Vinesh Phogat Olympics Medal Vs Wrestlers Protest: छोरी गोल्ड लाए ना लाए, पहले उसकी इज्जत करना जरूरी है!

विनेश फोगाट के सेमीफाइनल मैच जीतते ही लोग अपने-अपने स्टेटस पर उनकी तस्वीर लगाने लगे थे, लेकिन यही लोग रेसलर्स प्रोटेस्ट के समय कहीं खो गए थे शायद। 

Can Vinesh phogat win gold

विनेश फोगाट ओलंपिक फाइनल से डिस्क्वालिफाई हो गई हैं। उनका वजन मानक से 100 ग्राम ज्यादा निकला। विनेश ने 6 अगस्त की रात को रेसलिंग मैच जीता और उनकी जीत ने उनका मेडल तय कर दिया था। भारत का हर व्यक्ति उस वक्त विनेश के लिए सोशल मीडिया पर बधाइयां लिखने लगा, लेकिन विनेश की उम्मीदों के साथ पूरे देश की उम्मीदें टूट गईं। ओलंपिक कमेटी का फैसला आते ही मैं सिर्फ इस सोच में पड़ गई कि आखिर विनेश का हाल क्या हो रहा होगा। विनेश फोगाट ने इस जीत के लिए कितनी मेहनत की है यह किसी से छुपा नहीं है।

विनेश फोगाट की याद करते ही 2023 की वो तस्वीर याद आती है जहां वह सड़क पर लेटी हुई थीं, रो रही थीं और फिर भी उनकी सुनने वाला कोई नहीं था। कुश्ती जैसे खेल में जहां भारत के पहलवान एक से बढ़कर एक करतब दिखा सकते हैं, वहां भारत आगे नहीं जा पाया। रेसलर्स प्रोटेस्ट की वो कहानी जिसने देश भर में हलचल मचा दी थी, अभी भी उतनी ही ताजा है।

पिछले 18 महीनों में विनेश की जिंदगी में कई बदलाव और भूचाल आए। विनेश ने अपना खून, पसीना और आंसू भी बहाए हैं।

2023 का वो दौर जब विनेश कर रही थीं प्रदर्शन

विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया और कई अन्य रेसलर्स जब जनवरी की कड़कड़ाती हुई ठंड में दिल्ली के जंतर-मंतर पहुंचे थे तब उनकी आवाज सरकार तक पहुंचने में बहुत समय लग गया था। रेसलिंग फाउंडेशन के चीफ बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ हिम्मत कर सबने आवाज उठाई थी।

vinesh phogat and olympic row

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अप्रैल तक यह मामला ऐसे ही चलता रहा। अप्रैल में विनेश को स्वीडन जाकर ट्रेनिंग लेनी थी, लेकिन वह अपनी शिकायत के लिए रुकी रहीं। वह चाहती थीं कि बृज भूषण को सजा हो जाए। सेक्शुअल असॉल्ट के मामले में अब तक पूरा रेसलिंग फेडरेशन कूद चुका था।

मई तक आते-आते यह मामला इतना आगे बढ़ गया कि रेसलर्स पर लाठीचार्ज किया गया। रात में सोने के लिए सही जगह तो छोड़िए उन्हें सड़क पर ही गिराया गया।

ना जाने कितनी बार रेसलर्स ने मांग की उनकी सुनवाई हो, लेकिन नतीजा क्या निकला यह हम सभी जानते हैं।

साक्षी मलिक का संन्यास, नहीं भूल सकता देश

साक्षी मलिक ने ओलंपिक में मेडल जीता था और देश का नाम रौशन किया था। साक्षी रेसलर्स प्रोटेस्ट के दौरान सबसे आगे थीं, लेकिन जिस तरह के हालात पैदा हुए उन्हें सन्यास लेना पड़ा। साक्षी ने जिस तरह अपने जूते प्रेस के सामने रखे थे वह भूला नहीं जा सकता है।

sakshi malik olympic medal vs protest

साक्षी मलिक की कुछ तस्वीरें ऐसी थीं जिन्होंने भारतीय एथलीट्स और उनकी सेफ्टी पर ही सवाल उठा दिए। भारत की जिस बेटी ने मेडल जीता था, हमने उसके साथ क्या किया वह सोचने वाली बात है।

सड़कों पर रोते-बिलखते ये एथलीट्स बता रहे थे कि हम अपने देश की शान बढ़ाने वाले लोगों के साथ क्या करते हैं।

बजरंग पूनिया का आक्रोश दिखाता है हमारे समाज का सच

बजरंग पूनिया भी ओलंपिक मेडल विनर रहे हैं। उन्होंने भी रेसलिंग में भारत को पदक दिलाया है, लेकिन रेसलर्स प्रोटेस्ट के दौरान उन्होंने अपने पदक को गंगा में बहाने की बात भी की थी। यह दिल तोड़ना ही था कि भारत के भविष्य और अंतरराष्ट्रीय पद पर शान दिलाने वाले रेसलर्स की बात हमने सुनी ही नहीं।

bajrang punia olympic medal vs protest

हमने अपने रेसलर्स को सड़कों पर कुश्ती लड़ने के लिए भेज दिया। हमने यही किया जो हमें नहीं करना था। जिस वक्त एक एथलीट सड़क पर आकर रोता है और अपने खेल और भारत के सम्मान को आगे रखने के बाद भी इस तरह से परेशान होता है, तभी साबित हो जाता है कि हम अपने खिलाड़ियों के साथ क्या करते हैं।

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आखिर क्यों देखते हैं हम ओलंपिक मेडल का सपना?

ओलंपिक गेम्स में भारत के कंटीजेंट में इस साल 117 एथलीट्स थे जिसमें 10 कॉम्पटीशन के लिए और 7 एक्स्ट्रा खिलाड़ी थे। 118 सपोर्ट स्टाफ और 22 ऑफिशियल्स भी थे। पर हमने मेडल कितने जीते हैं वह सभी को पता है। हम अपने खिलाड़ियों को भेजते जरूर हैं, लेकिन उनका नाम सामने तब तक नहीं आता जब तक वह ओलंपिक में ना जीत जाएं। वहीं अगर क्रिकेट होता, तो एक्स्ट्रा, सपोर्ट स्टाफ और ना जाने किस किसका नाम हमें पता होता।

एथलीट्स को सड़क पर प्रोटेस्ट करना पड़े, उन्हें भरपूर सुविधाएं ना मिलें, उनके खेल का सम्मान ना हो, मेडल लाने वाले लोगों पर ध्यान ही ना दिया जाए, तो फिर क्यों हम ओलंपिक का सपना देखते हैं? क्रिकेट की दीवानगी कैसी है भारत में इसके बारे में हमें पता है और मैं उसका सम्मान करती हूं, लेकिन बाकी खिलाड़ियों को सड़क पर लाठियां खानी पड़े, तो माफ कीजिए, हम बतौर देश अपने खिलाड़ियों का सम्मान नहीं करते हैं।

वो खिलाड़ी जिस सम्मान के लायक हैं, जो पहचान उन्हें मिलनी चाहिए उसकी जगह हम उन्हें बस यूं ही अपने हाल पर छोड़ देते हैं। जब हम उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं, तो फिर हम किसलिए मेडल जीतने की उम्मीद करते हैं।

आज विनेश के लिए सोशल मीडिया पर लोग सपोर्ट कर रहे हैं, 100 करोड़ लोगों को बुरा लग रहा है कि विनेश ने मेडल नहीं जीता, यकीनन यह एक दुखद घटना है।

विनेश की आंखें आज नम होंगी, लेकिन उनकी मेहनत और कोशिश पर हमें नाज है।

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