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आखिर भगवान शिव ने क्यों लिया था हरिहर स्वरूप?

वैसे तो भगवान शिव ने भक्तों के उद्धार के लिए कई रूप लिए हैं। भगवान शिव के कई अवतार और रूप में से एक है, हरिहर स्वरूप। आज हम आपको इस रूप की महिमा और कथा के बारे में बताएंगे। <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2024-03-05, 14:36 IST

सृष्टि के तारणहार भगवान शिव और विष्णु भक्तों के कष्ट और उद्धार के लिए समय समय पर अलग-अलग अवतार लेकर धरती में आए हैं। भगवान के सभी अवतार के पीछे खास वजह और कारण है, ऐसे में एक बार भगवान शिव ने हरिहर का रूप धारण किया था। महाशिवरात्रि का पर्व आने वाला है और यदि आप शिव भक्त हैं, तो आपको भगवान के इस अवतार के बारे में पता होना चाहिए। भगवान शिव के इस हरिहर स्वरूप के पीछे एक दिलचस्प कथा है। शिव जी का यह नाम  दो शब्दों से मिल कर बना है, हरी यानी भगवान विष्णु और हर यानी महादेव। जिस तरह भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर का रूप धारण किया था, उसी तरह एक बार भगवान शिव ने हरिहर रूप धराण किया था। चलिए जान लेते हैं भगवान शिव के इस अवतार के पीछे की कथा।

भगवान शिव ने क्यों लिया हरिहर स्वरूप?

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भगवान शिव के इस अवतार का वर्णन स्कंद पुराण में किया गया है। इसे लेकर कथा में यह बताया गया है, कि एक बार भगवान शिव और विष्णु के भक्त आपस में लड़ने लगे, भक्तों की लड़ाई शिवजी और विष्णु जी की श्रेष्ठता को लेकर थी। शिव जी के भक्त कहते भगवान शिव श्रेष्ठ हैं, वहीं भगवान विष्णुके भक्त कहते विष्णु जी श्रेष्ठ हैं। भक्तों के बीच दोनों देवता की श्रेष्ठता को लेकर विवाद बढ़ने लगा। तब शिवजी और विष्णु जी के भक्त अपना विवाद का हल लेकर शिव जी के पास गए। जब शिव जी ने भक्तों की बात सुनी तो उन्हें यह विवाद बेतुका लगा। भक्तों का विवाद देख शिव जी उन्हें सत्य का ज्ञान करवाने के बारे में सोचा।

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भक्तों के बीच देवताओं को लेकर बढ़ते संशय  का निवारण करने के लिए शिव जी ने हरिहर रूप धारण किया। भगवान शिवके इस हरिहर स्वरूप में अर्धनारीश्वर की तरह एक तरफ भगवान शिव थे और दूसरी तरफ भगवान विष्णु। भगवान शिव के हरिहर रूप को देख भक्त आश्चर्य रह गए। भगवान शिव के हरिहर रूप के दर्शन के बाद भक्त समझ गए कि शिव और विष्णु दोनों ही एक हैं, इन दोनों के स्वरूप और शक्ति में भेद करना मूर्खता से कम नहीं है। भक्तों ने भगवान शिव के इस हरिहर रूप को प्रणाम कर स्तुति वंदना की। भगवान शिव के हरिहर रूप के दर्शन के लिए सभी देवी-देवता उपस्थित हुए और शिवजी के इस स्वरूप का स्तुति-वंदन कर प्रणाम किया। बाद में इस स्वरूप का वर्णन पुराण और कथाओं में किया गया।

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