भारत में हमेशा से ही पितृसत्ता विराजमान रही है। महिलाओं को घर और बाहर का काम संभालने के बाद भी डोमेस्टिक वायलेंस जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। भारत में डोमेस्टिक वायलेंस एक बहुत ही ज्यादा विकराल समस्या है। हर साल ऐसी कई रिपोर्ट्स सामने आती हैं जो इस भयावह सच को सामने ले आती हैं। नेशनल कमीशन फॉर वुमन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में 30,800 मामले ऐसे दर्ज किए गए थे जहां महिलाओं के खिलाफ किसी ना किसी तरह की वायलेंस हुई थी। यह आंकड़ा अपने आप में डराने वाला है।
समय के साथ-साथ वायलेंस का मतलब बदल गया है। अब सिर्फ हाथ उठाना ही वायलेंस नहीं है, बल्कि यहां इमोशनल, मेंटल, फाइनेंशियल और अन्य टाइप की वायलेंस भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट के जाने माने एडवोकेट रवि एस गुप्ता ने हमें डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट से जुड़ी कुछ खास बातें बताई हैं।
लीगल डेफिनेशन पर जाएं तो डोमेस्टिक वायलेंस में हर वो कृत्य शामिल होता है जिसमें विक्टिम के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, हाथ-पैर, मेंटल और फिजिकल हालचाल को खतरा है। इसी के साथ, ऐसा कोई भी कृत्य जिससे फिजिकल एब्यूज, सेक्सुअल एब्यूज, इमोशनल एब्यूज और इकोनॉमिक एब्यूज की श्रेणी में रखा जा सके। डोमेस्टिक वायलेंस किसी भी इंसान के द्वारा की जा सकती है जिसके साथ विक्टिम डोमेस्टिक रिलेशनशिप में है या फिर पहले कभी थी।
2005 में लागू हुआ डोमेस्टिक वायलेंस प्रोटेक्शन एक्ट इसी तरह के मामलों से महिलाओं को बचाता है।
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सबसे पहले बात करते हैं कि आपको डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के खिलाफ शिकायत करने पर किन-किन तरीकों से आपको रिलीफ मिल सकती है।
एडवोकेट रवि का कहना है कि इसके लिए आपको सेक्शन 12 डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत शिकायत दर्ज करवानी होगी। इसके तहत आपको ये सभी राइट्स मिलते हैं-
एडवोकेट रवि के मुताबिक डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के सेक्शन 20 के हिसाब से कोर्ट महिला को आर्थिक मदद देने का फैसला सुना सकता है। ऐसे मामले जहां घरेलू हिंसा के कारण महिला का किसी तरह का खर्च हुआ हो उन सभी में मॉनिटरी रिलीफ दी जा सकती है। इसमें मेडिकल ट्रीटमेंट, ज्वेलरी का नुकसान, प्रॉपर्टी डैमेज आदि सब कुछ शामिल रहता है। विक्टिम मेल पार्टनर के खिलाफ मेंटेनेंस का केस भी दायर कर सकती है। अगर कोर्ट का फैसला आता है, तो विक्टिम को पति, लिव इन पार्टनर या ससुराल वालों की तरफ से मेंटेनेंस मिल सकती है।
विक्टिम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत बच्चों के लिए भी मेंटेनेंस या मॉनिटरी रिलीफ की मांग की जा सकती है।
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एडवोकेट रवि के मुताबिक, "कानूनन जिस भी तरह का कंपनसेशन दिया जाएगा वो फेयर, रीजनेबल और विक्टिम की स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग के हिसाब से होता है। अगर किसी वजह से रेस्पोंडेंट विक्टिम को पैसे दे पाने में असमर्थ है, तो कोर्ट की तरफ से रेस्पोंडेंट के एम्पलॉयर या फिर कर्जदार को भी सीधे विक्टिम को पैसे पहुंचाने का ऑर्डर दिया जा सकता है।"
ऐसे हालात में रेस्पोंडेंट की सैलरी का एक हिस्सा विक्टिम के पास जा सकता है। अगर विक्टिम को ठीक तरह से पेमेंट नहीं मिल रही है, तो वो उसके खिलाफ दोबारा शिकायत कर सकती है। कोर्ट के आदेश का पालन करना जरूरी है।
अगर किसी के साथ घरेलू हिंसा हो रही है, तो उसे चुप चाप सहना नहीं चाहिए। इस तरह के कार्य के खिलाफ कानून में कई प्रावधान है और ऐसे में शिकायत भी दर्ज करवाई जा सकती है। छुपकर कुछ भी सहना सिर्फ इस समस्या को बढ़ाएगा। कई महिलाएं इस बात से डर जाती हैं कि उन्हें फाइनेंशियल सपोर्ट नहीं मिलेगा। ऐसा सोचना गलत है। अगर आपके साथ कुछ गलत हो रहा है, तो उसके खिलाफ आवाज जरूर उठाएं।
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