हर साल की तरह इस बार भी देशभर में गणेश चतुर्थी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। लोग बप्पा के दर्शन के लिए हर दिन एक मंदिर से दूसरे मंदिर में ट्रैवल करते हैं। लेकिन आज भी कई लोग ऐसे हैं जो गणेश जी के वाहन मूषक के बारे में नहीं जानते। आज के इस आर्टिकल में हम आपको गणेश जी के मूषक महाराज के बारे में विस्तार से बताएंगे।
गणेश पुराण में लिखी एक कथा के अनुसार गणेश जी का चूहा पिछले जन्म में एक गंधर्व था। मूषक महाराज का नाम पहले क्रोंच था। बताया जाता है कि एक दिन स्वर्गलोक में देवराज इंद्र की सभा चल रही थी, तभी उनका पैर गलती से मुनि वामदेव के ऊपर चला गया। ऐसी हरकत होने पर मुनि वामदेव ने सोचा कि क्रोंच ने यह जानबूझकर किया है, यह उनकी शरारत है।
उन्होंने गुस्से में आकर क्रोंच को चूहा बनने का शाप दे दिया। उनके शाप की वजह से क्रोंच अप एक चूहा बन गए थे, लेकिन मूषक बनने के बाद भी उनका शरीर छोटा नहीं हुआ। वह एक विशालकाय मूषक बनकर यहां-वहां घूमने लगे। उनका शरीर इतना विशाल था कि अपने रास्ते में आने वाली सभी चीजों को नष्ट कर रहे थे। (400 साल पुराने गणपतिपुले मंदिर का रहस्य)
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काफी समय मूषक इसी हाल में यहां वहां घूमते रहे। एक दिन वह घूमते-फिरते महर्षि पराशर के आश्रम में पहुंच गए। अपनी आदत के अनुसार यहां भी वह उनके आश्रम में मौजूद मिट्टी के पात्र तोड़ने लगे। उन्होंने उनके आश्रम में काफी उत्पात मचाया। लेकिन तब वहां भगवान गणेश भी मौजूद थे।
जब उन्होंने मूषक द्वारा ऐसी हरकत करते हुए देखा, तो उन्हें सबक सिखाने की सोची। उन्होंने मूषक को पकड़ने के लिये एक रस्सी फेंकी। यह उनके गले में फंस गई और वह घिसटते हुए भगवान गणेश के सामने आ गए।
बप्पा को अपने सामने देखकर मूषक ने उनसे अपने प्राणों की भीख मांगनी शुरू कर दी। गणेश जी मूषक की आराधना से प्रसन्न हो गए, उन्होंने मूषक से कहा कि आज तक तुमने लोगों को बहुत कष्ट दिया है। लेकिन मैं तुम्हारे द्वारा की गई प्रार्थना से प्रसन्न हुआ हूं। इसलिए जो वरदान चाहो मांग लो। (सिद्धिविनायक की तरह फेमस है यह गणेश मंदिर)
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भगवान गणेश की बातें सुनकर मूषक में अचानक अहंकार आ गया। उसने भगवान गणेश से कहा कि ‘मुझे आपसे कोई वरदान नहीं चाहिए, लेकिन यदि आपको मुझसे कुछ चाहिए, तो आप वरदान मांग सकते हैं।
मूषक का अहंकार देखकर भगवान गणेश मन ही मन मुस्कुराए और बोले, ‘यदि तुम मुझे वरदान देना चाहते हो तो आज से तुम मेरे वाहन बन जाओ। मूषक ने बिना कुछ सोचे समझे ‘तथास्तु’ कह दिया।
‘तथास्तु’ कहते ही, बप्पा अपना भारी-भरकम शरीर लेकर मूषक पर सवार हो गए। लेकिन भगवान गणेश का वजन मूषक सह नहीं पा रहा था। उसने गजानन से प्रार्थना करते हुए कहा कि वह उनका वाहन बनने के लिए तैयार है, लेकिन कृपया अपना वजन वहन करने योग्य बना लें।
अन्यथा उनकी यहीं मृत्यू हो जाएगा। इस तरह मूषक का गर्व चूर हो गया और वह हमेशा कि लए भगवान गणेश का वाहन बन गया।
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