हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्त्व बताया गया है। कहा जाता है कि पितृ पक्ष के 16 दिनों के दौरान मृत पूर्वज धरती पर आते हैं और अपनी अधूरी इच्छाओं को पूर्ति करते हैं। ऐसे में यदि उन्हें जल तर्पण कराया जाता है और उन्हें भोजन कार्य जाता है तो वो अपने वंशजों पर प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं। मान्यतानुसार यदि पितर यानी मृत पूर्वज प्रसन्न होते हैं तो सभी पापों से मुक्ति मिलती है और कल्याण होता है। वहीं उनके अप्रसन्न होने पर पितृ दोष लगता है जिससे घर में कलह कलेश होने के साथ धन हानि भी होती है।
पितृ पक्ष के 16 दिनों में किये गए कुछ कार्यों में से एक है ब्राह्मण को भोजन कराना। पुराणों के अनुसार पितृ पक्ष में मुख्य रूप से ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों द्वारा ग्रहण किया भोजन सीधा पितरों तक जाता है और उनकी आत्मा को संतुष्ट करता है। आइए नई दिल्ली के पंडित एस्ट्रोलॉजी और वास्तु विशेषज्ञ, प्रशांत मिश्रा जी से जानें कि पितृ पक्ष के दिनों में ब्राह्मणों को भोजन क्यों कराना चाहिए और ऐसा करना किस तरह से लाभदायक साबित हो सकता है।
पितृपक्ष के 16 दिन हमारे ऐसे पूर्वजों को समर्पित होते हैं जो इस दुनिया में नहीं हैं। ऐसा माना जाता है कि वो पूर्वज धरती पर आते हैं और हमारे बीच किसी न किसी रूप में मौजूद होते हैं। लेकिन वो अपनी मौजूदगी दिखाने में असमर्थ होते हैं। पूर्वज अपनी आत्मा की शांति हेतु हमारे द्वारा प्रदान किया अन्न और जल ग्रहण करते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में पितृ भी भोजन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों द्वारा किया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है। इसीलिए श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन करवाना एक जरूरी परंपरा मानी जाती है। यही नहीं ऐसी मान्यता भी है कि ब्राह्मण भोज के बिना अर्पित भोजन पूर्वजों को स्वीकार्य नहीं होता है और उन्हें तृप्ति नहीं मिलती है। यहां तक कि ब्राह्मण भोजन के बिना श्राद्ध की परंपरा भी पूर्ण नहीं मानी जाती है।
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पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के बाद ब्राह्मण भोज इसलिए कराना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जिन पितरों का श्राद्ध होता है वो ब्राह्मण का रूप धारण करके हमारे बीच आते हैं और भोजन तथा जल प्राप्त करते हैं। यह भी कहा जाता है कि ब्राह्मण को भोजन न कराने पर पितर नाराज हो जाते हैं और घर में पितृ दोष लगता है। पितृ दोष किसी भी घर के विनाश का कारण भी बन सकता है। इसलिए श्राद्ध वाले दिन पूरे श्रद्धा भाव से ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराएं और पितरों की शांति के लिए हवन एवं पूजन के साथ तर्पण करें। मान्यता है कि पितरों के नाम का दीपक प्रज्ज्वलित करने से भी पितरों को सहमति मिलती है।
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पंडित प्रशांत मिश्रा जी बताते हैं कि पितृ पक्ष में गाय, कुत्ते, चींटी तथा देवगण को भोजन अर्पित करने के बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। बिना ब्राह्मण भोज के पितर श्राप देकर अपने लोक को लौट जाते हैं। पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से ही प्रारंभिक हो जाता है, पितृ पक्ष में प्रति दिन तिल, चावल, जौ से तर्पण करना चाहिए, सबसे पहले अक्षत से पूर्व दिशा की या देव तर्पण, फिर जौ से उत्तर की तरफ ऋषि तर्पण उसके बाद दक्षिण की तरफ तिल से मनुष्यों अर्थात पितरों को तर्पण करना चाहिए। प्रतिदिन गौ ग्रास निकालना चाहिए और कौए को भी भोजन (पितृ पक्ष में कौए को भोजन कराने कामहत्त्व) कराना चाहिए। कहा जाता है कि मुख्य रूप से अमावस्या तिथि के दिन ब्राह्मण को भोजन कराने से सभी पितृ दोषों से मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा गया श्राद्ध के बाद निश्चित रूप से ब्राह्मण भोज कराना चाहिए जिससे पितरों को पूर्ण रूप से मुक्ति मिल सके।
इस प्रकार पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोज का विशेष महत्त्व बताया गया है और सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ब्राह्मणों को पूरे श्रद्धा भाव से भोजन कराने से पितरों की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती है।
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