हमारे शास्त्रों में कई ऐसे नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन करना जरूरी समझा जाता है। कुछ ऐसे नियम जो सिर्फ अंधविश्वास से जुड़े हुए नहीं होते हैं बल्कि इनका हमारे वास्तविक जीवन से भी गहरा संबंध होता है।
इन्हीं में से एक है महिलाओं का सिर ढककर मंदिर में प्रवेश करना। आपने घर के बड़ों से अक्सर ये सुना होगा कि जब भी मंदिर जाओ या पूजा पाठ में सम्मिलित हो सर को किसी दुपट्टे, रूमाल या साड़ी के पल्लू से ढक लो।
वास्तव में ये नियम महिला और पुरुष दोनों के लिए लागू होता है, लेकिन महिलाओं का इस प्रकार प्रवेश मंदिर के नियमों में से प्रमुख माना जाता है। इस सवाल ने हमारे मन मस्तिष्क को भी झकझोर दिया और इसका जवाब हमें नारद संचार के ज्योतिष अनिल जैन जी से प्राप्त हुआ। आइए आपको भी बताते हैं शास्त्रों में बताई गई इस प्रथा की असल वजह के बारे में।
जब कोई भी महिला या पुरुष मंदिर जैसी किसी जगह पर सिर ढककर प्रवेश करती है तो ये ईश्वर के प्रति सम्मान को दिखाता है। यदि महिलाएं मंदिर में सिर ढककर प्रवेश करती हैं तो वो पूरी तरह भक्ति में लीन हो सकती हैं और उन्हें कोई भी वाह्य आवरण पूजा से विचलित नहीं कर सकता है। ऐसी मान्यता है कि महिलाओं का ध्यान पूजा से न भटके इसलिए उन्हें सर ढककर ही मंदिर में प्रवेश करना चाहिए।
शास्त्रों में इस बात का जिक्र किया गया है कि यदि कोई महिला मंदिर प्रवेश के दौरान साड़ी के पल्लू या दुपट्टे से सिर ढक लेती है तो उसके आस-पास की सभीनकारात्मक ऊर्जाएं उससे दूर हो जाती हैं। ऐसे में महिलाओं को कोई भी बुरी शक्ति प्रभावित नहीं करती है। जिसकी वजह से पूरी एकाग्रता से पूजा पाठ में मन लगाया जा सकता है।
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यदि महिलाएं सिर ढककर मंदिर में प्रवेश करती हैं तो मन मस्तिष्क भी एकाग्र रहता है और पूजा का पूरा लाभ मिलता है। ऐसा माना जाता है कि आकाशीय विद्युत तरंगें हमारे सिर के माध्यम से ही शरीर में प्रवेश करती हैं जो कई बार स्वास्थ्य और मस्तिष्क के लिए हानिकारक भी हो सकती हैं। ऐसा माना जाता है कि महिलाओं का मस्तिष्क इन तरंगों को जल्दी आकर्षित करता है, इसलिए किसी भी दुष्प्रभाव से बचने के लिए यदि सिर को ढका जाता है तो ये महिलाओं के लिए कई तरह से लाभदायक साबित हो सकता है।
यदि बात वैज्ञानिक कारणों की बात करें तो किसी भी तरह के हानिकारक कीटाणु सिर के माध्यम से ही प्रवेश करते हैं और धार्मिक स्थल आमतौर पर ज्यादा लोगों से भरे होते हैं, इस वजह से यदि सर को कपड़े से ढक लिया जाए तो कीटाणुओं का प्रवेश शरीर में होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। इसलिए बीमारियों से बचाव के लिए भी महिलाओं का सिर ढककर मंदिर में प्रवेश करना अच्छा माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि महिलाओं के बाल ज्यादा लंबे होने की वजह से झड़ते हैं और यदि महिलाएं बिना सिर को ढके ही मंदिर में प्रवेश करती हैं तो बालों के टूटने से मंदिर के अशुद्ध होने का डर बना रहता है। दरअसल टूटे हुए बालों को मृत हिस्से के सामान माना जाता है और इससे मंदिर परिसर की पवित्रता को नुकसान होता है। इसी वजह से मंदिर में प्रवेश के दौरान महिलाओं को सिर ढकने और बाल बांधने की सलाह दी जाती है।
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ऐसा माना जाता है कि पूजा -पाठ के दौरान काले रंग का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसे शनि का रंग माना जाता है। बालों का रंग काला होता है और ये नकारात्मकता का प्रतीक हो सकते हैं। इसी वजह से मंदिर में प्रवेश के दौरान महिलाओं को सिर ढकने की सलाह दी जाती है, जिससे जीवन में कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
वास्तव में यदि आप ज्योतिष की न भी मानें तब भी बालों को बिना ढके हुए मंदिर में प्रवेश करने से साफ़-सफाई में भी कमी आती है और खुले बालों के टूटने से मंदिर का भोग भी अपवित्र हो सकता है।
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