रामायण युद्ध के दौरान कई बड़े और बाहुबली योद्धाओं का नाम सुनने को मिलता है। इस युद्ध में ऐसा ही एक नाम था कुम्भकर्ण का। कुंभकर्ण लंकेश रावण का छोटा भाई था और परम बलशाली था। कुंभकर्ण के बारे में श्री रामचरितमानस में यह उल्लेख मिलता है कि वो एक विशाल देह का स्वामी था। उसकी लंबाई छह सौ धनुष के बराबर थी और मोटाई सौ धनुष के बराबर। यानी कि पहले के समय सामान्य लंबाई किसी भी व्यक्ति की 12 फुट तक होती थी और अगर किसी योद्धा के पास धनुष है तो उसकी लंबाई 18 से 20 फुट तक होती थी।
उस हिसाब से 18 को अगर 600 से गुना किया जाए तो कुंभकर्ण भी लंबाई तकरीबन 10 हजार 800 फुट थी। ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि किसी भी सामान्य व्यक्ति की लंबाई क्या इतनी हो सकती है। वहीं, कुछ ग्रंथों में ऐसा माना गया है कि कुंभकर्ण का जन्म ही नहीं हुआ था, उसे बनाया गया था। ऐसे में इस बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से पूछा तो हमें कई रोचक तथ्य पता चले।
क्या है कुंभकर्ण का रहस्य?
श्री रामचरितमानस में इस बात का उल्लेख मिलता है कि कुंभकर्ण ऋषि व्रिश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र था। कुंभकर्ण पूर्व जन्म में प्रहलाद के पिता असुरराज हिरण्यकशिपु का छोटा भाई हिरण्याक्ष था जिसका वध भगवान विष्णु के वराह अवतार के माध्यम से हुआ था।
कुंभकर्ण का अर्थ है: कुंभ यानी कि घड़ा और कर्ण यानि कि बड़े कान वाला। कुंभ कर्ण के स्वरूप को परिभाषित करते हुए ऐसा कहा गया है कि उसकी आंखें किसी भी गाड़ी के पहियों जितनी बड़ी थी। कुंभकर्ण 6 महीने सोता था, 1 दिन जागता था और फिर 6 महीने की निद्रा।
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ग्रन्थों के अनुसार, कुंभकर्ण ने ब्रह्म देव की तपस्या कर उनसे वरदान मांगना चाहा था कि उसी इंद्रासन मिले लेकिन माता सरस्वती के प्रभाव से उसने निद्रासन मांग लिया और ब्रह्मा ने उसे यह वरदान दे दिया। ये भी कहा कि समय से पहले जागने पर कुंभकर्ण की मृत्यु हो जाएगी।
अब आते हैं वैज्ञानिक आधार पर जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण और जैन रामायण में मिलता है। ऐसा लिखित है कुंभकर्ण कोई मनुष्य नहीं था क्योंकि राक्षस हो या मनुष्य किसी भी लंबाई, चौड़ाई, आकार, व्यवहार इतना रोबोटिक नहीं हो सकता था उस समय में भी।
ऐसा माना जाता है कि कुंभकर्ण का जन्म हुआ ही नहीं था। यह संभव ही नहीं था इतने बड़े आकार के बच्चे को कोई भी मां गर्भ में धारण कर सके। कुंभकर्ण को राक्षस समाज के लोगों की उन्नति के लिए उसके पिता ऋषि विश्रवा ने हवन-अनुष्ठान कर उसकी राख से बनाया था।
ऋषि विश्रवा ने कुंभकर्ण का निर्माण ठीक वैसे ही किया था जैसे आज के समय में वैज्ञानिक पद्धति से किसी ऐसे रोबोट का निर्माण किया जाता है जो ठीक मौश्यों की तरह आचरण करता है। वहीं, कुंभकर्ण के हर 12 महीनों में 1 बार जागने की बात भी वैज्ञानिक आधार रखती है।
जैन रामायण में लिखा है कि कुंभकरण के निर्माण के बाद ऋषि विश्रवा ने उसे माता कैकसी को सौंप दिया था लेकिन उन्होंने कुंभकरण का प्रयोग देवताओं के विरुद्ध उनके विनाश हेतु करने के लिए रावण को उकसाया था। इस बात का पता ऋषि विश्रवा को भी चल गया था।
ऋषि विश्रवा देवताओं के भी पिता थे इसलिए उन्होंने कुंभकर्ण के फीचर्स में ऐसे बदलाव कर दिए थे जिसके बाद वह 12 महीने में सिर्फ 1 दिन ही वर्किंग होता था और अन्य महीनों में वह किसी खराब मशीन की तरह नॉन वर्किंग रहता था। हालांकि यह धारण लोक मान्य नहीं है।
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धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो कुंभकर्ण राक्षसी शक्तियों से सज्ज परम शक्तिशाली था लेकिन वैज्ञानिक आधार कहता है कि कुंभकर्ण सनातन परंपरा में वैज्ञानिक पद्धति से बना पहला ह्यूमन रोबोट था। अब ये आपके ऊपर है कि इन दोनों धारणाओं में से आप किसे मानते हैं।
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