हिंदू पंचांग के हिसाब से हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि यानी कि दिनांक 23 अगस्त दिन बुधवार को तुलसीदास जी की 526वां जयंती मनाई जाएगी। तुलसीदास जी ने हिंदू महाकाव्य रामचरितमानस, हनुमान चालीसा समेत कई ग्रंथों की रचना की और अपना पूरा जीवन भगवान श्रीराम की भक्ति में व्यतीत कर दिया। बात करें, उनके जीवन की, तो बतपन में मां के देहांत हो जाने के बाद तुलसीदास के पिता उनका लालन-पालन करने से पीछे हट गए थे।
तब उनका पालन-पोषण किसी और ने किया। फिर कुछ समय बाद जब तुलसीदास जी साढ़े पांच साल के हुए। तब उनके साथ कोई नहीं था। गरीबी और भूख से त्रस्त तुलसीदास जी ने भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करने लगे।
ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास जी की ये हालत देखकर मां पार्वती ने अपना भेष बदलकर उनका पोषण किया था। अब ऐसे में तुलसीदास जयंती का महत्व क्या है। वह कैसे भगवान श्रीराम के भक्त बनें। इसके बारे में इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
तुलसीदास जी एक हिंदू संत और महाकवि थे। उन्होंने अपनी पूरा जीवन भगवान श्रीराम की भक्ति में व्यतीत कर दिया। तुलसीदास जी कई रचनाओं की रचना की है, लेकिन उन्हें महाकाव्य रामचरितमानस के लेखक के रूप में मुख्य रूप से जाना जाता है।
तुलसीदास जी को महर्षि वाल्मीकि का पुनर्जन्म भी माना जाता है। इसके साथ ही उन्हें हनुमान चालीसा (हनुमान चालीसा पाठ)का संगीतकार भी कहा जाता है। तुलसीदास जी ने अपना जीवन वाराणसी में बिताया। वाराणसी में गंगा नदी पर प्रसिद्ध तुलसी घाट उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
ऐसी मान्यता है कि पवनपुत्र हनुमान मंदिर की स्थापना तुलसीदास जी ने की थी। तुलसीदास जी का जन्म श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। इसलिए इस दिन को तुलसीदास के रूप में मनाया जाता है।
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तुलसीदास जी रामचरितमानस, विनय पत्रिका, बरवै रामायण, राम लला नहछू आदि ग्रंथों के रचयिता माने जाते हैं। तुलसीदास जी को आध्यात्मिक गुरू कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी की उपासना के लिए तुलसीदास जी ने कई रचनाएं लिखीं । जिसमें हनुमान चालीसा, बजरंगबाण आदि शामिल है।
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तुलसीदास जी अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे। एक बार वह अपनी पत्नी से मिलने के लिए उफनती नदी को पार कर उनके घर गए। तब उनकी पत्नी ने उन्हें उपदेश देते हुए कहा कि आप जितना प्रेम मुझसे करते हैं। उतना स्नेह आप भगवान श्रीराम से करते, तो आपको मोक्ष की प्राप्ति होती। यही सुनते ही तुलसीदास जी के रोम-रोम से चेतना जागी और वह उसी समय भगवान श्रीराम (श्रीराम मंत्र) की भक्ति में लीन हो गए।
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