भगवान राम की तरह श्री कृष्ण के आगे क्यों नहीं लगता मर्यादा पुरुषोत्तम?

आखिर क्यों श्री राम के आगे मर्यादा पुरुषोत्तम लगाया जाता है, लेकिन श्री कृष्ण को मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं कहा जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे का कारण।    
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भगवान विष्णु के एक अवतार थे श्री राम जो त्रेता युग में जन्में थे वहीं, दूसरे अवतार थे भगवान श्री कृष्ण जो द्वापरयुग में अवतरित हुए थे। दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार और दोनों में ही समान दिव्यता एवं समान शक्ति फिर आखिर क्यों श्री राम के आगे मर्यादा पुरुषोत्तम लगाया जाता है, लेकिन श्री कृष्ण को मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं कहा जाता है। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं इसके पीछे का कारण।

क्यों श्री कृष्ण को नहीं कहा जाता है मर्यादा पुरुषोत्तम?

श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, लेकिन श्री कृष्ण को छलिया या रणछोड़ के नाम से जाना जाता है। इसके पीछे दो कारण हैं- पहला कारण तो धार्मिक दृष्टि से है वहीं, दूसरा कारण सामाजिक शिक्षा के रूप में है जिसे स्वयं श्री कृष्ण ने दिया था।

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धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि श्री राम ने अपने काल में हर परिस्थिति में मर्यादा का अनुसरण किया था। ताड़का वध से लेकर रावण वध तक वनवास के दौरान कठिन परिस्थियों में रहते हुए और यहां तक कि राम राज्य के समय में भी मर्यादा नहीं छोड़ी।

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श्री राम ने मर्यादा के चलते ही माता कैकेयी के कहने पर 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया। मर्यादा को निभाने के उद्देश्य से ही युद्ध में विजय होने से पहले ही श्री राम ने विभीषण को लंका का राजा बना दिया था। मर्यादा पालन करते हुए एक पत्नी धर्म पर चले।

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वहीं, इसके विपरीत दानवों और राक्षसों का अंत करने के लिए श्री कृष्ण ने कई बार मर्यादा का उलंघन किया। श्री कृष्ण ने कालयवन राक्षस को छल से गुफा में ले जाकर ऋषि के माध्यम से मृत्यु के घाट उतारा, जरासंध को भीम के हाथों छल से मरवाया।

श्री कृष्ण ने कूटनीति के चलते महाभारत युद्ध में भी कई बार छल का प्रयोग करते हुए कौरवों का विनाश सुनिश्चित किया। श्री कृष्ण ने समाज की कुरीतियों का खंडन करते हुए बिना विवाह के राक्षस के चंगुल से छूटी सभी कन्याओं को आदर सहित अपने महल में स्थान दिया।

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ऐसे में इन सब घटनाओं और श्री कृष्ण एवं श्री राम की लीलाओं में अंतर को देखते हुए श्री कृष्ण को मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं कहा जाता है। वहीं, इसके पीछे की सामाजिक शिक्षा यह है की समय काल के अनुसार व्यक्ति को अपनी नीतियों में परिवर्तन करना आवश्यक है।

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image credit: herzindagi

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