Hanuman In Mahabharat: इस शर्त पर हनुमान जी हुए थे महाभारत के युद्ध में सम्मिलित

महाभारत युद्ध में पांडवों को विजय प्राप्त कराने में हनुमान जी की मुख्य भूमिका मानी जाती है। आइए जानते हैं इसके पीछे का तथ्य। 

hanuman shri krishna

Hanuman In Mahabharat: हिन्दू धर्म में महाभारत को न सिर्फ एक पवित्र ग्रंथ के रूप में जाना जाता है बल्कि जीवन से जुड़ी कई परिस्थितियों से निकलने के लिए यह एक प्रेरणादायक महाकाव्य भी है। माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में पांडवों को विजय श्री कृष्ण के कारण मिली थी लेकिन हमारे एक्सपर्ट ज्योतिषाचार्य डॉ राधाकांत वत्स ने हमें इस विषय का एक और पहलू भी बताया जो यकीनन आप में से बहुत से लोगों को पता ही नहीं होगा।

हमारे एक्सपर्ट द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, महाभारत के युद्ध में पांडवों को विजय हनुमान जी के कारण मिली थी। श्री कृष्ण के कहने पर हनुमान जी ने महाभारत युद्ध में सम्मिलित होने का निर्णय लिया था। हालांकि पवनपुत्र ने युद्ध में भाग लेने से पूर्व श्री कृष्ण के सामने एक शर्त रखी थी और माना जाता है कि इसी शर्त को पूरा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता का सार अर्जुन को समझाया था।

हनुमान जी ने तोड़ा अर्जुन का घमंड

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  • महाभारत युद्ध से पहले एक बार श्री कृष्ण ने हनुमान जी और अर्जुन दोनों को द्वारका नगरी बुलाया। श्री कृष्ण ध्यान मग्न थे तो अर्जुन और हनुमान जी महल के बाहर समुद्र के किनारे उनके ध्यान से बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगे।
  • इतने में अर्जुन ने हनुमान जी को अपने दुनिया में सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने की बात कह डाली जिसके बाद हनुमान जी को इस बात का आभास हुआ कि अर्जुन को उनकी धनुर्विद्या पर घमंड हो गया है। अर्जुन ने प्रभु श्री राम का उपहास उड़ाते हुए ये तक कह दिया कि पत्थर का सेतु बनाना समय को बर्बाद करने जैसा था राम जी को तो बाण का सेतु बनाना चाहिए था।
  • अपने प्रभु के प्रति इन वचनों को सुन हनुमान जी ने अर्जुन से शर्त लगाई कि वह बाण का सेतु बनाएं और अगर उनके पैर रखने से अर्जुन का सेतु ध्वस्त नहीं हुआ तो वह मान लेंगे कि अर्जुन श्री राम से बड़े धनुर्धर हैं और अग्नि में अपनी देह त्याग देंगे। अर्जुन ने तीन बार बाण का सेतु बनाया और तीनों बार सेतु टूट गया। सेतु टूटने के साथ ही अर्जुन का घमंड भी चूर चूर हो गया।

श्री कृष्ण ने सुनाया हनुमान को गीता का सार

Bhagavad Gita

  • इस घटना के बाद श्री कृष्ण (श्री कृष्ण की मृत्यु का रहस्य) ने दोनों को दर्शन दिए। जहां एक ओर श्री कृष्ण ने अर्जुन को उनकी भूल का एहसास कराया तो वहीं दूसरी ओर उन्होंने हनुमान जी से ध्वजा के रूप में अर्जुन के रथ पर स्थापित होने का आग्रह किया। हनुमान जी ने प्रभु की बात तो मानी लेकिन एक शर्त रख डाली।
  • शर्त यह थी कि जिस प्रकार राम अवतार में उन्होंने हनुमान को युद्ध के साथ साथ ज्ञान भी दिया था उसी प्रकार उन्हें महाभारत युद्ध में भी ज्ञान का सार चाहिए। माना जाता है कि श्री कृष्ण ने गीता (भगवद गीता के पाठ के लाभ) का सार अर्जुन की आड़ में हनुमान जी की विनती पर उन्हें सुनाया था।

हनुमान जी ने पांडवों को जिताया महाभारत का युद्ध

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  • महाभारत युद्ध के दौरान हनुमान जी पूरे 18 दिनों तक ध्वजा के रूप में अर्जुन के रथ पर विराजमान थे। महाभारत ग्रन्थ के अनुसार, अर्जुन और उनके रथ की रक्षा हनुमान जी ने की थी।
  • ऐसा माना जाता है कि अर्जुन का रथ तो दिव्य और विस्फोटक बाणों के कारण कब का ध्वस्त हो जाता है लेकिन हनुमान जी के विराजित होने की वजह से युद्ध में अर्जुन और उनका रथ सुक्षित रहे।
  • ग्रंथों के अनुसार, युद्ध के बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन को रथ से उतरने के लिए कहा और खुद भी रथ से दूर चले आए और जब श्री कृष्ण के कहने पर हनुमान जी ने अर्जुन का रथ छोड़ा तो वह दो पल में ही भयंकर अग्नि की चपेट में आ गाया और रथ के चिथड़े चिथड़े उड़ गए।

तो ये थी महाभारत युद्ध से जुड़ी हनुमान जी की उपस्थिति की कथा। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर जरूर शेयर करें और इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ। आपका इस बारे में क्या ख्याल है? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

Image Credit: Freepik

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