मलमास, यानि कि पुरुषोत्तम मास या अधिक मास, का आरम्भ पितृ पक्ष के अगले दिन ,18 सितंबर से हो रहा है। हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार यह महीना पूर्ण रूप से ईश्वर की भक्ति के लिए समर्पित माना जाता है। लेकिन शादी विवाह जैसे शुभ कार्य इस महीने में नहीं किये जाते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार मलमास प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार आता है। मलमास में पूजा पाठ, व्रत, उपासना, दान और साधना को सर्वोत्तम माना गया है। आइए जानें क्या है मलमास और इसे पुरुषोत्तम मास क्यों कहा जाता है।
मान्यतानुसार सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है। दोनों सालों के बीच करीब 11 दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन साल में एक माह यानी कि 30 दिनों के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है। चूंकि हिंदी पांचांग के हिसाब से इस साल एक अधिक मास जुड़ जाता है इसलिए इसे अधिक मास भी कहा जाता है। मलमास को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है।
हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार अधिकमास का स्वामी भगवान विष्णु को माना जाता है और भगवान श्री राम, विष्णु जी के अवतार हैं। इसलिए भगवान राम के नाम पर इस मास का नाम पुरुषोत्तम मास रखा गया।
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शास्त्रों में इस मास की कथा के बारे में बताया जाता है कि दैत्याराज हिरण्यकश्यप ने अमरत्व का वरदान प्राप्त करने हेतु ब्रह्म देव की तपस्या की और जब प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए तब हिरण्यकश्यप ने वरदान के रूप में उनसे मांगा कि, ब्रह्मा जी के बनाए किसी भी व्यक्ति के द्वारा उसकी मृत्यु न हो, उसे मारने वाला न पशु हो और न ही मनुष्य, न दैत्य हो और न देवता, न तो वो घर के भीतर मर सके और न ही अंदर, न दिन में न रात में, साथ ही उसने यह भी वरदान माँगा कि वो उनके बनाए 12 महीनों में न मरे। ऐसा करने से उसे अमृत्व की प्राप्ति हो गई और उसका अत्याचार बढ़ गया। तब श्रीहरि की माया से हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त बन गया और हिरण्यकश्यप ने उसे मारने की कोशिश की तब भगवान् विष्णु ने एक अधिक मास यानी कि मलमास की उत्पत्ति की और नरसिंघ अवतार लेकर हिरण्यकश्यप को मार दिया।
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अधिक मास में इस बार विशेष संयोग बन रहा है। ऐसा संयोग 160 साल बाद आया है, जब अश्विन मास में अधिक मास का आरम्भ हो रहा है। हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष के समापन के तुरंत बाद शारदीय नवरात्र का आरम्भ हो जाता है। लेकिन इस बार अधिकमास या मलमास की वजह से पितृ पक्ष और नवरात्रि के बीच एक महीने का अंतर है। ऐसा संयोग कई साल बाद आया है और इसके बाद वर्ष 2039 में ऐसा संयोग बनेगा। इस साल संयोग के चलते ही लीप ईयर और आश्विन अधिक मास दोनों एक साथ पड़ रहे हैं।
अयोध्या के जाने माने पंडित श्री राधे शरण शास्त्री जी का कहना है कि लगभग 160 साल बाद ऐसा शुभ संयोग बन रहा है। इसलिए इस महीने में धर्म कर्म का विशेष महत्त्व है। इस माह में पूजा -पाठ को प्राथमिकता दें। ईश्वर की आराधना करते रहें। पुत्र की कामना हेतु व्रत एवं उपवास करें व धन लाभ के लिए भगवान विष्णु की आराधना करें। इस मास में किसी भी पूजन कार्य को करने के लिए किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन इस महीने शुभ कार्यों जैसे शादी -विवाह, घर खरीदना, दुकान का उद्घाटन या फिर गृहप्रवेश जैसे कार्यों को करने की मनाही होती है।
उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखकर भगवान की आराधना करें, हवन एवं पूजन करें अवश्य ही कल्याण होगा।
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Image Credit: wikipedia
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