भगवान शिव का एक नाम पशुपतिनाथ भी है। पशुपति का अर्थ है इस ब्रह्माण्ड में पाए जाने वाले समस्त जीवों का मालिक यानी कि समस्त जीवन के देवता हैं। शिव महापुराण के अनुसार, पशुपतिनाथ का व्रत देवाधिदेव महादेव के इसी रूप को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई जातक इनकी पूजा सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ करता है। तब उसकी सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। साथ ही सुख-समृद्धि और सौभाग्य की भी प्राप्ति हो सकती है। पशुपतिनाथ व्रत एक पवित्र व्रत है जो व्यक्ति के पापों को नाश करने में मदद करता है। व्रत के दौरान किए गए स्नान, पूजा, मंत्र जाप और दान से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पशुपतिनाथ व्रत ग्रहों के दोषों को दूर करने का भी एक प्रभावी उपाय है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई दोष है, तो वह इस व्रत को रखकर उन दोषों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। पशुपतिनाथ व्रत सुख-समृद्धि और वैभव प्राप्ति का व्रत भी माना जाता है। अब ऐसे में अगर आप भी पशुपतिनाथ व्रत रख रहे हैं, तो कुछ नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
पशुपतिनाथ व्रत रखने के दौरान किन नियमों पालन करें?
अगर आप पशुपतिनाथ व्रत रख रहे हैं, तो यह व्रत लगातार 5 सोमवार रखा जाता है। पहले सोमवार से आखिरी सोमवार तक के बीच में कोई भी सोमवार छूटना नहीं चाहिए।
पहले सोमवार की पूजा जिस शिव मंदिर में आपने की है, उसी मंदिर में चारों सोमवार की भी पूजा करनी होगी।
व्रत के नियम क्या हैं?
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
- साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
- भोजन में सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा और नॉन-वेज का सेवन न करें।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- दिन भर भगवान शिव का ध्यान करें और शिव के मंत्रों का जाप करें।
- शाम को शिव मंदिर जाकर भगवान शिव की पूजा करें।
- शिव स्तुति का पाठ करें।
- पशुपतिनाथ व्रत रखने के दौरान अपशब्द बोलने से बचना चाहिए।
- व्रत के दौरान यदि आपको कोई परेशानी हो तो व्रत तोड़ सकते हैं।
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पशुपतिनाथ व्रत का उद्यापन कैसे करें?
- पांचवें सोमवार को व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
- इस दिन ब्राह्मणों को भोजन खिलाएं और दान दें।
- भगवान शिव की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं और विशेष पूजा करें।
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