हिंदू धर्म में शादी के समय बहुत सारे रीति-रिवाजों को महत्व दिया जाता है। इन रीति-रिवाजों में कुछ ऐसे भी होते हैं, जो अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों के हिसाब से थोड़ा बहुत अपना स्वरूप बदल लेते हैं। खासतौर पर होने वाली दुल्हन की चूड़ियों से जुड़े रिवाज अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग होते हैं। बंगाली शादियों में भी ऐसी ही एक रस्म होती है 'दोधी मोंगल'। यह रस्म चूड़ियों से जुड़ी हुई होती है। इस रस्म में होने वाली दुल्हन को खास तरह की 'शाखा पोला' चूड़ियां पहनाई जाती हैं। बंगाली शादियों में यह बहुत ही महत्वपूर्ण रस्म होती है और इस रस्म से कई रोचक बाते जुड़ी हुई हैं।
तो चलिए आज हम आपको 'शाखा पोला' चूड़ियां और दोधी मोंगल रस्म के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताते हैं।
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दोधी मोंगल के बारे में जानें
बंगाली शादियों में दोधी मोंगल रस्म शादी वाले दिन सुबह के समय की जाती है। इस दिन सात शादीशुदा औरतें शंख (शंख के लाभ) से बने सफेद कंगन को हल्दी मिले पानी में भिगोती हैं और फिर लाल रंग कोरल से बने कंगन के साथ उसे होने वाली दुल्हन को पहना देती हैं। ऐसा माना गया है कि यह दुल्हन की मां कि तरफ से उसे शादी का तोहफा होता है। इस रस्म के बाद दुल्हन को दही खिलाया जाता है। दही खाने के बाद दुल्हन और दुल्हन के माता-पिता तब तक उपवास रखते हैं, जब तक शादी की सारी रस्में न खत्म हो जाएं।
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शाखा पोला का महत्व
बंगाली शादी में दुल्हन को शाखा पोला कंगन पहना कर मां अपनी बेटी को हमेशा सुखी और पति के वंश को आगे बढ़ाने का आशीर्वाद देती है। यहां पर शाखा यानी सफेद कंगन को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है और पोला यानी लाल रंग के कंगन को खुशी और वंश बढ़ाने का प्रतीक माना जाता है। इसे पति के लिए पत्नी के प्यार के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। इसलिए शादी के बाद हर महिला शाखा पोला कंगन हाथों में पहनती है।
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शाखा पोला की कहानी
ऐसा कहा जाता है कि मछुआरों के पास अपनी बेटी को शादी में देने के लिए ज्यादा पैसे नहीं होते हैं और न ही वह उन्हें बहुत महंगे जेवर खरीद कर दे पाते हैं। ऐसे में बहुत समय पहले किसी मछुआरे ने समुद्र से शंख और कोरल निकाल कर बेटी को शादी में देने के लिए हाथों के कंगन बनाए थे। तब से इस कंगन को 'शाखा पोला' कहा जाता है। आपको बता दें कि बंगालियों में 'शाखा पोला' कंगन को महिलाओं के शादीशुदा होने की निशानी माना गया है।
लोहे के कड़े और परंपरा
'शाखा पोला' कंगन के साथ ही शादीशुदा बंगाली महिलाएं एक लोहे का कड़ा भी पहनती हैं। यह कड़ा वह बाएं हाथों में ही पहनती हैं और शादी के बाद यह लोहे का कड़ा उनकी सास उन्हें तोहफे में देती हैं। 'शाखा पोला' कंगन के साथ लोहे का कड़ा पहनने का महत्व इसलिए भी है ताकि नई-नवेली दुल्हन को किसी की नजर न लग जाए।
रोचक तथ्य
- 'शाखा पोला' कंगन पहनाने की रास्म 300 वर्ष पुरानी है।
- आपको जानकर हैरानी होगी कि 'शाखा पोला' कंगन खरीदते वक्त किसी भी तरह का मोल-भाव नहीं किया जाता है। इसे बहुत अशुभ माना जाता है।
- 'शाखा पोला' कंगन खरीदने के लिए पत्नी कभी भी अपने पति से पैसे नहीं ले सकती है। इतना ही नहीं, पति के साथ 'शाखा पोला' कंगन खरीदने भी नहीं जा सकती है।
- जिस दुकानदार से महिलाएं 'शाखा पोला' कंगन खरीदती हैं, उनसे ही वह उस कंगन को पहनती भी हैं और कंगन पहनने के बाद दुकानदार के पैर छू कर उसका आशीर्वाद भी लेती हैं।
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