भगवान शिव का नाम जब भी आता है, तो हमें हमेशा उनके 12 ज्योतिर्लिंग ध्यान में आते हैं। उनमें से एक है उज्जैन का सबसे ज्यादा प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर। जहां पर भोले बाबा महाकाल के रूप में विराजमान है। इस मंदिर में जब भी कोई व्यक्ति भगवान शिव के दर्शन करने जाता है, तो वो भस्म आरती में जरूर शामिल होता है। लेकिन इस मंदिर में इस आरती के कुछ नियम हैं, जो खास महिलओं के लिए बनाए गए हैं। चलिए आर्टिकल में इन्हीं नियमों के बारे में बताते हैं।
महिलाओं के लिए हैं भस्म आरती के विशेष नियम
रोजाना महाकालेश्वर मंदिर में होने वाली भस्म आरती में महिलाओं के लिए कुछ विशेष नियम हैं। जिस वक्त शिवलिंग पर भस्म चढ़ती है उस वक्त महिलाओं को घूंघट करने को कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि उस वक्त भगवान शिव निराकार रूप में होते हैं। इस रूप के दर्शन करने की अनुमति महिलाओं को नहीं दी जाती है। इसलिए वहां पर मौजूद पंडित भी उन्हें इस आरती के समय घूंघट करने को कहते हैं।
ऐसे शुरू हुई भस्म आरती की परंपरा
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में दूषण नाम के एक राक्षस था। जिसने पूरी उज्जैन नगरी में अपना हाहाकार मचाया हुआ था। नगर वासियों को इस राक्षस से मुक्ति के लिए भगवान शिव की पूजा अर्चना की। इस पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव महाकाल के रूप में प्रकट हुए और दूषण का वध किया। फिर गांव वालों ने भगवान को यहां बसने का आग्रह किया। जिसे भगवान शिव ने स्वीकार किया। तभी भी से वह उज्जैन में महाकाल के रूप में विराजमान है। ऐसा कहा जाता है कि वहां के रक्षक महाकाल हैं। इसलिए मंदिर के पास से कभी भी कोई व्यक्ति घोड़े की सवारी करते नहीं निकलता है।
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इस तरह शुरु हुई भस्म आरती की शुरुआत
भस्म आरती को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और रात के समय मंदिर में लाइन लगाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं इसकी शुरुआत कैसे हुई। शिव पुराण के अनुसार भस्म आरती की शुरुआत तभी से हुई जब भगवान ने दूषण का वध किया था। उसकी राख से पहली बार भगवान शिव का श्रृंगार किया गया था। तभी से इस आरती की शुरुआत हुई। यहां पर कई सारे लोग ऐसे होते हैं, जो मंदिर में रजिस्ट्रेशन कराते हैं और मृत्यु के बाद उनकी भस्म से भगवान शिव का श्रृंगार किया जा सके। लेकिन अब यहां पर गाय के उपले से भी भस्म आरती होती है।
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