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क्या सूर्य देव को जल चढ़ाते समय स्टील के पात्र का इस्तेमाल करना ठीक है? जानें क्या कहता है ज्योतिष

सूर्य को अर्घ्य देना एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे आपके जीवन में कई तरह के लाभ होते हैं। ऐसे आपके मन मस्तिष्क को शांति मिलती है और सूर्य की पूर्ण ऊर्जा का संचार भी शरीर में होता है। आइए जानें सूर्य को अर्घ्य देते समय किसी बर्तन का इस्तेमाल करना ठीक होता है।
Editorial
Updated:- 2024-10-14, 17:10 IST

सूर्य देव की पूजा भारतीय संस्कृति और ज्योतिष में किसी भी अन्य देवी-देवताओं की पूजा की ही तरह अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। सूर्य को जीवन का स्रोत और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, इसलिए रोज सुबह सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। इसे ज्योतिष में ‘सूर्य अर्घ्य’ भी कहा जाता है और ऐसा कहा जाता है कि नियमित रूप से सूर्य को जल चढ़ाने और उनकी पूजा करने से आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य, और समृद्धि बनी रहती है।

सूर्य की पूजा और जल चढ़ाने के कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन करने से आपको पूजा का पूर्ण फल मिल सकता है। इन्हीं नियमों में से एक है सूर्य को अर्घ्य देते समय सही बर्तन या पात्र का चुनाव करना।

आमतौर पर सूर्य को जल तांबे ये पीतल के लोटे से ही दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह धातुएं सूर्य देव को प्रिय हैं, लेकिन कई लोग स्टील के पात्र से भी सूर्य को अर्घ्य देते हैं। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें कि क्या ऐसा करना ठीक है?

सूर्य को जल चढ़ाने का महत्व

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सूर्य देव को जल चढ़ाना वैदिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह प्रक्रिया न केवल आध्यात्मिक लाभ देती है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्य, ऊर्जा, और मानसिक शांति भी लाती है। इसके साथ ही, सूर्य के अर्घ्य से शरीर के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और जीवन में आने वाली बाधाओं का अंत होता है।

सूर्य को जल चढ़ाने के लिए कुछ नियमों में इसका सही समय भी मायने रखता है। ज्योतिष की मानें तो सूर्योदय से लेकर 2 घंटे तक सूर्य को अर्घ्य देने का शुभ समय माना जाता है। ऐसा करने से सूर्य की कृपा से जीवन में समृद्धि और यश प्राप्त होता है। ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि सूर्य अर्घ्य से सूर्य की दशा और महादशा को सुधारने में मदद मिलती है, जिससे जीवन में आत्मविश्वास, सकारात्मकता और सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है।

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ज्योतिष के अनुसार किस बर्तन से सूर्य को जल देना चाहिए

सूर्य को जल अर्पित करते समय उपयोग किए जाने वाले पात्र या बर्तन का भी ज्योतिष में विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि हर धातु की अपनी एक ऊर्जा और ज्योतिषीय महत्व होता है। सूर्य को अर्घ्य देने के लिए जिस धातु के पात्र का प्रयोग किया जाता है, उसका सीधा प्रभाव आपकी पूजा ओर पड़ता है। आइए जानें जल देने के लिए कौन से बर्तन सबसे ज्यादा उपयुक्त माने जाते हैं।

सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तांबे के बर्तन का करें इस्तेमाल

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सूर्य देव को जल चढ़ाने के लिए तांबे का पात्र सबसे शुभ माना जाता है। तांबा एक प्राकृतिक धातु है और इसे ज्योतिष में सूर्य से संबंधित माना गया है। तांबे का पात्र सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और जल चढ़ाने की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाता है। मान्यता है कि तांबे के पात्र का उपयोग करने से सूर्य की स्थिति मजबूत होती है और व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि, और आत्मविश्वास बढ़ता है।

तांबे के पात्र से सूर्य को अर्घ्य देने से आपके शरीर और मन में नई ऊर्जा का संचार होता है। इसकी ऊर्जा से मानसिक और शारीरिक लाभ होते हैं।

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चांदी और पीतल के पात्र से चढ़ाएं सूर्य को अर्घ्य

तांबे के अलावा आप चांदी या पीतल के पात्र से भी सूर्य को अर्ध्य दे सकते हैं। चांदी का पात्र चंद्रमा से जुड़ा होता है, जो सूर्य के साथ एक सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाए रखता है। इसलिए, चांदी का पात्र भी ज्योतिषीय दृष्टिकोण से उचित माना जाता है। इसी प्रकार पीतल का पात्र भी सूर्य को अर्घ्य देने के लिए शुभ माना जाता है, क्योंकि यह शुद्धता और सकारात्मकता का प्रतीक होता है।

क्या सूर्य को अर्घ्य देने के लिए स्टील के पात्र का इस्तेमाल करना ठीक है?

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हम सभी के मन में एक सवाल यह उठता है कि क्या स्टील के पात्र का इस्तेमाल सूर्य को जल चढ़ाने के लिए करना सही है? ज्योतिष के अनुसार, स्टील का पात्र पूजा के लिए ठीक नहीं माना जाता है। इसके पीछे कई ज्योतिषीय और धार्मिक कारण हैं आइए जानें उनके बारे में-

स्टील एक मिश्रित धातु है, जिसे लोहे और अन्य धातुओं के मिश्रण से बनाया जाता है। ज्योतिष में लोहे का संबंध शनि ग्रह से माना जाता है। शनि और सूर्य का आपस में विरोधात्मक संबंध होता है। इसलिए, शनि से संबंधित धातु का इस्तेमाल सूर्य को जल चढ़ाने में करना शुभ नहीं माना जाता है। इससे पूजा के सकारात्मक प्रभाव कम हो सकते हैं और इसका विपरीत परिणाम भी हो सकता है।

स्टील की धातु में तांबे या चांदी जैसी शुद्ध ऊर्जा नहीं होती है। तांबा और चांदी जैसी धातुएं सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बनाए रखती हैं, जबकि स्टील में यह गुण नहीं होता है। इसलिए, स्टील के पात्र का उपयोग करने से पूजा का प्रभाव कम हो सकता है।

हिंदू धर्म में, विशेष रूप से सूर्य को जल अर्पित करने के लिए स्टील या लोहे के पात्र का उपयोग वर्जित माना गया है। यह शनि की नकारात्मक ऊर्जा को सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए है।

सूर्य को अर्घ्य देने के लिए सही धातु का चयन जरूरी क्यों है?

ज्योतिष शास्त्र में हर धातु का एक विशेष महत्व होता है और उसका सीधा संबंध ग्रहों की स्थिति से होता है। सूर्य को जल चढ़ाने के लिए सही धातु का चयन करना इसलिए आवश्यक है ताकि सूर्य की कृपा प्राप्त की जा सके और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का वास हो।

यदि आपके घर में तांबे का पात्र उपलब्ध न हो, तो चांदी या पीतल का पात्र भी उपयोग किया जा सकता है। ये धातुएं भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं और सूर्य की कृपा प्राप्त करने में सहायक होती हैं। हालांकि, स्टील के बजाय इन धातुओं का उपयोग करना ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अधिक शुभ माना गया है।

इन्हीं कारणों से आप जब भी आप सूर्य को जल अर्पित करें, तो सही धातु का चुनाव करें जिससे आप इस पवित्र अनुष्ठान से अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें और अपने जीवन में शांति, समृद्धि और सकारात्मकता का संचार कर सकें।


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