क्या आपको भी दूसरों पर जल्दी भरोसा नहीं हो पाता है? क्या आपको ऐसा लगता रहता है कि दूसरे लोग आपके साथ धोखा कर सकते हैं या आपको चोट पहुंचा सकते हैं? यदि हां, तो ऐसा अनुभव करने वाले आप इकलौते शख्स नहीं हैं। कई लोगों को दूसरों पर भरोसा करने में परेशानी होती है। इसके पीछे कई मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं। इन मनौवैज्ञानिक कारणों को समझकर इस समस्या के समाधान की राह निकल सकती है। आइए इस बारे में नई दिल्ली के आर्टेमिस लाइट एनएफसी के वरिष्ठ सलाहकार एवं प्रमुख मनोचिकित्सा डॉ. राहुल चंडोक से जानते हैं।
किसी के डर में सबसे बड़ी भूमिका उसके अतीत के अनुभव की होती है। यदि अतीत में किसी करीबी व्यक्ति ने धोखा दिया है या चोट पहुंचाई है, तो ऐसे व्यक्ति को दूसरों पर भरोसा करने में परेशानी हो सकती है। बचपन की ऐसी घटनाएं मस्तिष्क में एक नकारात्मक पैटर्न बना देती हैं। इससे मन में यह धारणा बैठ जाती है कि दूसरे लोग भी धोखा दे सकते हैं।
कभी-कभी कुछ हादसे भी मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसे पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस सिंड्रोम कहा जाता है। पीटीएसडी की स्थिति में भी व्यक्ति के मन में लगातार नकारात्मक विचार आने लगते हैं। ऐसे लोगों के लिए किसी पर भरोसा करना मुश्किल हो जाता है।
आत्मविश्वास की कमी भी दूसरों पर भरोसा करने से रोकती है। कई बार कुछ लोगों के मन में यह धारणा बन जाती है कि वह लोगों के लायक नहीं हैं। कोई उनके साथ अच्छा व्यवहार भी करता है, तो उन्हें लगता है कि सामने वाला व्यक्ति उन्हें कमजोर समझकर सहानुभूति के कारण ऐसा कर रहा है। ऐसे में मन में डर बना रहता है कि कहीं सामने वाला व्यक्ति धोखा न दे दे।
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कुछ लोग स्वभाव से नियंत्रण चाहने वाले होते हैं। वह चाहते हैं कि जीवन के हर पहलू पर उनका नियंत्रण रहे। ऐसे लोग किसी और को अपने जीवन में शामिल करने से डरते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा होने से उनका नियंत्रण छिन जाएगा। उन्हें यह डर रहता है कि वह व्यक्ति उन्हें धोखा देने और नियंत्रण छीनने के लिए ही उनके जीवन में आ रहा है।
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कुछ शोध बताते हैं कि मस्तिष्क की संरचना से भी व्यवहार तय होता है। जिनके मस्तिष्क में एमिग्डाला ज्यादा सक्रिय होता है, वे दूसरों पर भरोसा करने में कतराते हैं। मस्तिष्क का यह हिस्सा डर, भरोसे एवं अन्य भावनाओं को नियंत्रित करता है। इसमें किसी भी प्रकार की अनियमितता अन्य लोगों पर भरोसा नहीं करने देती है।
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