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Significance of peshwai in mahakumbh

Maha Kumbh 2025: महाकुंभ में क्या होती है साधु-संतों की 'पेशवाई'? इसके दर्शन मात्र के लिए उमड़ती है लाखों लोगों की भीड़

प्रत्येक 12 साल बाद प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। इसमें भक्तों की भीड़ के साथ साधु-संतों का जमावड़ा लगता है। इस मेले का मुख्य आकर्षण पेशवाई को माना जाता है। आइए जानें इसके बारे में विस्तार से।
Editorial
Updated:- 2024-12-20, 14:46 IST

प्रयागराज में जल्द की महाकुंभ का भव्य आयोजन होने वाला है। महाकुंभ मेला हर 12 साल बाद लगता है जिसका न सिर्फ धार्मिक बल्कि ज्योतिष महत्व भी है। इस साल यह मेला 13 जनवरी से आरंभ होकर 26 फरवरी 2025 महाशिवरात्रि के दिन तक चलेगा। 45 दिनों तक चलने वाले इस महा कुंभ मेले की तैयारियां जोरो-शोरों से चल रही हैं और प्रयागराज में इस मेले की धूम है। इस मेले में न सिर्फ भारत के बल्कि पूरी दुनिया के श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और भक्त त्रिवेणी में शाही स्नान करते हैं।

महाकुंभ में भारी संख्या में साधु-संत पहुंचते हैं, जिनके बिना इस आयोजन को पूर्ण ही नहीं माना जाता है। इस दौरान नागा साधुओं का आगमन मुख्य माना जाता हैं। महाकुंभ में साधु-संतों की पेशवाई के बाद ही शाही स्नान का शुभारंभ होता है। इस मेले में कई अखाड़ों के साधुओं की पेशवाई होने के साथ मेले की शुरुआत होती है। आइए आपको बताते हैं क्या होती है महाकुंभ में साधु-संतों की पेशवाई और ये जरूरी क्यों समझी जाती है।

महाकुंभ में क्या होता है साधुओं का अखाड़ा?

maha kumbh peshwai significance

महाकुंभ में कई अखाड़ा के साधु एकत्रित होकर शाही स्नान करते हैं। वैसे तो अखाड़ा शब्द कुश्ती से जुड़ा होता है, लेकिन जब हम महाकुंभ की बात करते हैं तो साधु-संतों के समूह को अखाड़ा नाम से बुलाया जाता है। इस तरह को टोलियों को अखाड़ा नाम देने के पीछे भी एक प्राचीन कहानी है जिसका आज भी जिक्र किया जाता है।

दरअसल आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में सनातन धर्म की रक्षा के लिए सभी साधू-संतों और तपस्वियों को एकत्रित करने के प्रयास किया और उन्होंने इन सभी के झुंड को अखाड़ा का नाम दिया।

अखाड़े की स्थापना करने का उद्देश्य मात्र इतना था कि सनातन धर्म को बढ़ावा मिले और इसका कभी भी समापन न हो सके। ऐसा माना जाता है कि आज भी अखाड़ा के साधू-संत न सिर्फ बुद्धि कौशल से निपुण होते हैं बल्कि वो शास्त्रार्थ में भी अन्य लोगों से आगे होते हैं। अखाड़ा को साधुओं को सनातन धर्म का पूर्ण ज्ञान होने के साथ वो इस धर्म को बढ़ावा देने का भी प्रयास करते रहते हैं।

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महाकुंभ में क्या होती है साधु-संतों की पेशवाई?

what is peshwai

प्रयागराज में प्रत्येक 12 साल बाद होने वाले महाकुंभ का अपना विशेष महत्व तो है ही और इस दौरान साधुओं की पेशवाई मुख्य आकर्षण का केंद्र होती है। इस आयोजन में लाखों साधु एकत्रित होते हैं और शोभायात्रा निकालते हैं। अगर हम पेशवाई की बात करें तो संतों की शोभा यात्रा मुख्य मानी जाती है।  

महाकुंभ में प्रस्थान करने के लिए साधु-संत अपने अखाड़े से विशाल शोभा यात्रा निकालते हैं और इसी को पेशवाई कहा जाता है। इस शोभायात्रा में बैंड-बाजा को भी शामिल किया जाता है और हाथी-घोड़े की सजावट भी देखने को मिलती है। हाथी-घोड़े से सुसज्जित रथों के ऊपर बैठकर अखाड़े के मुख्य साधु इस शोभा यात्रा में शामिल होते हैं।

अखाड़े के कुछ प्रमुख साधु जिन्हें महंत भी कहा जाता है वो रथ के ऊपर सवार होते हैं, वहीं अन्य अनुयायी और साधुगण नाचते-गाते रथ के साथ पैदल यात्रा करते हैं। महाकुंभ के दौरान साधुओं की पेशवाई में अखाड़ों के प्रमुख महंत, नागा साधु और भक्त होते हैं।

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शाही स्नान से पहले साधुओं की पेशवाई क्यों मानी जाती है जरूरी

महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व होता है, लेकिन इससे पहले साधुओं की पेशवाई को जरूरी माना जाता है। शाही स्नान महाकुंभ के दौरान कुछ विशेष तिथियों जैसे मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के दौरान आयोजित होते हैं।

महाकुंभ में साधुओं की भव्य शोभायात्रा के साथ पेशवाई  करने के बाद ही शाही स्नान में विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत और नागा साधु सबसे पहले स्नान करते हैं।  

मान्यता यह है कि इन अखाड़े के नागा साधुओं के स्न्नान से पूर्व कोई भी स्नान नहीं कर सकता है। मान्यतानुसार नागा साधुओं के शाही स्नान के बाद ही गृहस्थ या आम श्रद्धालु संगम में डुबकी लगा सकते हैं। इसी वजह से पेशवाई को जरूरी माना जाता है, क्योंकि इसके बाद ही कोई शाही स्नान कर सकता है।

महाकुंभ में कैसे होता है साधु-संतों का स्वागत

peshwai of sadhu sant in maha kumbh

महाकुंभ में साधु-संतों का स्वागत बेहद भव्य और पारंपरिक तरीके से किया जाता है। जैसे ही ये संत संगम नगरी में प्रवेश करते हैं, श्रद्धालु रस्ते पर खड़े होकर उनका स्वागत करते हैं। हर अखाड़े के साधु-संत अपने-अपने ध्वज को हाथ में लेकर पूरे सम्मान के साथ नगर में प्रवेश करते हैं। इस दौरान अखाड़ों की ध्वजा उनकी पहचान और शक्ति का प्रतीक होती है।

साधु-संतों की टोली अपने अनुयायियों और अखाड़े के सदस्यों के साथ पूरे रीति-रिवाज और परंपराओं का पालन करते हुए पेशवाई के रूप में शहर में निकलती है। महाकुंभ का यह दृश्य किसी उत्सव से कम नहीं होता है जहां श्रद्धालु साधु-संतों के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। इस दौरान ढोल-नगाड़ों की गूंज, रथों की सजावट और अखाड़ों की भव्य शोभायात्रा माहौल को दिव्य बना देती है।

किसी भी महाकुंभ में साधुओं की पेशवाई को महत्वपूर्ण माना जाता है और इसके बिना आयोजन को पूर्ण नहीं समझा जाता है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।

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