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Shaktishali Path: रावण से युद्ध करने से पहले श्रीराम ने किया था इस शक्तिशाली स्तोत्र का पाठ, आप भी करेंगी तो मिलेगी शत्रुओं पर विजय

शक्तिशाली आदित्य हृदय स्तोत्र का महत्व जानें, जिसे श्रीराम ने रावण से युद्ध से पहले किया था। यह स्तोत्र आपको शत्रुओं पर विजय, आत्मबल और कठिन कार्यों में सफलता दिला सकता है।
Editorial
Updated:- 2025-09-22, 15:17 IST

हिंदू शास्त्रों में बताया गया है कि त्रेता युग में भगवान विष्णु ने मनुष्य योनि में जन्म लिया और श्रीराम के अवतार में उन्होंने जगत को मर्यादा का पाठ पढ़ाया। हम सभी श्रीराम से जुड़ी अनेक कहानियां सुनी हुई हैं। इनमें से कुछ बेहद रोचक और लाभकारी भी हैं। आज हम आपको ऐसी ही एक कथा सुनाने जा रहे हैं, जो श्रीराम के जीवन से जुड़ी है और यदि हम उसका अनुसरण करें तो हमें भी इसके लाभ मिल सकते हैं।

जी हां, जब श्रीराम रावण से युद्ध करने के लिए लंका की ओर प्रस्थान कर रहे थे, तब विजय प्राप्त करने के लिए उन्होंने केवल रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर शिवजी की पूजा ही नहीं की थी, बल्कि एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र का पाठ भी किया था, जिसे आदित्य हृदय स्तोत्र कहा जाता है। आज हम आपको इस पाठ के बारे में बताएंगे। यह स्तोत्र कठिन कार्यों में सफलता दिलाता है और शत्रुओं का नाश करता है।

क्या है आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ?

सूर्य देव को समर्पित यह एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली स्तोत्र है। हम सभी जानते हैं कि सूर्य सबसे प्रथम और सभी ग्रहों का राजा है। यह स्तोत्र रामायण के युद्धकांड में मिलता है। कथा के अनुसार जब श्रीराम माता सीता को रावण की कैद से मुक्त कराने के लिए लंका जा रहे थे, तब रावण पर विजय प्राप्त करने हेतु ऋषि अगस्त्य ने उन्हें इस पाठ का उपदेश दिया था।

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आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ के लाभ

  • इसे कष्ट निवारण स्तोत्र कहा गया है। जीवन में किसी भी कारण से कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हो तो इसका पाठ अवश्य करें।
  • यह स्तोत्र शत्रुओं और विरोधियों का सामना करने की शक्ति देता है। इससे गुप्त शत्रु भी शांत हो जाते हैं।
  • यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह कमजोर या पीड़ित है, तो नियमित यह पाठ करने से ग्रह मजबूत और शांत होते हैं।
  • शारीरिक और मानसिक पीड़ा, तनाव या बीमारी की स्थिति में इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत लाभकारी है।

आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ के नियम

  • सुबह स्नान कर साफ-सुथरे कपड़े पहनें। इसके बाद सूर्य को जल अर्पित करें।
  • यह पाठ सूर्य देव के सामने बैठकर करें। सुबह 6 से 7 बजे का समय सबसे उत्तम माना गया है।
  • पाठ करने के बाद सूर्य देव का ध्यान करें और अपने गलत कर्मों के लिए उनसे क्षमा याचना करें।

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