मंदिर में या घर में भगवान की पूजा और आरती के कई नियम बनाए गए हैं और उनका अनुसरण हम सभी करते हैं। ऐसा माना जाता है कि उन नियमों के पालन से घर में सुख समृद्धि आती है और खुशहाली बनी रहती है।
ऐसे ही नियमों में से एक है आरती के बाद चारों तरफ जल छिड़कना या आचमन करना। इस दौरान कई चीजों का इस्तेमाल भी किया जाता है जैसे आचमनी, शंख आदि जिनसे आप आरती के चारों ओर जल का छिड़काव करती हैं।
आपने देखा होगा कि अक्सर मंदिर या घर में आरती करने के बाद शंख में जल भरकर उस पर छिड़का जाता है। लेकिन आज हम इसके कारणों और इसके महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें आरती के चारों ओर आचमन करने के कारण के बारे में।
जल को वरुण देव के रूप में पूजा जाता है और पुराणों में इस बात का जिक्र है कि जब किसी भी वस्तु की रक्षा जल से की जाती है तो उस पर वरुण देव की कृपा होती है। इसलिए जब भगवान के दिव्य रूप की आरती की परिक्रमा पूरी हो जाती है, तब उसकी लौ और ज्यादा दिव्य हो जाती है। इस आरती की ज्योति की पवित्रता बनाए रखने के लिए पानी से आचमन किया जाता है।
पूजा में जल जो कि वरुण देव का प्रतीक है उसे शंख से या आचमनी से आरती के चारों ओर छिड़का जाता है और अपने चारों ओर परिक्रमा की जाती है। इसे ज्योतिष में बहुत ही शुभ माना जाता है।
आरती के समापन के बाद भक्त अपने दोनों हाथों को कुछ सेकंड के लिए आरती की ज्योत के ऊपर घुमाते हैं फिर उसे अपने सिर पर रखते हैं। चूंकि हल को अत्यंत पवित्र माना जाता है इसलिए आरती में आचमन करने के बाद मंदिरों में पुजारी इसी जल को लोगों के ऊपर भी छिड़कते हैं।
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ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख में जल भरकर उस पर चंदन का लेप लगाकर उससे आरती की थाली के चारों ओर जल छिड़कने से वातावरण शुद्ध और पवित्र बना रहता है। यही वजह है कि पूजा स्थान पर शंख या फिर किसी तांबे के पात्र में जल भरकर रखा जाता है और इसे आरती के बाद आचमनी से छिड़का जाता है। ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा भी दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का घर में वास होता है।
शास्त्रों में बताया गया है यदि हम किसी भी पूजा-पाठ के बाद आरती नहीं करते हैं तो वह पूजा अधूरी मानी जाती है। पूजा का फल तभी मिलता है जब आप इसके समापन में विधि-विधान से आरती करती हैं।
आरती के माध्यम से हम अपने घर परिवार की रक्षा की प्रार्थना करते हैं और यह भगवान की कृतज्ञता दिखाने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है। आरती हमेशा कपूर या बत्ती से की जाती है और इसे घड़ी की सुई की दिशा में घुमाते हुए किया जाता है।
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आचमनम (पूजा पाठ से पहले क्यों किया जाता है आचमन)का उच्चारण आचमन, आचमन, आचमन, आचमनम्, आचमनं, आचमनम, आचमन आदि के रूप में भी किया जाता है। हिंदू धर्म में किसी भी पूजा -पाठ या आरती का आरंभ और समापन आचमन से किया जाता है। आचमनम सभी 'वैदिक कर्मों' में बहुत आसान और सबसे सरल तरीका माना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार पानी की कुछ बूंदों को भगवान श्री महाविष्णु के नामों का उच्चारण करते हुए आरती के चारों ओर छिड़कना आचमनम कहा जाता है।आचमनम एक शुद्धिकरण अनुष्ठान है, जिसमें व्यक्ति भगवान श्री महा विष्णु के दिव्य नामों का पाठ करते हुए जल के माध्यम से शुद्धिकरण करता है।
वास्तव में आरती के बाद आचमन करना बहुत शुभ अनुष्ठान माना जाता है और इसे पूजा का सही तरीका भी कहा जाता है।
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