पितृ पक्ष में कुशा धारण करके क्यों किया जाता है पितरों का श्राद्ध,क्या है इसका महत्त्व

पितृ पक्ष के दौरान तर्पण एवं पिंड दान करते हुए कुशा धारण किया जाता है और यह भी माना जाता है कि कुशा धारण करके ही पितरों को तर्पण स्वीकार्य होता है। आइए जानें क्या है इसका महत्त्व। 

kusha in pitrapaksh main

हिन्दू धर्म के अनुसार पितृ पक्ष के 16 दिनों का विशेष महत्त्व है। इस दौरान पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है एवं उनकी आत्मा की शांति हेतु तर्पण किया जाता है। तर्पण ऐसा कर्म माना जाता है जिससे पितरों को शांति मिलती है। पितरों का श्राद्ध करते हुए लोग अपनी तीसरी उंगली में कुशा धारण करते हैं। पितृ पक्ष में श्राद्ध के दौरान कुशा का उपयोग अनिवार्य माना गया है। इसके बिना तर्पण अधूरा माना जाता है। आइए जानें पितृ पक्ष में तर्पण करते हुए कुशा धारण करने का क्या है धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व -

कुशा का धार्मिक महत्त्व

kusha in pitrapaksh ()

पितृ पक्ष के 16 दिनों में लोग पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे शुभ कार्य करते हैं। मान्यता है कि जो लोग अपने पितरों के लिए पुण्य कर्म करते हैं उनके घर में हमेशा शांति और सुख, समृद्धि बनी रहती है। वहीं ऐसा न करने पर पितर यानी कि पूर्वज रुष्ट हो जाते हैं। पितृ पक्ष में तर्पण करते समय कुशा घास की अंगूठी बनाकर हाथ की तीसरी उंगली में पहनी जाती है। इस अंगूठी को पवित्री कहा जाता है। कुशा धारण करने का अलग ही महत्त्व है। कुशा और दूर्वा दोनों में ही शीतलता प्रदान करने के गुण पाए जाते हैं और कुशा घास को बहुत पवित्र माना जाता है इसलिए पितरों का श्राद्ध करने से पूर्व इसे उंगली में धारण कर लिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कुशा धारण करने से पवित्रता बनी रहती है और तर्पण पूर्ण रूप से स्वीकार्य होता है।

कुशा का वैज्ञानिक महत्त्व

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ऐसा माना जाता है कि हिन्दू धर्म में प्रत्येक वस्तु का अपना एक वैज्ञानिक महत्त्व है। कहा जाता है कि कुशा घास में प्यूरीफिकेशन के गुण पाए जाते हैं जिसकी वजह से ये अत्यंत पवित्र तो होता ही है साथ ही आस-पास के वातावरण को भी पवित्र बनाता है। इसका उपयोग चीज़ों के शुद्धीकरण के साथ कई आयुर्वेदिक औषधियों में भी किया जाता है। कुशा एक प्राकृतिक प्रिज़र्वेटिव की तरह भी काम करता है। इसलिए इससे कई बैक्टीरिया अपने आप नष्ट हो जाते हैं।

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क्या है पंडित जी की राय

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कुशा घास का महत्त्व जानने के लिए हमने अयोध्या के जाने माने पंडित श्री राधे शरण शास्त्री जी से बात की। उन्होंने हमें बताया कि सनातन संस्कृति में कुशा को बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण माना जाता है। मान्यतानुसार पितृ पक्ष में दिया गया जल निर्वाध रूप से देवता, ऋषियों और पितरों को प्राप्त होता है। खासतौर पर जो यज्ञोपवीत धारण करने वाले लोग होते हैं जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य समाज के लिए कुशा धारण करके श्राद्ध तर्पण करना विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण बताया गया है।कुशा में ऐसा गुण पाया जाता है कि जमीन पर बिछाकर बैठने से आकाशीय बिजली का प्रकोप कदापि प्रभावित नहीं कर सकता है।

इसलिए पितरों को जल तर्पण करते समय या फिर पिंड दान करते समय जातक को कुशा अवश्य धारण करना चाहिए। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं साथ ही घर का वातावरण भी शुद्ध होता है।

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Image Credit: unsplash and pixabey

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