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पितृपक्ष में कुशा धारण करके क्यों किया जाता है पितरों का श्राद्ध? इसके महत्व के बारे में नहीं जानती होंगी आप

पितृ पक्ष के दौरान किए जाने वाले तर्पण और पिंड दान का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों को तृप्त करने के लिए इन कर्मों को शुद्धता और पूरे विधि-विधान के साथ करना चाहिए, जिससे पूर्वजों को प्रसन्न किया जा सके। इन्हीं नियमों में से एक नियम है तर्पण करते समय कुशा घास को धारण करना। मान्यता है कि कुशा धारण किए बिना किया गया तर्पण पितरों को स्वीकार्य नहीं होता है। आइए जानें इस प्रथा के कारणों के बारे में। 
Editorial
Updated:- 2025-09-09, 16:16 IST

हिंदू धर्म में पितृपक्ष के 16 दिन अत्यंत पवित्र और विशेष माने गए हैं। इस अवधि में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्म करते हैं जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले और वे तृप्त होकर वंशजों की आशीर्वाद दें। शास्त्रों में बताया गया है कि पितरों की कृपा से घर-परिवार में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है। इसलिए पितृपक्ष का प्रत्येक कर्म अत्यंत श्रद्धा और विधि-विधान से किया जाता है। ऐसे ही श्राद्ध और तर्पण करते समय कुशा घास का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि कुशा को धारण किए बिना पितरों को अर्पित किया गया जल या तर्पण अधूरा होता है। इसी कारण लोग तर्पण करते समय अपनी तीसरी उंगली में कुशा धारण करके ही तर्पण करते हैं। कुशा को शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। आइए पंडित श्री राधे शरण शास्त्री से जानें पितृपक्ष में कुशा धारण करने के महत्व के बारे में।  

कुशा का धार्मिक महत्व

पितृपक्ष के 16 दिनों में लोग पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे शुभ कार्य करते हैं। मान्यता है कि जो लोग अपने पितरों के लिए पुण्य कर्म करते हैं उनके घर में हमेशा शांति और सुख, समृद्धि बनी रहती है। वहीं ऐसा न करने पर पितर यानी कि पूर्वज रुष्ट हो जाते हैं। पितृपक्ष में तर्पण करते समय कुशा घास की अंगूठी बनाकर हाथ की तीसरी उंगली में धारण की जाती है। इस अंगूठी को पवित्री कहा जाता है। कुशा और दूर्वा दोनों में ही शीतलता प्रदान करने के गुण पाए जाते हैं और कुशा घास को बहुत पवित्र माना जाता है इसलिए पितरों का श्राद्ध करने से पूर्व इसे उंगली में धारण कर लिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कुशा धारण करने से पवित्रता बनी रहती है और तर्पण पूर्ण रूप से स्वीकार्य होता है।

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कुशा का वैज्ञानिक महत्व

ऐसा माना जाता है कि हिदू धर्म में प्रत्येक वस्तु का अपना एक वैज्ञानिक महत्व भी है। ऐसे ही कुशा घास में शुद्दिकरण के गुण पाए जाते हैं जिसकी वजह से ये अत्यंत पवित्र तो होती ही है साथ ही आस-पास के वातावरण को भी पवित्र बनाती है। इसका उपयोग किसी भी चीजे के शुद्धीकरण के साथ कई आयुर्वेदिक औषधियों के रूप में भी किया जाता है। कुशा एक प्राकृतिक प्रिजर्वेटिव की तरह भी काम करती है। इससे कई बैक्टीरिया अपने आप नष्ट हो जाते हैं।

क्या है पंडित जी की राय 

कुशा घास का महत्व जानने के लिए हमने अयोध्या के जाने माने पंडित श्री राधे शरण शास्त्री जी से बात की। उन्होंने हमें बताया कि सनातन संस्कृति में कुशा को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यतानुसार पितृपक्ष में दिया गया जल निर्वाध रूप से देवता, ऋषियों और पितरों को प्राप्त होता है। खासतौर पर जो यज्ञोपवीत धारण करने वाले लोग होते हैं जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज के लिए कुशा धारण करके श्राद्ध तर्पण करना विशेष रूप से जरूरी बताया गया है। कुशा में ऐसा गुण पाया जाता है जिसे जमीन पर बिछाकर बैठने से आकाशीय बिजली का प्रकोप कदापि प्रभावित नहीं कर सकता है। 

पितरों को जल तर्पण करते समय या फिर पिंड दान करते समय जातक को कुशा अवश्य धारण करना चाहिए। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं साथ ही, घर का वातावरण भी शुद्ध होता है। 

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FAQ
कुशा से तर्पण कैसे करें?
कुशा से तर्पण करने के लिए, तर्पण सामग्री जैसे काले तिल, अक्षत और फूल एक बर्तन में लें, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें और अपने हाथ में कुश पहनकर पितरों के लिए जल अर्पित करें।
पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध के अनुष्ठान क्या हैं?
श्राद्ध के लिए ब्राह्मण को घर पर बुलाया जाता है और मृत पूर्वज के निमित्त तर्पण किया जाता है और सच्चे मन से उन्हें भोजन कराया जाता है।
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