भारत में शादी को बहुत खास माना जाता है, यह प्यार और भरोसे का बंधन होता है। अगर आपकी नई शादी हुई है और आप अपनी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत करने जा रही हैं, तो आपको झारखंड के देवघर में स्थित बैद्यनाथ धाम नाम की जगह पर गठबंधन पूजा जरूर करवानी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यह पूजा आपकी शादीशुदा जिंदगी में खुशियां लाती है और आपका रिश्ता शिव और पार्वती की तरह मजबूत होता है।
वैसे तो यह गठबंधन पूजा शादीशुदा जोड़े ही करते हैं, ताकि उन्हें शिव और पार्वती माता का आशीर्वाद मिले। यह पूजा मंदिर के अंदर पंडित जी करते हैं और इसमें शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है। आपको बता दें कि बैद्यनाथ धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह भी माना जाता है कि यहां माता सती का दिल गिरा था, इसलिए यह एक शक्तिपीठ भी है।
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अगर आपकी शादीशुदा जिंदगी में तनाव, परेशानी या मनमुटाव है, तो आपको बैद्यनाथ धाम जाकर गठबंधन पूजा करवानी चाहिए। यह पूजा हर साल सावन के महीने में होती है। यहां भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिरों के गुंबदों के ऊपर लाल रंग का धागा बांधा जाता है, जिसे गठबंधन पूजा कहते हैं। इस अनोखी पूजा में वहां के आदिवासी लोग मंदिर की छत पर चढ़कर इन धागों को बांधते हैं और नीचे पंडित जी मंत्र पढ़ते हैं। यह लाल धागा एक मंदिर से दूसरे मंदिर के गुंबद तक बांधा जाता है, जो शिव और पार्वती के मिलन का प्रतीक है।
पौराणिक कथानुसार, रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। उसने शिवजी को खुश करने के लिए कठोर तपस्या की थी और वह उन्हें लंका ले जाना चाहता था। शिवजी रावण की भक्ति से खुश हुए थे और उसे एक शिवलिंग दिया था, लेकिन एक शर्त रखी थी कि अगर वह रास्ते में शिवलिंग को जमीन पर रख देगा, तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा। रास्ते में रावण थक गया और झारखंड के देवघर में रुका। उसने एक चरवाहे, बैजू को शिवलिंग पकड़ा दिया। चरवाहे ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और वह वहीं पर स्थापित हो गया। बाद में इस जगह का नाम बैद्यनाथ धाम पड़ा।
एक और कहानी है कि जब सती के पिता दक्ष ने यज्ञ करवाया था, तो उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया था। इससे सती बहुत गुस्सा हो गईं और उन्होंने खुद को यज्ञ की आग में जला दिया था। जब भगवान शिव को यह पता चला, तो वह बहुत दुखी हुए और सती के जले हुए शरीर को लेकर पूरी दुनिया में घूमने लगे। उनका दुख देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के 52 टुकड़े कर दिए। धरती पर जहां-जहां ये टुकड़े गिरे, उन्हें शक्तिपीठ कहा जाने लगा। बैद्यनाथ धाम में सती का हृदय गिरा था, इसलिए इसे हृदय पीठ भी कहते हैं। यह इकलौता ऐसा मंदिर है जहां ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों एक साथ हैं।
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