Prayagraj Maha Kumbh 2025:संगम नगरी प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ 2025 की तैयारियां जोरों पर है। यह धार्मिक महोत्सव 12 साल के अंतराल पर लगाया जाता है। भारत में आयोजित होने वाले इस पर्व में लाखों श्रद्धालु और साधु-संत गंगा, यमुना और सरस्वती के समागम यानी संगम में स्नान करने आते हैं। साथ ही विशेष आकर्षण साधु-संतों की टोली होती है, जो अलग-अलग अखाड़ों के प्रतिनिधित्व होते हैं। साधु-संतों के प्रवेश को पेशवाई कहा जाता है। ऐसे में क्या आपने सोचा है कि आखिर इनके प्रवेश को पेशवाई क्यों कहा जाता है। इस लेख में आज हम आपको पेशवाई का मतलब बताने जा रहे हैं।
साधु-संतों का आगमन होता है बेहद खास
महाकुंभ में अलग-अलग संस्कृति और परंपराओं के लोग आते हैं, जिसकी वजह इस पर्व को विभिन्न सांस्कृतिक का समागम स्थल कहना गलत नहीं होगा। इस उत्सव में श्रद्धालुओं के साथ साधु-संतों का भी विशेष महत्व होता है। ऐसे में महाकुंभ में प्रवेश करने वाले साधु-संतों को पेशवाई कहा जाता है। ऐसे में साधु-संत को महाकुंभ का वाहक कहा जाता है।
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साधु-संतों को क्यों कहा जाता है पेशवाई?
प्रयागराज में देश ही नहीं दुनिया भर के लोगों के साथ विख्यात साधुओं का भी जमावड़ा देखने को मिलता है। बता दें, जिस वक्त महाकुंभ में अखाड़ों के साधु संत राजसी ठाठ बाट के साथ संगम क्षेत्र महाकुंभ में आगमन करते हैं, उसे पेशवाई कहा जाता है। अब ऐसे में यह समझना बहुत जरूरी है कि आखिर पेशवाई ही क्यों कहा जाता है। बता दें कुंभ में जब संत प्रवेश करते थे, तो इनका स्वागत पेशवा करते थे। पेशवा संतों को महाराजा की तरह उन्हें कुंभ क्षेत्र में प्रवेश कराते थे। ऐसे में पेशवा के इस स्वागत को पेशवाई नाम दे दिया गया।
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