बॉलीवुड में विमेन सेंट्रिक फिल्में पहले एक-आधी ही बना करती थीं। कुछ ही ऐसे निर्देशक थे जो अपनी फिल्मों में फीमेल कैरेक्टर्स पर मेहनत करना पसंद करते थे। बॉलीवुड की ज्यादातर फिल्मों को देखें तो उसमें हीरोइनों को बस डेकोरेटिव आइटम की तरह सजा दिया जाता है। उनका किरदार फिल्मों में बस हीरो की प्रेमिका तक ही सीमित हो जाता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में हमने इंडस्ट्री में भी बदलाव होते देखे हैं। महिलाएं कैमरे के पीछे भी आई हैं और कैमरे के आगे भी जबरदस्त किरदार में दिखी हैं।
शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल, रत्ना पाठक शाह जैसी अभिनेत्रियों को ऐसे किरदारों में देखा जिसमें महिला के कंधों पर फिल्म हिट कराने की सारी जिम्मेदारी थी। इसी लीग को आगे हेमा मालिनी, माधुरी दीक्षित, श्रीदेवी जैसी अभिनेत्रियों ने आगे बढ़ाया और आज तब्बू, विद्या बालन, कंगना रनौत, प्रियंका चोपड़ा, तापसी पन्नू जैसी अभिनेत्रियां विमेन सेंट्रिक फिल्मों से दर्शकों का उद्धार कर रही हैं।
इस महीने की 8 तारीख को सभी विमेन्स डे मनाएंगे। आप भी घर बैठे अपने परिवार के साथ बॉलीवुड की कुछ जबरदस्त महिला प्रधान फिल्में देखकर विमेन्स डे मना सकते हैं। तो चलिए देखें बॉलीवुड की बेस्ट और मोस्ट इंस्पायरिंग विमेन सेंट्रिक फिल्मों की यह सूची।
फिल्म 'भूमिका' (1977)
श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित 1977 की यह फिल्म आपके मन में उमड़ रहे कई सवालों के जवाब देगी। फिल्म में स्मिता पाटिल का जबरदस्त किरदार है, जिन्होंने एक हेडस्ट्रॉन्ग एक्ट्रेस का किरदार निभाया है। स्मिता पाटिल, उषा नाम की एक ऐसी महिला की भूमिका निभाती हैं जो फिल्मों और संगीत के बैकग्राउंड में पली-बढ़ी है और खुद भी एक एक्ट्रेस बनती है। मगर धीरे-धीरे यह उसकी बेबसी बन जाती है। एब्यूसिव पिता से पीछा छुड़ाने के चक्कर में वह खुद एक एब्यूसिव मैरिज में बंध जाती है। जब उस शादी से निकलकर दूसरी शादी करती है तो फिर खुद को बंधा हुआ महसूस करती है, लेकिन आखिर में वह सब कुछ छोड़ एक बैरागी बन जाती है। इस फिल्म में अमोल पालेकर, अमरीश पुरी, दीना पाठक, अनंत नाग, नसीरुद्दीन शाह जैसे लेजेंड एक्टर्स हैं।
फिल्म 'अर्थ' (1982)
फिल्म 'अर्थ' उस जमाने की बोल्ड फिल्मों में से एक थी। एक स्ट्रॉन्ग स्टोरी लाइन के साथ दो सबसे महत्वपूर्ण और बेहतरीन अदाकाराओं के साथ बनी यह फिल्म अपने समय से काफी आगे थी। फिल्म में शबाना आजमी और स्मिता पाटिल ने अहम भूमिकाएं निभाई हैं। शबाना आजमी ने इसमें एक ऐसी महिला का किरदार निभाया था, जिसका पति उसे दूसरी औरत के लिए छोड़ देता है। मगर वह हिम्मत नहीं हारती और अपनी जिंदगी को समेटकर एक इंडिपेंडेंट इंसान बनती है।
फिल्म का क्लाइमेक्स इसकी यूएसपी था, जिसमें दिखाया गया है कि आखिर में जब महिला का पति उससे माफी मांगने और उसकी जिंदगी में लौटने के लिए आता है, तो वह इंकार कर देती है। एक ऐसे समाज में जहां एक औरत के लिए शादी करना महत्वपूर्ण माना जाता है, वहां ऐसी फिल्म एक उदाहरण सेट करती है कि एक औरत के जीवन में शादी से बढ़कर में अन्य चीजें हैं।
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फिल्म 'दामिनी' (1993)
मीनाक्षी शेषाद्रि द्वारा निभाया गया दामिनी का किरदार एक सशक्त और मजबूत महिला को दर्शाता है। दामिनी सच्चाई के लिए अपने परिवार से लड़ती है। फिल्म में दिखाया गया है कि दामिनी की शादी एक अमीर परिवार में होती है। एक दिन अपने देवर को अपनी नौकरानी का शारीरिक शोषण करते हुए पकड़ लेती है। जहां एक तरफ दामिनी का परिवार यह मामला छुपाने की कोशिश करता है, वहीं दामिनी इसके लिए लड़ती है। मगर इस चक्कर में उसके परिवार वाले उसे घर से निकाल देते हैं और वह अकेले उस लड़की को न्याय दिलाने के लिए लड़ती है।
फिल्म में मीनाक्षी शेषाद्रि की परफॉर्मेंस को उनके करियर की बेस्ट परफॉर्मेंस करार दिया गया था। इतना ही नहीं, फिल्म में सनी देओल और अमरीश पुरी के बीच डायलॉग भी बहुत फेमस हुए थे।
फिल्म 'लज्जा' (2001)
यह फिल्म महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार की कहानी दर्शाती एक हार्ड-हिटिंग फिल्म है। रेखा, माधुरी दीक्षित, मनीषा कोइराला (मनीषा कोइराला के हेल्दी टिप्स) और महिमा चौधरी प्रभावशाली चरित्रों को चित्रित करती हैं जिन्हें किसी न किसी तरह से पुरुषों द्वारा अपने स्वार्थ के लिए प्रताड़ित और शोषण किया जाता है। यह फिल्म न्यूयॉर्क के भव्य शहर से शुरू होती है और उत्तर प्रदेश के एक दूरदराज के गांव में समाप्त होती है। फिल्म एक अच्छे नोट पर खत्म होती है और दर्शाती है कि तमाम कुरीतियों से लड़कर ये महिलाएं आगे आती हैं।
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फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश' (2014)
मेगास्टार श्रीदेवी का बॉलीवुड में कमबैक इसी फिल्म से हुआ था। यह फिल्म श्रीदेवी द्वारा निभाई गई एक आम गृहिणी शशि गोडबोले की कहानी है। यह दर्शाती है कि कैसे एक गृहिणी, एक पत्नी और एक मां के रूप में प्रतिभाशाली गृहिणी को उसकी बेटी और पति द्वारा बार-बार नीचा दिखाया जाता है। क्योंकि शशि को अंग्रेजी बोलना नहीं आता है तो बार-बार उसका मजाक उड़ाया जाता है, लेकिन फिर तभी उसे अपनी भतीजी की शादी के लिए अमेरिका जाना होता है।
अमेरिका की यात्रा के दौरान शशि इंग्लिश बोलना सीखती है और ऐसे लोगों से मिलती है, जो उसे उसकी वैल्यू समझाते हैं। निर्देशक गौरी शिंदे की यह सरल कहानी बहुत प्रभावशाली है, जो दिखाती है कि एक गृहिणी घर संभालने के साथ-साथ भी बहुत कुछ कर सकती है।
इसके अलावा 'लिपस्टिक अंडर माई बुरखा', 'मर्दानी', 'मैरी कॉम', 'पिंक', आदि ऐसी बहुत फिल्में हैं जो महिला के साहस की कहानी दर्शाती हैं। आप चाहें तो इस महिला दिवस इन फिल्मों को देखकर प्रेरित हो सकते हैं।
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