संसार में जन्म और मरण ये दो एक ऐसी सच्चाई है, जो तय है और इसे कोई नहीं बदल सकता। जिसने भी इस दुनिया में जन्म लिया है उसकी मृत्यु तय है। हिंदू धर्म में गर्भधारण से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार बनाए गए हैं। इन्हीं संस्कारों को मानते हुए मनुष्यों का जीवन चक्र चलता है। इन 16 संस्कारों में एक संस्कार है अंतिम संस्कार या मृत्यु संस्कार, जिसमें मृतक की तेरह दिन तक पिंडदान से लेकर तेरवी या मृत्युभोज जैसी क्रियाएं शामिल है। इन सभी क्रियाओं को पूरा करने के बाद ही मनुष्य का अंतिम संस्कार संपन्न होता है। बहुत से लोगों के मन में मृत्यु भोज या तेरहवीं भोज को लेकर अक्सर यह सवाल रहता है कि इसे खाना चाहिए या नहीं? ऐसे में चलिए जानते हैं पंडित शिवम पाठक मृत्युभोज को लेकर क्या कहते हैं?
क्या है मृत्यु भोज या तेरहवीं?
मृत्यु भोज या तेरहवीं वह कार्यक्रम है जो मृतक के परिवार वालों के द्वारा आयोजित की जाती है। इस दिन मृतक के परिवार वाले अपने पाटीदार (गोतिया), परिवार, रिश्तेदार, समाज और ब्राह्मणों को भोज करवाते हैं। इस दिन मृतक की स्मृति में उसकी पसंद की सभी चीजें भोज के लिए बनाई जाती है। भोजन बनने के बाद सभी में से थोड़ा-थोड़ा भोजन लेकर दोना और पत्तल में रखा जाता है और उस भोजन को घर के दरवाजे के किनारे मृतक की स्मृति में रखा जाता है, जिसे कुत्ते या गाय आकर खाते हैं।
मृतक की स्मृति में भोजन निकालने के बाद 13 या इससे अधिक ब्राह्मण और मृतक के भांजा और भांजियों को भोजन कराया जाता है। भोजन के बाद दक्षिणा, आभूषण और कपड़े दान किए जाते हैं। जब ब्राह्मण और भांजे-भांजियों का भोज हो जाता है, तब पाटीदार, परिवार, समाज और दूसरे लोगों को भोजन करवाया जाता है।
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मृत्यु भोज करना चाहिए या नहीं?
बहुत से लोगों के मन में यह सवाल आता है कि मृत्युभोज करना चाहिए या नहीं? इसपर महाभारत का एक क्रम है जिसमें यह कहा गया है कि मृत्युभोज करने वाले लोगों की ऊर्जा और पुण्य नष्ट होती है। महाभारत युद्ध (महाभारत युद्ध कथा) होने के पहले भगवान श्रीकृष्ण दुर्योधन के पास संधि का आग्रह करने गए, लेकिन दुर्योधन ने आग्रह ठुकरा दिया। भगवान श्री कृष्ण वहां से चले गए, जिसके बाद दुर्योधन ने भोज आयोजित किया था और उसमें कृष्ण जी को भोजन करने के लिए आग्रह करते हैं। इस पर श्री कृष्ण दुर्योधन से कहते हैं,'सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः' अर्थात जब खिलाने वाले और खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए। वहीं मृत्यु भोज में मृतक के परिवार वाले दुखी होते हैं, वो दुखी मन से भोज करवाते हैं, साथ ही आए हुए लोग भी दुखी मन से आए हुए होता हैं, इसलिए मृत्यु भोज का भोजन नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा हमने अपने पंडित जी से भी इस विषय में पुछा तब, पंडित शिवम पाठक ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार कभी भी क्षत्रियों को ब्राह्मण के घर में भोज नहीं करना चाहिए, क्योंकि क्षत्रियों का दान करने का धर्म है, दान लेने या भोज करने का नहीं। इसके अलावा यदि घर-परिवार या समाज में मृत्युभोज पर बुलाया जाए, तब वहां मृतक को श्रद्धांजलि ( मृतक को श्रद्धांजलि देने का महत्व) देने जरूर जाएं, लेकिन भोज में बैठकर भरपेट खाना नहीं खाना चाहिए, आप थोड़ा बहुत कोई चीज जरूर खा सकते हैं, ताकि परिवार को बुरा न लगे।
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Image Credit: Freepik,samay chakra, opindia.com
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