ये तो आप सभी लोग जानते होंगे कि सप्ताह में सात दिन होते हैं। हिंदू कैलेंडर हो, अंग्रेजी या इस्लामिक सभी में यह कॉमन है कि सप्ताह के दिन सात ही होते हैं। लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? सप्ताह 7 की जगह 5,6, 8,9 या 10 दिनों का क्यों नहीं होता है। आखिर किसने सप्ताह के को सात दिनों का करने का फैसला किया किसने ये कंसेप्ट पूरी दुनिया को दी? अगर आप इन सभी सवालों का जवाब जानना चाहते हैं तो आज हम आपकी दुविधा करने वाले हैं।
कहां से आया 7 दिनों का कंसेप्ट
कई साल पहले कई सभ्यताओं ने हफ्तें के दिनों को लेकर रिचर्स किया। शुरुआती सभ्यताओं ने ब्रह्मांड का अवलोकन किया और ग्रहों, सूर्य और चंद्रमा की गतिविधि के आधार पर कई तरह के अनुमान लगाए। माना जाता है कि बेबीलोन मौजूदा इराक के लोक आकाशीय गणना में काफी तेज थे उन्होंने ने सबसे पहले हफ्ते में 7 दिन की बात दुनिया के सामने रखी थी। बेबीलोन के लोगों ने बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति औऱ चंद्रमा की चालों के आधार पर अवलोकन किया और चंद्रमा के 28 दिन की परिक्रमा के आधार पर 7 दिन के चार हफ्ते बनाए। इसी दिन को चार खंडो में बांटकर 1 महीने और 52 भागों में बांटकर 1 साल बनाया गया।
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ग्रहों के नाम पर रखे गए दिन के नाम
शुरुआत में इस्लाम और यहूदी धर्म के लोग सात दिन के सप्ताह में 6 दिन काम करते थे और 1 दिन धार्मिक कार्य के लिए रिजर्व रखते थे लेकिन उनके अलावा अन्य लोगों सभी सात दिन काम करते थे। इसको लेकर ही आगे चलकर यह निर्णय किया गया कि सभी लोग सात दिन के सप्ताह में 6 दिन काम करेंगे और एक दिन धार्मिक कार्य करेंगे। इसके बाद ही ग्रह के नाम पर एक-एक दिन का नाम रखा गया। इसके बाद हर दिन का नाम सैटर्न, मून, मार्स, मर्करी, जूपिटर, वीनस रखा गया है, जो बाद में मंडे, संडे, फ्राइडे और हिंदी में गुरुवार, बुधवार, शुक्रवार हो गए।(भारत की वो प्राचीन कलाएं जो समय के साथ हो गईं लुप्त)
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