गणपति महोत्सव भारत के सबसे भव्य और लोकप्रिय पर्वों में से एक माना जाता है, इसकी शुरुआत हर साल गणेश चतुर्थी से होती है। यह पर्व विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता भगवान गणेश को समर्पित होता है, उन्हें बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य का देवता भी माना जाता है। इस दौरान भक्तजन श्रद्धा और उत्साह के साथ भगवान गणेश की प्रतिमा को घरों और पंडालों में स्थापित करते हैं और 11 दिनों तक विधिवत पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस साल गणेश महोत्सव का शुभारंभ 27 अगस्त 2025, को गणेश चतुर्थी से हो चुका है और इसका समापन 06 सितंबर 2025 (शनिवार) को अनंत चतुर्दशी पर होगा। इस दौरान चारों ओर ‘गणपति बप्पा मोरया’ के जयकारों की गूंज होती है और वातावरण भक्तिमय बन जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों में श्रीगणेश की पूजा करने से सभी विघ्न दूर होते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस उत्सव का सबसे बड़ा आकर्षण गणेश विसर्जन माना जाता है जिसमें भक्त बड़ी धूमधाम और शोभायात्रा के साथ गणेश जी की प्रतिमा को जल में विसर्जित करते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। आइए ज्योतिर्विद रमेश भोजराज द्विवेदी से जानते हैं कि इस साल गणपति महोत्सव का आरंभ कब से हो रहा है? गणेश चतुर्थी और अनंत चतुर्दशी कब हैं? साथ ही, इन तिथियों की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में भी जानें।
इस साल गणपति महोत्सव का आरंभ गणेश चतुर्थी यानी 27 अगस्त (बुधवार ) से हो रहा है और इसका समापन अनंत चतुर्दशी यानी 06 सितंबर (शनिवार) को होगा। चतुर्थी से चतुर्दशी तक कुल 11 दिनों तक चलने वाला यह महोत्सव भक्तों को भक्ति, आनंद और आशीर्वाद से भरने वाला होता है और इस दौरान जगह-जगह पर गणपति पंडाल लगाए जाते हैं और घर में भी लोग गणपति की स्थापना करते हैं।
गणेश चतुर्थी की पूजा के लिए विशेष सामग्री की भी आवश्यकता होती है। इस पूजा सामग्री से भगवान गणेश की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और पूजा का पूर्ण फल भी मिल सकता है। यहां जानें गणेश चतुर्थी की पूरी सामग्री के बारे में-
जो लोग गणेश चतुर्थी की पूजा करते हैं और घर गणपति की स्थापना करते हैं उन्हें गणेश चतुर्थी की व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए। गणेश चतुर्थी की व्रत कथा के अनुसार भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती के शरीर से निकले मैल से हुआ है। ऐसी मान्यता है कि एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं और स्न्नान से पहले उन्होंने अपने पूरे शरीर में उबटन लगाया और उस उबटन से एक पुतले का निर्माण किया जिसे उन्होंने विनायक नाम दिया। माता पार्वती ने विनायक को मुख्य द्वार पर पहरेदार बनाकर खड़ा कर दिया और उन्हें आदेश दिया कि वो स्नान करने जा रही हैं और किसी को भी भीतर आने की अनुमति न दें। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए और विनायक ने उन्हें भी भीतर जाने से मन कर दिया। ऐसे में शिव जी ने क्रोध में आकर विनायक का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती को इस बात का एहसास हुआ तब उन्होंने शिव जी से विनायक को पुनर्जीवित करने के लिए कहा। उस समय शिव जी ने हाथी का मस्तक विनायक के सिर के स्थान पर लगा दिया और तभी से विनायक का नाम गणपति रख दिया गया। गणपति को प्रथम पूजनीय का स्थान प्राप्त हुआ। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन विनायक का गणपति के रूप में जन्म हुआ उसी दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाने लगा।
अनंत चतुर्दशी हर साल गणेश चतुर्थी के दसवें दिन मनाई जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि अनंत चतुर्दशी भादो महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को होती है और इसे गणेश चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन गणपति का विसर्जन विधि-विधान से किया जाता है और बप्पा की विदाई की जाती है।
हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी का पर्व बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे गणपति के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है। गणपति बप्पा को विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है और ऐसा कहा जाता है यदि आप किसी भी पूजा से पहले गणपति का आह्वान करते हैं तो पूजन सफल होता है। ऐसे ही यदि आप घर पर गणपति की स्थापना करने के साथ पूरे 11 दिनों तक उनका पूजन करती हैं तो इसका प्रभाव आपके पूरे परिवार पर होता है और पूरे साल खुशहाली बनी रहती है।
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निष्कर्ष: गणपति महोत्सव केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है बल्कि भक्ति और आस्था का मिला जुला रूप भी है। गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक चलने वाला यह उत्सव भक्तों के मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और आपसी मेलजोल को बढ़ाता है। इस दौरान विधि-विधान से गणपति का पूजन फलदायी माना जाता है।
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