भारत की वो प्राचीन कलाएं जो समय के साथ हो गईं लुप्त

हमारा देश प्राचीन सभ्यताओं के लिए जाना जाता है। मगर समय के साथ-साथ कुछ कलाएं अपनी पारंपरिकता खो रही हैं, तो आइए जानते हैं ऐसी कलाओं के बारे में जिनका नाम भी आपको सुनने में अजीब लग सकता है।

 

lost art forms of india society

भारत अपने पारंपरिक विविधताओं के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि यहां जितनी विविधताएं मौजूद हैं, उतनी ही विविध कलाएं भी हैं, जिसे हर क्षेत्र या राज्य के लोग अपने हिसाब से मानते हैं। हालांकि, हर एक कला का अपना समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक महत्व है।

फिर चाहे वह महाराष्ट्र की वर्ली पेंटिंग हो या पारंपरिक नागा बांस हस्तशिल्प...हर एक कला की अपनी अलग खूबसूरती है। मगर कुछ कलाएं ऐसी हैं जो वक्त से साथ- साथ लुप्त हो रही हैं यानी उनका ह्रास हो रहा है। बता दें एक वक्त ऐसा था जब ये तमाम कलाएं अपने उरूज पर थीं।

आइए आज हम आपको इस आर्टिकल में भारत की सबसे मशहूर कलाओं के बारे बताएंगे, जिनकी लोकप्रियता वक्त से साथ खत्म होती चली गईं। तो आइए जानते हैं भारत की सबसे खास प्राचीन कलाएं कौन-कौन सी हैं।

भवाई नाटक (Bhavai dance)

What are some lost arts

गुजरात एक ऐसा राज्य है जो अपने रंगीन त्योहार, समृद्ध विरासत और स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए जाना जाता है। हालांकि, वक्त से साथ-साथ कई कलाएं लुप्त भी हो चुकी हैं जिसमें भवाई नाटक का नाम भी आता है। यह नाटक गुजरात का लगभग 700 साल पुराना है, जिसका महत्व भी काफी माना जाता है। (भारत की पहली महिला कॉमेडियन थी टुनटुन)

बता दें कि भवाई नाटक का मूल उद्देश्य जागरूकता और मनोरंजन के लिए किया जाता था। इस नाटक में आसान कहानी को हास्य अभिनय के साथ सुनाया जाता था। इस कला की भाषा मुख्य रूप से गुजराती लोक बोली होती है, मगर साथ में उर्दू, हिन्दी और मारवाड़ी शब्दों का भी इस्तेमाल किया जाता था।

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नौटंकी (Nautanki)

आप यकीनन इस शब्द से वाकिफ होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि एक वक्त था जब उत्तर प्रदेश में नौटंकी रंगमंच काफी फेमस था। इसमें गीतों, नृत्य, कहानियों और संवादों के साथ बनाए जाते थे। हालांकि, अब बहुत कम ही नौटंकी देखने को मिलती है, क्योंकि अब जमाना इंटरनेट का है।

बता दें कि इसकी शुरुआत 19वीं शताब्दी के अंत में उत्तर प्रदेश में हुई थी। ये नाटक गांव में ज्यादा फेमस थे, जिसे धार्मिक और पौराणिक कथाओं के जरिए दर्शाया जाता था। हालांकि, अब नुक्कड़ नाटक कॉलेज और स्कूल में ज्यादा देखने को मिलते हैं।

मंजूषा कला (Manjusha Kala)

Which art is going to be vanished

लोक पारंपरिक कलाओं में मंजूषा का नाम भी शामिल है। यह कला भागलपुर क्षेत्र अंग प्रदेश के नाम से भी जानी जाती है जिसका नाम एक देवी और भागलपुल के एक त्योहार से जुड़ा है। इसकी उत्पत्ति 7वीं शताब्दी में हुई थी। बता दें मंजूषा की पेंटिंग काफी महंगी होती है, जिसे बड़ी ही कारीगरी से तैयार किया जाता था। (प्रसिद्ध पेंटिंग्स के बारे में कितना जानते हैं आप)

लोककथा के अनुसार भागलपुर के चंपानगर से चंद्रधर सौदागर ने विषहरी पूजा की शुरुआत की थी। वे भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। मां विषहरी को भगवान शिव ने कहा था कि यदि चंद्रधर उनकी पूजा करें तो धरती पर उनकी पूजा होने लगेगी।

जात्रा कला (Jatra Kala)

गुजरात, उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि इसमें कलकत्ता की जात्रा कला भी शामिल है। एक वक्त था जब यह कला कलकत्ता में काफी मशहूर थी, जो कलकत्ता में 18वीं शताब्दी के दौरान अपने उरूज पर थी। बता दें कि यह एक लोकप्रिय सांस्कृतिक कार्यक्रम है, जिसे गांवों और शहरों में पेश किया जाता था।

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इसे ‘जात्रा पाला’ के नाम से जाना जाता था, जिसे दिखाने के लिए स्पेशल गीत का इस्तेमाल किया जाता था। इस लोक कथाओं की खास बात यह थी कि इसे बनाने के लिए हिंदू महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं से प्रेरणा ली जाती थी।

तो ये थीं कुछ भारत की फेमस कलाएं, आपको हमारा यह आर्टिकल अगर पसंद आया हो तो इसे लाइक और शेयर करें। अगर हमारी स्टोरी से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।

Image Credit- (@Freepik)

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