Pitru Paksha 2024: पितृपक्ष दिवंगत आत्माओं को समर्पित है। साथ ही, उन्हें प्रसन्न करने, क्षमा मांगने और पितृ दोष से छुटकारा पाने के लिए भी ये 15 दिन अहम माना जाता है। पूर्वज सांसारिक यात्रा समाप्त कर मृत्यु के बाद परलोक पहुंचते हैं। शास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि, परलोक में लोगों को न तो अन्न मिलता है और न ही उन्हें जल मिलता है। ऐसे में, पुत्र-पौत्रादि जब पितरों का तर्पण या श्राद्धकर्म करते हैं, तो यह सीधी पूर्वजों को लगता है। इससे पितृ संतुष्ट होते हैं और अपने वंश को फलने-फूलने का आशीर्वाद भी देते हैं। वहीं, शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि अगर पितृपक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध न हो, तो वे दुखी हो जाते हैं और श्राप देकर वापस अपने लोक लौट जाते हैं। ऐसे में, जातकों को कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। आइए इस बारे में गया के ब्राह्मण अनिल उपाध्याय जी से विस्तार से जानते है।
पितृपक्ष में पितरों को अपने वंशों से आशा रहती है कि वे उनका श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान करेंगे और इसी आशा के साथ आश्विन मास में पितृपक्ष के दौरान पूर्वज धरती पर आते हैं। ऐसे में, अगर उनके वंशज श्राद्ध न करें तो पितर प्रसन्न नहीं होते हैं और व्यक्ति के जीवन में शांति और सुख का अभाव रहता है। जीवनभर परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
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पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध-तर्पण न करने से पितृ अतृप्त रहते हैं और वे अपने वंशों को आशीर्वाद देने के बजाय कष्ट पहुंचाते हैं। ऐसे में, आपको पितृदोष लगता है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, जिस कुल में श्राद्ध कर्म नहीं होता है। वहां दीर्घायु या निरोगी संतानों का जन्म नहीं होता है। साथ ही, ऐसे परिवार में खुशिया कम ही आती हैं। पितृ दोष के कारण व्यक्ति को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। व्यापार में नुकसान, धन हानि और गरीबी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
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पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म न करने से वंशजों के जीवन में बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। यह न केवल आपके जीवन को बल्कि आपके संतान को भी मुसिबत में डाल देता है। यही नहीं, आने वाली पीढ़ियां भी इससे प्रभावित होती हैं। इसका बुरा फल उन्हें भी झेलना पड़ता है। इसका परिणाम वंशजों को जीवनभर और हर पीढ़ी को झेलना पड़ जाता है।
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Image credit- Herzindagi, Bihar Tourism Site
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