भारतीय परंपरा के अनुसार दुल्हनों के लिए चूड़ी का महत्व बेहद अधिक होता है। यही कारण है कि शादीशुदा महिलाएं हमेशा अपने हाथों में चूड़ियां पहनती हैं। चूड़ियां न केवल महिलाओं के हाथों की खूबसूरती बढ़ाती हैं, बल्कि यह जीवन के कई रूपों को भी परिभाषित करती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि केवल शादीशुदा महिलाएं ही चूड़ियां क्यों पहनती हैं? क्यों चूड़िया पहनना शुभ माना जाता है। ऐसे ही कई सवालों के जवाब आज हम आपको इस आर्टिकल में देंगे। तो चलिए जानते हैं हिंदू धर्म में चूड़ियों का महत्व।
भारतीय मान्यताओं के अनुसार केवल शादीशुदा महिलाएं ही चूड़ियां पहनती हैं। चूड़ियां दुल्हन के सोलह श्रृंगार का हिस्सा है। साथ ही देवी को भी चूड़ियां ही चढ़ाई जाती हैं। शादीशुदा महिलाएं कांच, सोने या किसी अन्य मेटल से बनी चूड़ियां पहनती हैं। चूड़ियों को पति के लंबे जीवन का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि जब हाथ में से एक भी चूड़ी टूट जाती है तो इसे अशुभ माना जाता है। इसके साथ ही चूड़ियां सौभाग्य और समृद्धि का भी प्रतीक हैं।
आप सभी ने यह जरूर देखा होगा कि होने वाली दुल्हन या शादीशुदा महिलाएं अलग-अलग तरह की चूड़ियां पहनती हैं। दुल्हनों को तेल की मदद से चूड़ियां पहनाई जाती हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार चूड़ियां का संबंध वैवाहिक जीवन में प्रेम और स्नेह से है।
आपने यह बात जरूर नोटिस की होगी कि ज्यादातर राज्यों में दुल्हनें अलग-अलग रंग की चूड़ियां पहनती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है इसके पीछे कारण क्या है। तो चलिए जानते हैं राज्य के अनुसार दुल्हनें किस रंग की चूड़ियां पहनती हैं और क्या है इसका महत्व।
भारत के दक्षिणी क्षेत्र में सोने को शुभ माना जाता है। इसलिए वहां की महिलाएं ज्यादातर सोने से बनी चूड़ियां ही पहनती हैं। वहीं उत्तर भारत की महिलाएं हरे रंग की चूड़ियां पहनती हैं क्योंकि हरा रंग समृद्धि का प्रतीका होता है।
बंगाली शादी के रीति-रिवाज अलग होते हैं। बंगाली दुल्हनों को शंख की चूड़ी और एक लाल मूंगा चूड़ी पहनाई जाती है। जिसे शाखा पोला कहा जाता है। वहीं दुल्हन के ससुराल में जाने पर सास दुल्हन को गोल्ड प्लेटेड आयरन बैंगल गिफ्ट में देती है। सास द्वारा बहु को चूड़ी उपहार में देना भी शुभ माना जाता है।
राजस्थान में मामेरू की रस्म की जाती है, जिसमें दुल्हन का मामा होने वाली दुल्हन को लाल बॉर्डर वाली रेशमी साड़ी के साथ चूड़ा उपहार में देता है। राजस्थानी दुल्हनें अपने हाथों में हाथीदांत से बनी चूड़ी (चूड़ी का इतिहास जानें) या फिर चूड़ा पहनती हैं।
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पंजाब में दुल्हन को चूड़ा पहनाने के लिए रस्म आयोजित की जाती है जिसे चूड़ा सेरेमनी कहा जाता है। चूड़ा सेरेमनी के दौरान पूजा या हवन किया जाता है। पूजा के दौरान 21 चूड़ियों के इस सेट को दूध और गुलाब की पंखुड़ियों से साफ किया जाता है। चूड़ियों को साफ करने के बाद सभी रिश्तेदार चूड़ा को छूते हैं। चूड़ा को रिश्तेदारों के द्वारा छूना दुल्हन के लिए आशीर्वाद माना जाता है। इसके बाद मामा द्वारा दुल्हन को चूड़ा पहनाया जाता है। चूड़ा पहनाने के बाद दुल्हन की कलाई को सफेद कपड़े से ढक दिया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि दुल्हन को शादी के दिन तक चूड़ा नहीं देखना चाहिए।
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महाराष्ट में दुल्हनें हरे कांच से बनी चूड़िया पहनती हैं। लेकिन ये चूड़ियां ऑड नंबर के हिसाब से पहनी जाती हैं। हरे रंग की चूड़ियां नए जीवन, खुशहाली का प्रतीक होती है। महाराष्ट्रीयन दुल्हनें हरी चूड़ियां को सॉलिड गोल्ड की चूड़ी के साथ पहनती हैं, जिसे पट्या कहते हैं। साथ ही कार्व्ड कड़ा को टोड कहा जाता है।
बाजार में लाल रंग से लेकर हरे रंग तक की चूड़िया मिलती हैं। हर रंग की चूड़ी का महत्व अलग-अलग होता है। जैसे लाल रंग की चूड़ी को ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है जबकि हरे रंग की चूड़ियां सौभाग्य और उर्वरता से संबंधित हैं। वहीं पीली चूड़ियों को पहनने से जीवन में खुशियां आती हैं, वहीं सफेद चूड़ियों को जीवन की नई शुरुआत से जोड़कर देखा जाता है। चांदी की चूड़ी शक्ति और सोने की चूड़ी भाग्य का प्रतीक होती हैं।
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