क्या आपने वो फिल्म देखी है? 'निकाह' फिल्म जिसमें वो पाकिस्तानी एक्ट्रेस सलमा आगा थीं। अरे बाबा वही वाली जिसमें तीन तलाक का मामला बहुत ही बखूबी से दिखाया गया था। इस फिल्म को लेकर जितनी कॉन्ट्रोवर्सी हुई थी उसके बाद भी भारतीय मुस्लिम महिलाओं के सच पर बनाई गई ये फिल्म अभी भी काफी रिअलिस्टिक लगती है। अगर इससे ट्रिपल तलाक वाला एंगल हटा भी दिया जाए तो भी इस फिल्म में महिलाओं के साथ होने वाली परेशानियों को दिखाया गया था।
ये फिल्म अपने आप में बहुत ही यूनिक है क्योंकि आज भी इसे भारतीय मुस्लिम महिलाओं के लिए बनाई गई सबसे अच्छी फिल्मों में से एक माना जाता है। डायरेक्टर बीआर चोपड़ा पहले इस फिल्म के लिए जीनत अमान को लेना चाहते थे, लेकिन उनकी छवि फिल्म की कहानी से मैच नहीं करती थी। फिल्म की कहानी आज भी बहुत सच्ची लगती है। तीन तलाक का असर किसी महिला की जिंदगी पर कैसा हो सकता है और एक महिला को इसके बाद क्या-क्या झेलना पड़ता है इसके बारे में भी बताया गया।
ट्रिपल तलाक पर बनी सबसे संवेदनशील फिल्म
जब भाजपा पार्टी ने तीन तलाक को बैन करने की बात की थी तो इसे लेकर बहुत कॉन्ट्रोवर्सी हुई थी। फिल्म 'निकाह' में जो सच्चाई दिखाई गई है क्या वो असलियत नहीं थी। 1982 में आई ये फिल्म अपने समय से काफी आगे थी। इस फिल्म में सलमा आगा की आवाज़ को ही नहीं बल्कि उनकी अदाकारी को भी पसंद किया गया था। ये वो फिल्म थी जिसने भारतीय मुस्लिम महिला की अहमियत को दिखाया था। हम महिला सशक्तिकरण की बात भले ही कितनी भी कर लें, लेकिन क्या वाकई बतौर समाज ऐसी स्थिति है जिसमें महिलाएं सशक्त हो रही हैं?
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शादी के बाद एक लड़की हसीन सपने लिए अपने पति के घर जाती है और उसके बाद एक-एक कर उसके सपने टूटते हैं तब असलियत दिखती है। अगर आपने ये फिल्म देखी है तो आपको याद होगा कि किस तरह से नीलोफर बानो (सलमा आगा का किरदार) अपने पति के साथ के लिए तरसती है। पति के लिए तीन तलाक सिर्फ एक शब्द था, लेकिन जिस तरह से उस खूबसूरत लड़की के खूबसूरत सपने टूटते हैं वो दर्द पर्दे पर बखूबी दिखाया गया था।
तीन तलाक की संवेदनशीलता को इस फिल्म में उसी हिसाब से दिखाया गया था। तीन तलाक के बाद लड़की का मायका भी उसका नहीं रहता और ससुराल में वो रह नहीं सकती।
पढ़ाई से लेकर नौकरी तक तलाक का तमगा होता है नासूर
इस फिल्म में महिलाओं की जिंदगी का एक पहलू और दिखाया गया है। तलाक मिलने के बाद लड़की ने अपनी जिंदगी की गुजर बसर करने के लिए लिखना शुरू किया और नौकरी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन लोगों ने तलाक का तमगा उसके सिर पर लगा दिया था तो ये इतना आसान काम नहीं था। आगे की जिंदगी चलाने के लिए उसे हर कदम पर ये याद दिलाया गया कि उसका तलाक हुआ है। उसके कैरेक्टर पर भी सवाल उठाए जाते हैं और यही कारण है कि उस लड़की को कदम-कदम पर गाना पड़ता है 'दिल के अरमां आंसुओं में बह गए।' वैसे ये गाना भी बहुत ज्यादा फेमस हुआ था।
निकाह हलाला की बात भी रही है बहुत ज्यादा संवेदनशील
इस फिल्म में निकाह हलाला की बात भी कही गई है जिसे लेकर ना जाने कितने विवाद चले हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि नीलोफर ने दूसरी शादी कर ली और किसी तरह से अपनी जिंदगी ढर्रे पर लेकर आई, लेकिन बीती हुई जिंदगी के निशान हमेशा उसके साथ रहे। जब पहला पति उसकी जिंदगी में वापस आया तो दूसरे ने बिना उसकी मर्जी जाने ये समझ लिया कि निकाह हलाला की रस्म के लिए शादी की गई थी। इस्लाम में निकाह हलाला उस महिला के लिए एक रस्म होती है जिसे उसका पति तीन तलाक के बाद दोबारा पाना चाहता है।
ऐसे में महिला को किसी और से शादी कर उसके साथ शादी को मुकम्मल करना होता है और फिर तलाक लेकर दोबारा अपने पति के पास जाना होता है। इस रस्म को लेकर लोगों की अपनी-अपनी राय है और हम उसके बारे में नहीं बल्कि फिल्म के बारे में बात कर रहे हैं।
फिल्म में नीलोफर की अपनी राय कभी नहीं पूछी जाती है और यही तो होता है महिलाओं के साथ। अपनी राय पूछने की जगह उन्हें सिर्फ उस हिसाब से चलाया जाता है जिस तरह से उसका पति या पिता कहे। उसे बस उनकी समझ के हिसाब से काम करना होता है।
फिल्म के गाने कह लीजिए जिनमें गुलाम अली की फेमस गजल 'चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है' शामिल है या फिर इसकी कहानी को कह लीजिए जो 1982 के हिसाब से बहुत ही ज्यादा संवेदनशील थी इस फिल्म में कमी निकालना गलत होगा।
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ये स्टोरी कोई फिल्म रिव्यू नहीं थी बल्कि असल मायने में ये मेरी राय थी। 'निकाह' फिल्म में लोगों ने उसी तरह से एक्टिंग की है जिस तरह से 1982 के दौर में होती थी पर जितना अच्छा इसे दिखाया गया है वो यकीनन काफी बेहतर है।
महिला सशक्तिकरण कहें, महिलाओं की मजबूरी कहें, उनके अपनी जिंदगी पर हक की बात करें इस फिल्म में बखूबी इसे दिखाया गया था। फिल्म का जितना सेंसिटिव सब्जेक्ट था उसके हिसाब से इसे बनाने में बहुत ज्यादा मुश्किल हुई थी और उस दौर में इसके खिलाफ पोस्ट लगना और फिल्म को बैन करने की मांग करना जैसी चीज़ें भी हुई थीं।
जब भी महिलाओं के लिए सेंसिटिविटी की बात होती है तो फिल्मों में उन्हें ग्लैमराइज किया जाता है और मुद्दे वहीं के वहीं रह जाते हैं। पर 'निकाह' में ऐसा नहीं था। शायद यही कारण है कि ये फिल्म मुझे बहुत पसंद है।
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