मुस्लिम 786 नंबर का इस्तेमाल क्यों करते हैं? जानिए कुरान से क्या है इसका जुड़ाव

भारत, पाकिस्तान, और बांग्लादेश में मुस्लिम समुदायों के बीच 786 का बड़े स्तर पर इस्तेमाल देखा जाता है। यह नंबर अक्सर घरों, दुकानों और कारोबारों पर शुभ होने का प्रतीक मानकर लिखा जाता है।

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आपने पहचान के तौर पर कहीं न कहीं इस्लाम धर्म को मानने वालों को 786 नंबर का इस्तेमाल करते देखा होगा? पर क्या आपने कभी ये सोचा है कि क्यों 786 नम्बर का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही, क्या है इसके पीछे की खास वजह। असल में 786 नंबर को इस्लाम में पवित्र और शुभ माना जाता है, और इसके पीछे कई धार्मिक के साथ-साथ कल्चरल वजह बताई जाती है। आइए जानते हैं, इस नंबर से जुड़े खास पहलुओं को विस्तार से, 786 को इस्लाम में कई कारणों से पवित्र माना जाता है।

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क्या है कुरान में इसका महत्व

यह 'बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम' (بسم الله الرحمن الرحيم) वाक्यांश में अरबी अक्षरों का न्यूमेरिक वैल्यू है, जो कुरान की शुरुआत में हर सूरह को पढ़ने से पहले पढ़ा जाता है। इस वाक्यांश का है 'अल्लाह के नाम पर, सबसे दयालु, परम दयालु'। चूंकि यह वाक्यांश मुसलमानों के लिए बेहद खास है, इसलिए 786 को भी पवित्र माना जाता है। हालांकि, कुरान शरीफ में 786 नंबर का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। यह परंपरा या मान्यता इस्लामी धार्मिक ग्रंथों से नहीं आती बल्कि समय के साथ सांस्कृतिक तौर पर चलन में आई है।

सांस्कृतिक और क्षेत्रीय प्रभाव

भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलन, भारत, पाकिस्तान, और बांग्लादेश में मुस्लिम समुदायों के बीच 786 का बड़े स्तर पर इस्तेमाल देखा जाता है। यह नंबर अक्सर घरों, दुकानों और कारोबारों पर शुभ होने का प्रतीक मानकर लिखा जाता है। वहीं, भारतीय मुस्लिम समुदाय में 786 के इस्तेमाल का एक कारण भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं और प्रभावों से जुड़ा हो सकता है। जिस तरह सनातन धर्म में स्वास्तिक को शुभ माना जाता है, उसी तरह भारतीय मुस्लिम समुदाय ने 786 को शुभ और पवित्र मान लिया है। हालांकि, यह सीधे तौर पर स्वास्तिक का प्रतिस्थापन नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक समानता का उदाहरण हो सकता है।

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अरबी और मुस्लिम देशों में प्रचलन

अरबी और अन्य मध्य पूर्वी देशों में 786 का इस्तेमाल आम नहीं है। वहां के मुस्लिम समुदाय 'बिस्मिल्लाह' के वाक्य को लिखना और पढ़ना पसंद करते हैं। हालांकि, यह परंपरा प्रोफेट मोहम्मद के समय से नहीं चली आ रही है। यह बाद की सांस्कृतिक और क्षेत्रीय परंपराओं का हिस्सा है। इस्लाम में न्यूमेरोलॉजी को धार्मिक तौर पर मान्यता नहीं दी गई है। कुरान और हदीस में ऐसे किसी भी हिस्से का उल्लेख नहीं है, जो न्यूमेरोलॉजी को इस्लामी परंपरा का हिस्सा बताता हो। इस्लाम में एक ईश्वर और धार्मिक सिद्धांतों पर अधिक जोर दिया जाता है। न्यूमेरोलॉजी या अंक ज्योतिष की परंपरा की पहचान इस्लाम से नहीं, बल्कि प्राचीन संस्कृतियों से हुआ है, जिनमें पाइथागोरियन फिलॉसफी और अन्य प्राचीन सभ्यताएं शामिल हैं।

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जबकि, 786 का इस्तेमाल अक्सर घरों, दुकानों, ताबीज और हरे रंग के कपड़ों पर किया जाता है। यह नंबर प्रतीकात्मक तौर पर 'बिस्मिल्लाह' का प्रतिनिधित्व करती है और इसे एक शुभ अंक भी माना जाता है। 786 एक दिलचस्प नंबर है, जिसका इस्लाम में कई धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। अगर आप इसे पवित्र मानते है, तो आपको बता दें, इसका महत्व केवल मुस्लिम संस्कृति में देखा जाता है।

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