महाभारत युद्ध में घटित हर घटना का अपना एक आधार है और हर घटना के पीछे छिपी एक लीला है जिसके सूत्रधार बने श्री कृष्ण। जहां एक ओर महाभारत युद्ध से पहले श्री कृष्ण ने कई लीलाओं के माध्यम से कौरवों को चेताया था तो वहीं, दूसरी ओर महाभारत युद्ध के दौरान भी अपनी लीलाओं से पांडवों के सहायक बने थे श्री कृष्ण। यह तो हम सभी जानते हैं कि महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण अर्जुन के सारथि बने थे। श्री कृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता का ज्ञान भी दिया था, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पांचों पांडवों में से सिर्फ अर्जुन को ही अपना रथपति क्यों चुना था श्री कृष्ण ने या फिर सिर्फ अर्जुन को ही क्यों भगवद्गीता का ज्ञान प्राप्त हुआ, आर नहीं तो आइये जानते हैं इस बारे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।
महाभारत युद्ध में, श्री कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनने का चुनाव कई महत्वपूर्ण कारणों से किया था। ये कारण केवल युद्धनीति से संबंधित नहीं थे, बल्कि गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों पर भी आधारित थे। सबसे पहले, अर्जुन एक असाधारण धनुर्धर थे और उनमें अद्वितीय क्षमता थी। कृष्ण जानते थे कि युद्ध में अर्जुन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी। कृष्ण ने अर्जुन की क्षमता और योग्यता को पहचाना और यह भी जानते थे कि अर्जुन को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
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दूसरा कारण यह था कि कृष्ण और अर्जुन के बीच एक विशेष संबंध था। यह संबंध केवल मित्रता का नहीं था, बल्कि यह 'नर और नारायण' के दिव्य संबंध का प्रतीक था, जिसमें अर्जुन 'नर' और कृष्ण 'नारायण' का प्रतिनिधित्व करते हैं। कृष्ण ने अर्जुन को अपना प्रिय मित्र और भक्त माना और वे जानते थे कि अर्जुन ही वह व्यक्ति है जो उनकी दिव्य ज्ञान भगवद्गीता को समझने और उसका पालन करने में सक्षम है।
तीसरा कारण यह था कि कृष्ण जानते थे कि अर्जुन युद्ध के दौरान कई नैतिक और भावनात्मक चुनौतियों का सामना करेंगे। अर्जुन को अपने परिवार के सदस्यों और गुरुओं के खिलाफ लड़ना था, जिससे वह भ्रमित और निराश हो सकते थे। कृष्ण ने अर्जुन को इस धर्मसंकट से निकालने और उसे उसके कर्तव्य का बोध कराने के लिए सारथी बनना स्वीकार किया।
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चौथा कारण यह था कि कृष्ण इस युद्ध के माध्यम से धर्म की स्थापना करना चाहते थे। वे जानते थे कि अर्जुन धर्म के मार्ग पर चलने के लिए संघर्ष करेगा, और इसलिए उन्होंने अर्जुन को सही मार्ग पर ले जाने का निर्णय लिया। कृष्ण का सारथी बनना केवल अर्जुन की मदद करना नहीं था बल्कि यह सुनिश्चित करना भी था कि धर्म की स्थापना हो।
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