हमने बचपन से एक बात समझी है कि भगवा रंग हिंदू धर्म में बहुत जरूरी माना गया है। इस रंग को साधु-संत धारण करते हैं, इस रंग को पवित्र माना जाता है। पर आखिर केसरिया या भगवा रंग ही क्यों जरूरी समझा जाता है? इसके पीछे क्या कोई पौराणिक कारण माना गया है? दरअसल, जब भी हम आध्यात्म की बात करते हैं तब हमेशा ही भगवा रंग को महत्व दिया जाता है। भगवा शब्द भगवान से बना है जिसका अर्थ देवता या फिर त्याग करने वाला होता है।
भगवा रंग को लेकर शास्त्रों में भी कुछ वर्णन दिए गए हैं। आज हम आपको इसी बारे में बताते हैं कि आखिर क्यों भगवा रंग को ही साधु-संत धारण करते हैं।
शास्त्रों में बताई गई एक कहानी
सतयुग में भगवान शिव ने अमर कथा नामक ग्रंथ का वर्णन किया था। इस ग्रंथ में शरीर, आत्मा और योग की बहुत गहरी जानकारी दी गई थी। जब भगवान शिव ने पार्वती देवी को इसके बारे में बताया तब माता पार्वती के मन में त्याग की इच्छा उत्पन्न हुई। उन्होंने अपनी नसें काट लीं और उसके बाद उनके कपड़े खून से रंग गए। इसे केसरिया रंग का महत्व माना गया।
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जब गोरक्षनाथ माता पार्वती के पास प्रार्थना करने गया तब उन्होंने उसे केसरिया रंग में भीगे वस्त्र दिए थे। उस समय से ही केसरिया या लाल रंग के कपड़ों का धार्मिक महत्व बढ़ गया।
वेदों में भी बताया गया केसरिया रंग का महत्व
विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद का प्रथम मंत्र है ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्।।
इस मंत्र का मतलब है, "मैं अग्नि का सम्मान करता हूं, अग्नि के देवता, त्याग के महंत, ज्ञान के दाता"। अग्नि के सबसे करीब भगवा रंग को माना गया है और हिंदू धर्म में अग्नि का महत्व भी बहुत है। केसरिया रंग अग्नि का प्रतीक है इसलिए ही इसका महत्व है।
आखिर क्यों साधु-संतों के लिए अहम है भगवा रंग?
ऐसा माना जाता है कि पुराने जमाने में जब साधु एक आश्रम से दूसरे आश्रम जाया करते थे तब अपने साथ अग्नि लेकर चलते थे। समय के साथ-साथ अग्नि का प्रतीक भगवा ध्वज ले जाने लगे। धीरे-धीरे भगवा रंग हिंदू धर्म का प्रतीक बनता चला गया।
इसका एक और कारण माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि भगवा रंग दो अहम चीजों को दिखाता है। एक संध्या और सूर्योदय दूसरा अग्नि। यही कारण है कि यह रंग शुद्धता का प्रतीक माना गया है। इसका एक और कारण है भगवान हनुमान का केसरिया रंग से संबंध। हनुमान की अराधना में भगवा रंग का सिंदूर ही इस्तेमाल किया जाता है। साधु-संतों द्वारा भी इसी रंग को महत्व दिया जाता है क्योंकि यह ब्रह्मचर्य का रंग है।
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भगवा रंग और शरीर का संबंध
अब थोड़ा आध्यात्म की ओर चलते हैं। भगवा रंग को हम 7 चक्रों से जोड़कर देखते हैं। हमारे शरीर में 7 चक्र होते हैं जो 7 मुख्य रंगों से जुड़े होते हैं। यह सभी इंद्रधनुषीय रंग होते हैं। हर रंग को हमारा शरीर अलग हिसाब से देखता है। लाल चक्र को शरीर का सबसे मुख्य चक्र माना जाता है। यह चक्र हमारे जेनिटल एरिया से जुड़ा होता है।
केसरिया या भगवा चक्र स्वाधिस्थान कहा जाता है। अगर शरीर की सेहत की बात करें, तो यह चक्र बहुत ही महत्वपूर्ण समझा जाता है। इसे यूरिनरी हेल्थ से भी जोड़कर देखा जाता है। बौद्ध धर्म में भी भगवा रंग को खुशहाली का प्रतीक माना गया है। कलर वाइब्रेशन थेरेपी के मुताबिक भगवा रंग ब्रेन को हैप्पी सिग्नल्स देते हैं। डॉक्टर आर.बी.एम्बर की किताब 'Color Therapy: Healing with Color' में भी इसका जिक्र है।
ऐसे में अगर साइंटिफिक रीजन देखें, तो हम पाएंगे कि साधु-संतों द्वारा भगवा पहनना सेहत के लिए भी अच्छा है। इस रंग में आध्यात्मिक शक्ति और हीलिंग पावर मानी गई है।
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Image Credit: Shutterstock/ Unsplash/ Flickr
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