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इन 3 श्रापों के कारण भगवान राम को कभी नहीं मिला कोई सुख, जीवन भर झेलनी पडीं परेशानियां

श्री राम को त्रेता युग में तीन श्राप भोगने पड़े थे जिसके चलते उन्हें जीवन में कभी भी स्थाई रूप से सुख न मिल सका। हालांकि, सुख कभी भी स्थाई नहीं होता है, लेकिन श्री राम के कष्टों का कभी अंत हुआ ही नहीं।
Editorial
Updated:- 2025-07-01, 16:42 IST

शास्त्रों और धर्म ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि धर्म के मार्ग पर चलते हुए या धर्म की स्थापना करते हुए भगवन को भी कई दुख झेलने पड़े थे। मनुष्य तो मनुष्य, स्वयं भगवान को भी कई भयंकर श्रापों का सामना करना पड़ा था। ठीक ऐसे ही, श्री राम को भी त्रेता युग में तीन श्राप भोगने पड़े थे जिसके चलते उन्हें जीवन में कभी भी स्थाई रूप से सुख न मिल सका। हालांकि, सुख कभी भी स्थाई नहीं होता है, लेकिन श्री राम के कष्टों का कभी अंत हुआ ही नहीं। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें भगवान राम के जीवन में इतने दुखों के होने के पीछे का कारण बताते हुए उन श्रापों का वर्णन किया जो श्री राम को तीन लोगों ने अलग-अलग परिस्थितियों में दिए थे। आइये जानते हैं किसने, कब और क्यों दिया था श्री राम को श्राप।

श्री राम को मिला था देवी तारा से श्राप

श्री राम ने जब सुग्रीव की सहायता करते हुए बाली का धोखे से वध किया था, तब बाली कि चित्कार सुनकर उसकी पत्नी तारा महल से बाहर आईं थीं। जब उन्हें पता चला कि श्री राम ने बाली को मारा है और भी छिपकर छल से तो उन्हें क्रोध आ गया।

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उन्होंने श्री राम को यह श्राप दिया कि जिस प्रकार बाली का वध छिपकर छल से हुआ है ठीक ऐसे ही श्री राम का वध भी छिपकर छल से ही होगा। श्री राम ने श्राप को स्वीकार किया और द्वापरयुग में श्री कृष्ण अवतार में यह श्राप पूरा हुआ, लेकिन ऐसा माना जाता है कि श्री राम जीवनभर इस आत्मग्लानी से परेशान रहे कि उनके हाथों छल हुआ था।

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श्री राम को मिला था देवी मंदोदरी से श्राप

श्री राम ने जब रावण का वध किया था, तब रावण के शव के मंदोदरी जी भागी-भागी पहुंची थीं। मंदोदरी जी को यह पता था कि रावण एक अधर्मी था और उसे उसके अधर्म का ही फल मिला है, लेकिन इसके बाद भी जब मंदोदरी ने अपने पति को मृत अवस्था में देखा तो उन्होंने श्री राम को श्राप दिया कि वह पुनः पत्नी वियोग सहेंगे जैसे कि अब मनोदारी जी को आजीवन के लिए पति का वियोग सहना पड़ेगा। इसी श्राप के कारण माता सीता के पुनः वन जाने की लीला श्री राम और माता सीता ने रचाई थी ताकि देवी मंदोदरी का श्राप खाली न जाए और उनकी लीला भी संपन्न हो जाए।

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श्री राम को मिला था शंबूक से श्राप

रामायण में इस बात का उल्लेख नहीं है, लेकिन कई प्रचलित कथाओं के अनुसार माता सीता के पृथ्वी में समा जाने के बाद एक बार श्री राम वन में अपने भाई लक्ष्मण के साथ विचरण करने गए थे कि तभी एक आहट सुन उन्होंने तीर चला दिया और उस तीर के प्रहार के कारण वन में तपस्या कर रहा है शंबूक नामक एक व्यक्ति भयंकर रूप से घायल हो गया।

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जब श्री राम और लक्ष्मण उसे पास पहुंचे तो उसने श्री राम को यह श्राप दिया कि जिस प्रकार का अन्याय उसके साथ हुआ वैसा ही अन्याय उनके भाई लक्ष्मण के साथ होगा और उस अन्याय को स्वयं श्री राम ही करेंगे। श्राप अनुसार, जब यमराज श्री राम से मिलने आये तब उन्होंने यह बात रखी कि जो भी कोई श्री राम और काल देवता को बात करते हुए देखे या सुनेगा तो उसे शरीर त्यागना होगा। लक्ष्मण जी ने गलती से दोनों को बातचीत करते हुए देख लिया था और श्री राम ने उसी श्राप को पूरा करने हेतु लक्ष्मण जी को मृत्यु दंड का आदेश सुनाया था।

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श्री राम के धनुष का क्या नाम था? 
श्री राम के धनुष का नाम कोदंड था। 
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