भगवान भोलेनाथ के पूजन में भस्म का विशेष महत्व बताया गया है। आपको बता दें कि बारह ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योर्तिलिंग जो कि उज्जैन में महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां भगवान शिव की भस्म से आरती की जाती है। यह प्राचीन परंपरा सदियों से चली आ रही है। भगवान शिव जितने सरल और भोले हैं, उतने ही रहस्यमयी भी हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि शिवपूजन के दौरान भोलेनाथ को भस्म क्यों अर्पित की जाती है।
शिव पुराण में यह बताया गया है कि भगवान शिव का प्रमुख वस्त्र भस्म है क्योंकि भस्म ही सृष्टि का सार है एक दिन इस पूरे संसार को भस्म के रूप में परिवर्तित होना है। आपको बता दें कि भगवान शिव के शरीर पर लगाई जाने वाली भस्म साधारण आम की लकड़ी की राख नहीं होती है, बल्कि ऐसा कहा जाता है कि यह काशी में जलने वाली सुबह की पहली चिता की राख होती है जिसे चिता भस्म के नाम से भी जाना जाता है।
भस्म को लेकर एक कथा प्रचलित है जिसमें यह बताया गया है कि जब माता सती क्रोध में आकर हवन कुंड में प्रवेश की थीं, तब भगवान शिव उनके देह को आकाश से लेकर पृथ्वी लोक में हर जगह घूम रहे थे। उनकी यह दशा भगवान विष्णु से देखी नहीं गई थी और वे माता सती के शव को छूकर उन्हें राख (भस्म) में बदल दिए थे। यह देखकर भोलेनाथ दुखी हो गए और माता सती के राख को अपने पूरे शरीर पर लगा लिए। कहा जाता है कि इस कारण से भी भगवान शिव को भस्म अर्पित की जाती है। (शिव मंदिर)
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इसके अलावा एक और भी कथा प्रचलित है, जिसमें यह बताया गया है कि भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। कैलाश पर्वत का स्थान बर्फ से ढके हुए होने के कारण बहुत ठंडा रहता है। इसलिए भगवान शिव स्वयं को उस ठंड से बचाए रखने के लिए अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। (सभी ज्योतिर्लिंग जमीन के नीचे क्यों स्थित हैं)
शिव पुराण में भस्म बनाने की विधि बताई गई है जिसके अनुसार कपिला गाय के सूखे हुए गोबर, शमी, पीपल, वट, अमलतास, बेर और पलाश (पलाश के फूलों के फायदे) के लकड़ियों को साथ में जलाकर मंत्रोच्चार किए जाते हैं। बाद में जब यह सभी लकड़ियां जल कर राख बन जाती है इसे ही भस्म के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस भस्म को कपड़े की मदद से छान लिया जाता है और शिवपूजन में भस्म के रूप में इस्तेमाल की जाती है।
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भगवान शिव को भस्म लगाने के पीछे शिव पुराण और कथाओं में ये मान्यताएं बताई गई हैं। यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो इसे लाइक और शेयर जरूर करें। ऐसे ही धार्मिक लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
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