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कौन हैं शीतला माता? जानें क्यों इस दिन को कहते हैं बसौड़ा

हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है और बासी भोग लगाया जाता है। <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2024-03-27, 12:13 IST

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन शीतला माता को समर्पित है। इस दिन बसंत पंचमी के दिन से शुरू हुई होली का त्योहार समाप्त होता है और ठंडक का एहसास भी खत्म हो जाता है। शीतला माता को समर्पित इस अष्टमी के दिन लोग व्रत रखते हैं और उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। बता दें कि शीतला माता को बासी चीजों का भोग लगाया जाता है और इसलिए शीतला अष्टमी को बसोड़ा या बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। ये तो रही शीतला अष्टमी और इस पर्व के बारे में, लेकिन क्या आपको पता है कि शीतला माता कौन हैं? यदि नहीं तो चलिए जानते हैं साथ में...

कौन हैं शीतला माता?

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शीतला माता, मां पार्वती का ही दूसरा स्वरूप हैं। शीतला माता को आरोग्य और स्वच्छता की देवी कहा गया है। स्कंद पुराण में शीतला माता के स्वरूप और उनकी कथा के बारे में वर्णन किया गया है। शीतला माता गर्दभ या गधे के वाहन पर विराजती हैं। शीतला माता अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण करती हैं। माता शीतला की पूजा-आराधना करने से शरीर निरोग रहता है, साथ ही घर के सदस्यों को भी बुखार, चेचक, नेत्र संबंधी रोग और दूसरी गंभीर बीमारियों की शिकायत नहीं होती है।

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शीतला माता को बासी भोग क्यों लगाया जाता है?

स्कंद पुराण की कथा के अनुसार शीतला माता अपने हाथ में दाल के दाने लेकर ज्वरासुर (शिव जी के पसीने से बने ज्वरासुर) (शिवलिंग पर त्रिपुंड कैसे लगाएं) के साथ देवलोक से धरती पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थीं। लेकिन, राजा ने शीतला माता को राज्य में रहने से मना कर दिया, जिससे शीतला माता क्रोधित हो गईं। क्रोध की ज्वाला से राज्य में इतनी गर्मी पैदा हो गई कि राज्य में रहने वाले लोगों को तेज बुखार या ज्वर होने लगा। ज्वर से लोगों के शरीर में छोटे-छोटे दाने निकलने लगे।

Which God is Sheetla Mata

राज्य में रहने वालों को कष्ट में देख राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह माता से क्षमा मांगी। माता के गुस्से को शांत करने के लिए राजा शीतला मां को ठंडी लस्सी और कच्चे दूध का भोग लगाते हैं। राजा के सेवा भाव को देख माता शांत हुई, तभी से ही माता को भोग में ठंडा और बासी चीजों का भोग लगाया जाता है। शीतला माता के प्रसाद को एक रात पहले तैयार कर दूसरे दिन उन्हें अर्पित किया जाता है। शीतला अष्टमीका व्रत रख रही हैं, तो माता को भी बासी भोजन का भोग लगाएं और खुद भी बासी चीजों का सेवन करें।

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