श्री कृष्ण को माखन अति प्रिय था। यशोदा मैय्या कान्हा को दिन में 8 बार भोजन कराती थीं, जिसमें मुख्य भोजन के अलावा माखन भी होता था लेकिन इसके बाद भी कान्हा की आदत थी माखन दूसरों के घर से चुराकर खाने की। ऐसा नहीं था कि यशोदा मैय्या कान्हा को माखन खाने से रोकती थीं, मगर फिर भी श्री कृष्ण की आदत थी कि वह माखन चुराकर ही खाना पसंद करते थे। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से जब हमने इस बारे में पूछा तो उन्होंने हमें बताया कि श्री कृष्ण के द्वारा माखन ही प्रिय होना और श्री कृष्ण का माखन चुराकर ही खाना, दोनों के पीछे कुछ महत्वपर्ण कारण हैं। आइये जानते हैं इस विषय में विस्तार से।
श्री कृष्ण को माखन ही क्यों प्रिय है?
पहले के समय में माखन को मथने की एक विशेष प्रक्रिया होती थी। एक मटकी में एक डंडा डाला जाता था। इसके बाद उस डंडे के पीछे से घुमाकर एक रस्सी को दोनों हाथों से पकड़ा जाता था। फिर दही मटकी में डालने के बाद उस रस्सी के जरिये डंडे को घुमाया जाता था और फिर माखन मथना शुरू होता था। यह एक प्रकार से वही प्रक्रिया है जिसके माध्यम से समुद्र मंथन संभव हो पाया था।
अब इस प्रक्रिया पर गौर करते हुए मथने वाले मटके को उल्टा कर दिया जाए तो मटका ऊपर की तरफ आ जाएगा, डंडा नीचे की तरफ हो जाएगा और रस्सी मध्य में ही रहेगी। अब जो मटका है वह मनुष्य का दिमाग, जो डंडा है वो मनुष्य शरीर में मौजूद रीढ़ की हड्डी और रस्सी यानि कि शरीर में प्रवाहित होने वाली सांसें। यानी कि माखन का मथना या यूं कहें मंथन एक प्रकार का योग ही था।
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जब कोई व्यक्ति बैठकर ध्यान लगाता है तो रस्सी रूपी सांसे अंदर-बाहर होती हैं जिससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और नकारात्मक ऊर्जा शरीर से बाहर जा रही होती है एवं डंडा रूपी रीढ़ की हड्डी जितनी सीधी रहे उससे शरीर के तंत्र उतने ही जागरूक होते हैं। ऐसा करने से मटका रूपी दिमाग शांत होता है, बुरे विचार दूर होने लगते हैं और समस्या का समाधान मिलना शुरू हो जाता है।
इसी सन्देश को लोगों तक पहुंचाने के लिए श्री कृष्ण ने माखन को प्रिय माना था। हालांकि आज के समय में लोग भगवान द्वारा दिए गए प्राचीन काल के संकेतों या फिर उनकी लीलाओं को समझने का भी प्रयास नहीं करते हैं। वहीं, अब आते हैं कि श्री कृष्ण माखन चुराकर ही क्यों खाते थे। तो इसके पीछे तीन कारण हैं। पहला कारण यह कि उस समय में ग्वालिनें अपने बच्चों को माखन नहीं दिया करती थीं।
असल में पहले के समय में माखन एक ऐसा खाद्य पदार्थ था जो धनवान लोगों के घरों में ही मिलता था। ब्रज में निवास करने वाले ग्वाल-ग्वालिनों को माखन तैयार कर मथुरा राजमहल में पहुंचाना होता था। ऐसे में वह अपने बच्चों को माखन नहीं खिला पाते थे, तो सभी ग्वाल-ग्वालिनों के बच्चों को माखन खिलाने हेतु श्री कृष्ण माखन चुराकर खाते थे। यह प्रतीक है कि प्रेम भाव रखते हुए वस्तुएं बांटना सीखिए।
दूसरा कारण यह था कि कंस ने अपने राज्य में प्रजा पर कई अत्याचार किये थे जिनमें से एक था कि वह ब्रज के लोगों से कर के तौर पर माखन लिया करता था, इसी के विरोध में श्री कृष्ण माखन खाकर मटकी फोड़ दिया करते थे और एक भी मटकी मथुरा नहीं पहुंचने देते थे। यह वो प्रथम अवसर था जब कंस को श्री कृष्ण की लीला का आभास हुआ था। तीरस कारण था प्रेम भाव और भक्ति में वृद्धि।
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चुराकर खाने से यहां मतलब ये नहीं है कि किसी के घर से चुराया तो अपना पेट भर लिया। श्री कृष्ण चोरी भी तभी करते थे माखन जब कोई गोपी घर पर होती थी। इससे होता ये था कि माखन खुद भी खाया, सखाओं को भी खिलाया और जब गोपी ने पकड़ लिया तो कोई क्रोध नहीं सिर्फ बदले में कान्हा से प्रेम का भाव। यानी कि भगवान से जितना प्रेम करोगे वो इतना पग-पग पर साथ देंगे।
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image credit: herzindagi
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