नागा साधु हिंदू परंपरा के तपस्वी योद्धा माने जाते हैं जो महाकुंभ मेले का मुख्य आकर्षण माने जाते हैं। मान्यता है कि नागा साधु अपने हठ योग और कठिन तपस्या से ही ये उपाधि प्राप्त करते हैं और ये शैव और वैष्णव संप्रदायों से संबंधित संन्यासी होते हैं। महाकुंभ के शाही स्नान की शुरुआत ही नागा साधुओं के स्नान करने से होती है। उनके अनुष्ठान, विशेष रूप से औपचारिक शाही स्नान आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व रखते हैं। महाकुंभ के इस पवित्र शाही स्नान से पहले, नागा साधु एक अनुष्ठानिक श्रृंगार करते हैं जिसे 17 श्रृंगार के रूप में जाना जाता है। यह प्रथा केवल एक अनुष्ठान नहीं है बल्कि प्राचीन परंपराओं और मान्यताओं में निहित एक गहन आध्यात्मिक कार्य भी है। नागा साधुओं का शाही स्नान से पहले 17 श्रृंगार करना जरूरी माना जाता है और इसके बिना स्नान का फल नहीं मिलता है और शाही स्नान भी अधूरा माना जाता है।
नागा साधु किसी न किसी अखाड़े का हिस्सा होते हैं और सांसारिक जीवन को त्यागकर, वे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करते हैं। वो भगवान शिव या विष्णु की पूजा में समर्पित रहते हैं। वैसे तो नागा साधुओं से जुड़े न जाने कितने रहस्य हैं जो उन्हें आम लोगों से अलग बनाते हैं, लेकिन सबसे बड़ा रहस्य है शाही स्नान के पहले किया जाने वाला 17 श्रृंगार। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इस रहस्य के बारे में विस्तार से।
महाकुंभ में शाही स्नान से पहले नागा साधु 17 श्रृंगार क्यों करते हैं?
महाकुंभ के नागा साधुओं के रहस्यमयी जीवन को लेकर कई बातें प्रचलित हैं। नागा साधुओं को भगवान शिव का अनुयायी माना जाता है और वो निरंतर शिव की आराधना में लीन रहते हैं। नागा साधुओं का पूरा जीवन एक गज कपड़े और एक मुट्ठी भभूत के सहारे निकलता है। ये भभूत को अपना श्रृंगार मानते हैं और अपने आपको आराध्य भगवान शिव का अंश मानते हैं। इसी वजह से नागा साधु श्रृंगार के रूप में भगवान शिव की प्रिय चीजों को शरीर पर धारण करते हैं। जिस तरह हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं का सोलह श्रृंगार करना जरूरी माना जाता है, वैसे ही नागा साधुओं के लिए शिव जी से जुड़े श्रृंगार को धारण करना जरूरी माना जाता है। ये लोग इसी श्रृंगार में खुद को सुसज्जित महसूस करते हैं।
इसे जरूर पढ़ें: Maha Kumbh 2025: महाकुंभ में कौन करता है सबसे पहले शाही स्नान? जानें इससे जुड़े नियम, विधि और लाभ
नागा साधुओं के 17 श्रृंगार का महत्व
शाही स्नान के लिए नदी में प्रवेश करने से पहले, नागा साधु 17 श्रृंगार में शामिल होते हैं, जो एक अनुष्ठान श्रृंगार प्रक्रिया मानी जाती है। इस प्रक्रिया के प्रत्येक चरण का वैदिक परंपराओं में निहित प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक महत्व है। इसे शाही स्न्नान से पहले करना जरूरी माना जाता है क्योंकि 17 श्रृंगार प्राचीन वैदिक रीति-रिवाजों का पालन करने की एक प्रक्रिया माने जाते हैं जहां किसी भी बड़े अनुष्ठान से पहले देवताओं को विशिष्ट आभूषणों और पदार्थों से सजाया जाता था। नागा साधु, जिन्हें महाकुंभ के दौरान दिव्यता का अवतार माना जाता है, अपनी दिव्य स्थिति का सम्मान करने के लिए ऐसी ही परंपराओं का पालन करते हैं।
17 श्रृंगार में प्रत्येक श्रंगार आध्यात्मिक शुद्धि की दिशा की तरफ कदम बढ़ाता है।
यह प्रक्रिया शाही स्नान के दौरान शरीर और मन को दिव्य ऊर्जा प्राप्त करने के लिए तैयार करती है। ऐसा माना जाता है कि यह श्रृंगार नकारात्मक ऊर्जाओं के खिलाफ एक ढाल का काम करता है। इसके साथ ही, नागा साधु त्याग का जीवन जीते हैं और 17 श्रृंगार परमात्मा के प्रति उनकी भक्ति का प्रतीक माने जाते है। खुद को 17 श्रृंगार से सुसज्जित करके वे अपनी आध्यात्मिक यात्रा और शाही स्नान के महत्व का सम्मान करते हैं।
क्या होता है नागा साधुओं का 17 श्रृंगार?
नागा साधुओं के 17 श्रृंगार में भस्म , लंगोट, चंदन, पांव में चांदी या लोहे के कड़े, पंचकेश यानी जटा को पांच बार घुमाकर सिर में लपेटना, रोली का लेप, अंगूठी, फूलों की माला, हाथों में त्रिशूल या चिंता, डमरू, कमंडल, तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, गले में रुद्राक्ष शामिल होते हैं। शरीर पर भस्म लगाना पवित्रता और संसार से मोह-मुक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह भगवान शिव के प्रति उनकी भक्ति को दर्शाता है। रुद्राक्ष को भगवान शिव का आभूषण माना जाता है। इसे धारण करना मानसिक शांति और ध्यान में सहायक होता है। कुंडल यानी बड़े झुमके नागा साधुओं के संन्यास और तपस्या का प्रतीक माने जाते हैं।
चंदन का टीका लगाना मन को शांत करता है और शिव की कृपा को दर्शाता है। नागा साधु त्रिपुंड तिलक भी माथे पर लगाते हैं, जो सत्व, रजस, तमस का प्रतीक है। सिर पर मुकुट साधु की दिव्यता का प्रतीक है। फूलों की माला भक्ति और पवित्रता का प्रतीक मानी जाती है। त्रिशूल को भगवान शिव का अस्त्र माना जाता है और ये नागा साधुओं का मुख्य श्रृंगार होता है। त्रिशूल अज्ञानता के विनाश और सत्य की स्थापना का प्रतीक है। हाथ में कमंडल साधुओं की सरलता और तपस्वी जीवन का प्रतीक है। साधुओं के पास डंडा होता है, जो उनके अनुशासन और तपस्या को दर्शाता है। उनकी जटाएं कठोर तपस्या और संसार से अलगाव का प्रतीक हैं। पशु-चर्म पर बैठना त्याग और तपस्या का प्रतीक होता है। वहीं ये शाही स्नान से पहले शरीर के शुद्धिकरण के लिए तेल लगाते हैं और वैदिक मंत्रों का उच्चारण भी करते हैं।
इसे जरूर पढ़ें: Maha Kumbh 2025: अगर महाकुंभ में नहीं हो पा रहे हैं शामिल, तो घर पर कैसे करें शाही स्नान
महाकुंभ में शाही स्नान क्या है?
महाकुंभ में शाही स्नान एक पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो कुंभ मेले के दौरान पवित्र नदियों में किया जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इस शुभ अवसर पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम में डुबकी लगाने को बहुत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इन नदियों में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शाही स्नान केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक है। नागा साधुओं के शाही स्नान करने से ही स्नान की शुरुआत होती है। शाही स्नान के पहले साधु-संत भव्य शोभायात्रा के साथ पवित्र नदियों की ओर बढ़ते हैं। इस अनुष्ठान में वे भगवान शिव की उपासना और वैदिक परंपराओं का पालन करते हुए स्नान करते हैं। यह आयोजन न केवल साधुओं के लिए, बल्कि अन्य करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए भी आध्यात्मिक शक्ति और आस्था का केंद्र माना जाता है।
नागा साधुओं के कई रहस्यों में से उनका 17 श्रृंगार करना भी जरूरी माना जाता है। शाही स्नान को पूर्ण करने के लिए यह आवश्यक होता है। अगर आपका इससे जुड़ा कोई भी सवाल है तो आप कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
Images:freepik.com
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों