ऑफिस में महिलाओं को मिलते हैं ये अधिकार, Lawyer से जानें किन चीजों को हम कर देते हैं नजरअंदाज

आजकल महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। महिलाएं घर की जिम्मेदारी के साथ अब बाहर जाकर नौकरी भी कर रही हैं। ऐसे में वर्किंग वुमेन को वर्कप्लेस में मिलने वाले अधिकारों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। 
working women rights in india

आज के समय में महिलाएं पुरुषों के साथ मिलकर अपने परिवार की पैसों से भी मदद कर रही हैं। हाल के कुछ वर्षों में महिलाओं को सशक्त बनाने और जेंडर इक्विलिटी देने में भारत ने बहुत प्रगति की है। लेकिन, अभी भी वर्कप्लेस पर महिलाओं के लिए समान अधिकारों और अवसरों की लड़ाई जारी है।

भारत में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं। हालांकि, इसमें कई सुधार करने की जरूरत है। इसके लिए हम दूसरे देशों में महिलाओं के हितों से जुड़े कानूनों से प्रेरणा ले सकते हैं। हमने कार्पोरेट वकील और वर्टिसेस पार्टनर्स की को-फाउंडर अर्चना खोसला बर्मन से इस बारे में बात की है।

समान काम के लिए समान वेतन

समान वेतन अधिनियम 1976 के तहत, समान काम के लिए समान वेतन की गांरटी दी गई है। महिला कर्मचारी को वर्कप्लेस पर समान काम के लिए समान वेतन का भुगतान किया जाना अनिवार्य है। यह कानून हायरिंग और प्रमोशन में जेंडर भेदभाव को भी रोकता है।

यौन उत्पीड़न से सुरक्षा

वर्कप्लेस पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम 2013 या PoSH अधिनियम के तहत, कंपनियों को यौन उत्पीड़न की शिकायतों को दूर करने के लिए एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) गठित करना जरूरी है। यह कमिटी गोपनीय तरीके से यौन उत्पीड़न की शिकायतों को प्रभावी ढंग से हल करने में अहम भूमिक निभाती है।

मातृत्व लाभ और रोजगार की सुरक्षा

मातृत्व लाभ अधिनियम 1961, भारत में कामकाजी महिलाओं को मैटरनिटी बेनिफिट्स प्रदान करने में अहम भूमिका निभाता है। इस अधिनियम के तहत, गर्भवती महिलाओं को 26 हफ्ते तक पेड मैरटनिटी लीव का अधिकार होता है। इसके अतिरिक्त, सेरोगेट मदर्स और तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेने वाली महिलाओं को भी 13 हफ्ते तक पेड लीव का अधिकार मिलता है। इसके अलावा, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948 बीमित वर्किंग वुमेन को मेडिकल केयर, सिकनेस बेनिफिट्स और मैटरनिटि बेनिफिट्स जैसे लाभ मिलते हैं।

स्वास्थ्य और सुरक्षा

working women rights

फैक्ट्री अधिनियम 1948 के तहत, वर्कप्लेस पर महिला कर्मचारियों की हेल्थ, सेफ्टी और वेलफेयरपर बहुत जोर दिया गया है। वर्कप्लेस में महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट, चेंजिंग रूम और लॉकर की सुविधा होनी जरूरी है। इसके अलावा, इस अधिनियम में रात की शिफ्ट में काम करने वाली महिला कर्मचारियों को सुरक्षित घर पहुंचाने की जिम्मेदारी कंपनी की होनी अनिवार्य है।

इसे भी पढ़ें -International Women's Day 2024: हर भारतीय महिलाओं को मिलते हैं ये 10 अधिकार, ऐसे करें अपने राइट्स का इस्तेमाल

भेदभाव से सुरक्षा

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 16 में भेदभाव से सुरक्षा के अधिकार दिए गए हैं। अनुच्छेद 14 के तहत किसी भी महिला के साथ बिना किसी उचित कारण के भेदभाव नहीं होना चाहिए। अनुच्छेद 15 के तहत, किसी के साथ लिंग, जाति, धर्म, समुदाय और विकलांगता के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। अनुच्छेद 16 में, वर्कप्लेस पर भेदभाव नहीं होना चाहिए और सभी को समान अवसर मिलने चाहिए।

परिवार और व्यक्तिगत जीवन संतुलन का अधिकार

वर्कप्लेस पर महिलाएं मैटरनिटी बेनिफिट्स एक्ट और शॉप्स एंड इस्टैब्लिशमेंट एक्ट जैसे कानूनों के तहत, पारिवारिक मामलों के लिए छुट्टी पाने की हकदार हैं। इसके अलावा, महिलाओं को फ्लैक्सिबल वर्किंग आवर्स और घर से काम करने की भी अनुमति होती है।

बोर्ड में महिला होनी जरूरी अनिवार्यता

कंपनी अधिनियम 2013 के तहत, यह अनिवार्य किया गया है कि कंपनियों के कुछ वर्गों को अपने बोर्ड में कम से कम एक महिला डायरेक्टर को शामिल करना होगा। इस कानून को बनाने का उद्देश्य, कॉर्पोरेट निर्णय लेने के हाइएस्ट लेवल में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करनाहै।

महिलाओं के लिए विदेश में लागू की गई सफल रणनीतियां

working female rights

अभी भी भारत में कॉर्पोरेट सेक्टर्स में अभी भी बड़े पैमाने पर पुरुषों का ही दबदबा है, महिलाओं के पास लीडरशिप के पद कम ही हैं। महिलाओं को आज भी वेतन असमानताओं से लेकर सीमित करियर प्रोग्रेशन के अवसरों तक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, वैश्विक स्तर पर, यूएस., यू.के. और स्वीडन जैसे देशों ने भेदभाव विरोधी मज़बूत कानून बनाए हैं। वर्कप्लेस इक्विलिटी को बढ़ाने के लिए, हम अन्य देशों में लागू की गई सफल रणनीतियों को देख सकते हैं।

इसे भी पढ़ें -Women Rights: हर महिला को पता होने चाहिए ये अधिकार, डेली लाइफ में आ सकते हैं काम

  • आइसलैंड की तरह ही भारत में भी नियमित पे ऑडिट से काफी लाभ मिल सकता है, जो उचित फेयर कंपनसेशन प्रैक्टिस को बढ़ावा दे सकता है।
  • जापान और यूरोपीय देशों की तरह भारत में भी महिला उत्पीड़न के लिए टेक-ड्राइवन रिपोर्टिंग सिस्टम की शुरुआत करना बढ़िया रह सकता है।
  • स्वीडन की तरह, दोनों कामकाजी पैरेंट्स को शामिल करने के लिए फैमिली लीव पॉलिसी को लागू करना। ऐसा करने से महिलाएं अपने करियर में लगातार ग्रोथ कर सकती हैं।
  • अमेरिका की तरह भारत में भी टेक फर्म्स में लैंगिक भेदभाव को दूर करने लिए ट्रेनिंग लागू की जा सकती है।

अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो आप हमें आर्टिकल के ऊपर दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

Image credit - freepik


HzLogo

HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!

GET APP