आखिर क्यों ये लोग करते हैं प्रेतों की पूजा? जानिए श्रीलंका के इस कबीले के बारे में

श्रीलंका की वेद्दा ट्राइब आखिर क्यों करती है प्रेतों की पूजा? जानिए इनके जीने के तरीके के बारे में। 

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श्रीलंका इन दिनों चर्चा में है क्योंकि इस दौरान वहां आर्थिक तंगी का दौर फैला हुआ है। श्रीलंका में सरकार गिर गई है और अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। श्रीलंका को हमेशा से ही एक ऐसा देश माना जाता रहा है जो तरक्की भी करता है और काफी मॉर्डन है, लेकिन श्रीलंका का एक और रूप भी है। श्रीलंका में एक ट्राइब ऐसी भी है जो अपनी शर्तों पर जीती है और श्रीलंका के आइलैंड पर स्वतंत्र तरीके से जीती है।

ये लोग इस आइलैंड पर 6वीं सदी से रह रहे हैं और यहां के जंगलों में बौद्ध लोगों के आने से पहले से ही रह रहे हैं। इन्हें 'जंगल के लोग' कहा जाता है और इन्हें बहुत महत्व भी दिया जाता है। इस ट्राइब का नाम है वेद्दा (Vedda, Veddah) ट्राइब।

राजकुमार विजय और पाषाण युग से है इनका संबंध

वेद्दा लोगों का संबंध उस समय से है जब मनुष्यों ने तरक्की शुरू की थी। पाषाण युग यानि वो समय जब हर चीज़ पत्थर को काटकर बनाई जाती थी। हालांकि, ये लोग असल में कब से इस आइलैंड का हिस्सा हैं इसके बारे में कोई जानकारी ठीक तरह से नहीं है, लेकिन एक लोककथा के अनुसार ये राजकुमार विजय के समय से इस जगह रह रहे हैं। राजकुमार विजय श्रीलंका के पहले राजा बने थे। हालांकि, आर्कियोलॉजिस्ट का कहना है कि वेद्दा ट्राइब इससे भी पुरानी हो सकती है और इसका संबंध पाषाण युग से है।

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हां, ये जरूर कहा जा सकता है कि श्रीलंका के राजा विजय के समय इस जगह बसने वाले पहले लोग वेद्दा ही थे। हज़ारों सालों तक स्वतंत्रता से फिरने वाले इन लोगों को धीरे-धीरे सेटल होने को कहा गया। तमिल और सिनहलीज लोगों के आने के बाद इनकी स्वतंत्रता कम हो गई और अब आलम ये है कि वेद्दा लोग जंगल में ही रह गए हैं और उनके कल्चर का भविष्य क्या होने वाला है इसकी जानकारी नहीं है।(रावण के देश लंका की करें सैर)

प्रेतों की करते हैं पूजा

वेद्दा लोग प्रकृति से बहुत ज्यादा कनेक्टेड रहते हैं और उनके गाने भी प्रकृति के सभी एलिमेंट्स को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। प्रेतों से भी ये अपना जुड़ाव मानते हैं और एक रिपोर्ट बताती है कि इनके पुजारी प्रेतों से बात कर फैसले लेते हैं और कबीले के मुखिया को प्रेतों के फैसले बताते हैं। इनकी अपनी भाषा है जिसे वेद्दा कहा जाता है।(25 हज़ार में श्रीलंका कैसे घूमें)

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ये अपनी संस्कृति को बचाकर रखने की पूरी कोशिश करते हैं और अपने बच्चों को भी इसी तरह की बातें सिखाते हैं। इस कबीले के लोगों को प्रेतों की पूजा के साथ-साथ प्रकृति की पूजा करना भी सिखाया जाता है।

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श्रीलंका की ये ट्राइब हमेशा शिकार और जंगल में उपलब्ध सामग्रियों से ही अपना पेट भरते हैं और ऐसे में उन्हें काफी मेहनत करने की जरूरत होती है। हालांकि, अब वेद्दा ट्राइब के कई लोग जंगल से निकलकर गांव और शहरों में रहने लगे हैं, लेकिन फिर भी ये ट्राइब अभी भी काफी स्वतंत्र जीवन जीती है और प्रकृति पर ही निर्भर है।

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Images: Atlas Of Humanity/ Srilanka tourism/ Freepik/ Yoair Blog

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