Roop Kanwar Sati Kand: पति के साथ जला दी गई थी 18 साल की रूप कंवर, शादी के 7 महीने बाद ही इस प्रथा की भेंट चढ़ी थी हिंदुस्तान की आखिरी 'सती'

राजा राम मोहन रॉय की कोशिशों के बाद सन 1829 में ही भारत में सती प्रथा को बैन कर दिया गया था। तब देश अंग्रेजों का गुलाम था और सभी को पता था कि इस प्रथा में कितनी बुराइयां हैं, लेकिन साल 1987 में राजस्थान में एक 18 साल की लड़की को सती कर दिया गया था। कहते हैं कि रूप कंवर चिता से गिर गई थीं, पैर झुलस गए थे, लेकिन फिर जबरदस्ती उन्हें चिता पर डाल दिया गया। 
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रूप कंवर चिता से गिर गईं, पैर झुलस गए, चीख पुकार मच गई, पर लोगों ने उन्हें पकड़ कर फिर से चिता पर डाल दिया। गांव वालों ने अपने घरों से बाल्टी भरकर घी डाला, तब तक इसे जलाया गया जब तक रूप कंवर की मौत नहीं हो गई... मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऐसा ही हुआ था।

क्या आपको पता है हिंदुस्तान की आखिरी सती कौन हैं? एक हंसती-खेलती 18 साल की लड़की जिसकी जिंदगी ही छीन ली गई। हाल ही में देश के बहुचर्चित रूप कंवर कांड में फैसला आया है। इस मामले में अदालत ने 8 आरोपियों को बरी कर दिया गया है। क्यों? कारण वही, सबूतों का आभाव। इस मामले की सुनवाई भी तभी से चल रही है जब से रूप कंवर को पति के साथ चिता पर बैठाया गया था। यानी 4 सितंबर 1987 से।

मामला इतना गंभीर है कि इसे 37 साल में भी सुलझाया नहीं जा सका और आखिर में आरोपियों को बरी कर दिया गया। रूप कंवर इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके नाम का मंदिर जरूर है। राजस्थान के सीकर जिले में एक छोटे से गांव दिवराला में रूप कंवर को आज भी याद किया जाता है।

रूप कंवर भारत की आखिरी सती थीं। उन्हें शादी के 7 महीने के अंदर ही पति के साथ जलकर मरना पड़ा था। जिस दिन यह घटना हुई, उस दिन से ही रूप कंवर को सती माता कह दिया गया और उसी जगह पर चुनरी महोत्सव भी किया गया।

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क्या दावा किया गया कोर्ट में?

कोर्ट में गवाहों ने आरोपियों को पहचाना नहीं और रूप कंवर कांड में अभी तक यही दावा किया गया कि उन्होंने खुद ही सती होने की इच्छा जताई थी। इस कांड को दिवराला सती रूप कंवर कांड भी कहा जाता है।

रूप कंवर की वो कहानी जिसे पढ़कर कांप जाएगी रूह

18 साल की लड़की को क्या ज्ञान होता है? उसे जो भी सिखा-पढ़ा दिया जाए, बस वही उसके लिए सच होता है। कुछ ऐसा ही हुआ रूप कंवर मामले में। रूप कंवर जयपुर की रहने वाली बीएससी स्टूडेंट थीं। उनकी शादी दिवराला के माल सिंह से हुई थी।

रूप कंवर जयपुर में पढ़ती थीं और संपन्न घराने से थीं। इंडिया टुडे के जर्नलिस्ट की एक ग्राउंड रिपोर्ट में बताया गया है कि रूप कंवर दिन के 4 घंटे पूजा करती थीं। उन्हें धार्मिक चीजों में रुचि थी।

रूप कंवर की शादी के सात महीने बाद 2 सितंबर 1987 को माल सिंह के पेट में दर्द हुआ। फिर उन्हें उल्टी भी हुई और तबीयत बिगड़ने पर उन्हें सीकर अस्पताल ले जाया गया। 3 सितंबर को ऐसा लगा कि रूप कंवर के पति माल सिंह की तबीयत सही हो गई है, लेकिन 4 सितंबर को सुबह 8 बजे माल सिंह की मौत हो गई। इसके बाद उनका शव वापस दिवराला लाया गया।

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रूप कंवर के गांव वालों ने उस वक्त जो बयान दिए थे उनकी मानें, तो रूप कंवर पति के शव के बगल में बैठकर प्रार्थना कर रही थीं और उन्होंने खुद ही सती होने की इच्छा जताई थी।

4 सितंबर को ही रूप कंवर के ससुराल के गांव दिवराला में महोत्सव जैसा माहौल था। साधु-संत से लेकर गांव वालों तक बहुत से लोग आए थे। लोग इस बात की चिंता भी कर रहे थे कि कहीं पुलिस ना आ जाए। लोग अपने घर से घी की बाल्टियां लाए थे ताकि सती प्रथा में कोई विघ्न ना आए। रूप कंवर ने आशीर्वाद लिया और आगे बढ़ गईं। पति का सिर गोद में रखकर बैठ गईं और सती हो गईं।

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जलते हुए लपटें उनके गले तक आ गई थीं और रूप कंवर चिता से नीचे गिर गईं। माना जाता है कि उनका निचला शरीर और पैर झुलस गए थे। पर रूप कंवर को फिर से चिता में धकेल दिया गया। 16 श्रृंगार कर चिता पर चढ़ी रूप कंवर को जलते हुए देखने के लिए हजारों लोग मौजूद थे।

इस कांड के बाद गांव वालों ने रूप कंवर को देवी बना दिया और चुनरी महोत्सव भी हुआ। इस अमानवीय घटना के खिलाफ सामाजिक संगठनों ने कमर कस ली। एक तरफ लोग उन्हें देवी कह रहे थे और दूसरी तरफ लोग यह मान रहे थे कि उन्हें बरगलाया गया है। जिसकी वजह से उन्होंने सती होने का फैसला लिया।

सच्चाई जो भी हो कोर्ट ने अब आरोपियों को बरी कर दिया है। रूप कंवर ही हिंदुस्तान की आखिरी सती थीं।

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