिव के हर भाव को देखा जा सकता है जिसमें वह शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव के रूप में नजर आते हैं और इस मूर्ति को बनाया भी अष्ट तत्वों से गया है। इस मूर्ति की खास बात यह है कि कि जिस भी तरफ से आप इसे देखेंगे उस तरफ से यह अलग दिखेगी।
क्या है इस मूर्ति का इतिहास?
वैसे तो इस मूर्ति का निर्माण कब हुआ था इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलता है, लेकिन कुछ रिपोर्ट्स मानती हैं कि इसे 575 ई. में बनाया था। उस वक्त राजा यशोधर्मन हुआ करते थे। इस मूर्ति के मुख्य चार मुख पहले बनाए गए थे और नीचे के बाकी चार मुख एक अवधि बीत जाने के बाद।
इसे लेकर एक लोककथा भी प्रसिद्ध है। माना जाता है कि जब मूर्ति को नदी में छुपाया गया था उसके बाद कई सालों तक वह ऐसे ही रही थी। इसके बाद उदा नामक एक धोबी को नदी के किनारे एक पत्थर मिला जिस पर वह कपड़े धोने लगा। एक रात उसके सपने में भगवान शिव आए और कहा कि यह पत्थर उनके 8 रूपों में से एक है। अगले ही दिन धोबी ने गांव वालों के साथ मिलकर उस मूर्ति को निकालने की कोशिश की, लेकिन इतनी भारी मूर्ति को बाहर निकालने के लिए पूरा गांव ही लग गया। उस वक्त जब मूर्ति बाहर निकली तब पता चला कि यह वास्तव में शिव की मूर्ति है। जब मूर्ति बाहर निकली वह नदी के तट पर स्थापित हो गई। उसे कहीं और ले जाना था, लेकिन वह मूर्ति उसके बाद हिली ही नहीं। इसलिए उसी जगह पर पशुपति नाथ का मंदिर बना दिया गया।
इस मूर्ति का वजन 4600 किलो है और इसे दो अलग-अलग हिस्सों में बनाया गया है।
इस मूर्ति की तुलना नेपाल के पशुपतिनाथ से की जाती है इसलिए इसे पशुपतिनाथ का रूप माना जाता है।
कहते हैं जब यह मूर्ति कुछ सालों तक गांव के सज्जन शिवदर्शन अग्रवाल के यहां रही थी। क्योंकि मंदिर बनाने के पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने इसे अपने खेत में ही रख लिया।
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कब खुलता है पशुपतिनाथ का मंदिर?
यह मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है और पहली आरती सुबह 7.30 बजे होती है। रात को साढ़े नौ बजे यह मंदिर बंद हो जाता है।
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Image Credit: Pashupatinath Temple instagram account
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