हिंदू मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष में मृत पूर्वजों के लिए पिंडदान करने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि यह एक दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि देने का अनुष्ठान है। ऐसा माना जाता है कि पिंडदान के बिना मृत आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है और वो इधर उधर भटकती रहती है।
गया और अन्य स्थानों में पिंडदान बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है और ये मुख्य रूप से उस व्यक्ति की संतान या किसी निकट के रिश्तेदार द्वारा ही किया जाता है। पितृ पक्ष वो समय होता है जब मृत पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से प्रसन्न होने पर उन्हें सफल और समृद्ध जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
गरुड़ पुराण के अनुसार यदि मृत व्यक्ति का पिंडदान नहीं किया जाता है तो ये घर के अन्य सदस्यों के लिए भी नुकसानदेह हो सकता है। आइए ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें क्या होता है पिंडदान और इसका क्या महत्व है।
क्या होता है पितृ पक्ष
अश्विन के हिंदू महीने के दौरान एक पखवाड़ा मृत पूर्वजों को समर्पित होता है और इस अवधि को पितृ पक्ष कहा जाता है। यह चरण, जो 16 दिनों तक चलता है इसमें कोई भी शुभ कार्य जैसे शादी, विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे किसी भी अनुष्ठान की मनाही होती है।
पितृ पक्ष का समापन सर्वपितृ अमावस्या के साथ होता है जो मां दुर्गा को समर्पित शारदीय नवरात्रि की शुरुआत का प्रतीक मानी जाती है। पितृ पक्ष से जुड़ी कई मान्यताओं में तर्पण और पिंडदान भी शामिल हैं जो पितरों की शांति के लिए अच्छे माने जाते हैं।
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पिंडदान क्या होता है
पिंडदान किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु के बाद हिंदुओं द्वारा किया जाने वाला एक पवित्र अनुष्ठान है। गरुड़ पुराण के अनुसार स्वर्ग लोक में जाने वाली आत्मा की शांति के लिए यह अनुष्ठान अनिवार्य है। यह मृतकों के लिए सांसारिक आसक्तियों से राहत प्रदान करने और अंतिम मोक्ष पाने के लिए किया जाता है।
पिंडदान मृत पूर्वजों के लिए एक प्रसाद स्वरूप होता है। इसे मुख्य रूप से पके हुए चावल को काले तिल के साथ मिलाकर बनाया जाता है। इस मिश्रण के छोटे-छोटे पिंड या गोले बनाकर पूर्वजों के नाम से चढ़ाया जाता है जिससे पितरों को शांति और मोक्ष मिल सके।
पिंड दान के प्रकार
पितृ दोष निवारण
यह अनुष्ठान उन लोगों के लिए होता है जिनके घर में पितृ दोष होता है। इस पूजा में तर्पण कर्म, ब्राह्मणों को भोजन (पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोज का महत्व) और वस्त्र और पितृ आराधना बड़ी ही विधि विधान के साथ की जाती है।
काल सर्प योग पूजा
इस तरह का पिंडदान उन लोगों द्वारा किया जाता है जिनकी कुंडली में कालसर्प दोष होता है और जो आर्थिक नुकसान से पीड़ित होते हैं और अपने परिवार में सुख समृद्धि बनाए रखने में असफल होते हैं।
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त्रिपिंडी श्राद्ध और पिंडदान
यह अनुष्ठान उन प्रियजनों के उद्धार के लिए किया जाता है जिनकी अप्राकृतिक परिस्थितियों में मृत्यु हो गई है और उनकी आत्मा किसी वजह से अतृप्त है।
पिंडदान का महत्व
पिंड दान एक अत्यंत महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो कई पापों से मुक्ति के साथ पितरों की तृप्ति के लिए किया जाता है। यह अनुष्ठान दिवंगत आत्मा को पुनर्जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त करता है।
पिंडदान आत्मा को सांसारिक भौतिकवादी बंधनों से अलग करने के लिए भी आवश्यक माना जाता है जिससे विकास की यात्रा में आगे बढ़ा का सके। ऐसी मान्यता है कि यदि पिंडदान नहीं किया जाता है तो पितरों की आत्मा दुखी और असंतुष्ट रहती है।
पुराणों के अनुसार पिंड दान दिवंगत आत्मा को ज्ञान दिखाने में मदद करता है और उन्हें मोक्ष की ओर ले जाता है। यह संस्कार परिवार के सुख, समृद्धि के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
पिंडदान कौन कर सकता है
शास्त्रों की मानें तो मृत व्यक्ति को स्वर्ग का मार्ग उसका पुत्र ही दिला सकता है। इसलिए मान्यता है कि पुत्र को ही श्राद्ध (श्राद्ध के कितने प्रकार होते हैं) और पिंडदान का पहला हक है। पुत्र न होने पर परिवार के अन्य किसी रिश्तेदार या पंडित के द्वारा ही पिंडदान हो सकता है।
वैसे धर्म की मानें तो पिता का श्राद्ध बेटे के द्वारा ही होना चाहिए। बेटा न होने पर पिंडदान का हक़ पत्नी को भी दिया गया है और पत्नी की अनुपस्थिति में भाई या कोई करीबी यह अनुष्ठान कर सकता है।
यदि मृत व्यक्ति के एक से अधिक पुत्र हैं तो पिंडदान सबसे बड़े पुत्र को ही करना चाहिए। यदि दिवंगत का बेटा भी नहीं है तो उसका पिंडदान और श्राद्ध पोते के द्वारा भी किया जा सकता है।
इस प्रकार हिन्दू धर्म में पिंडदान का विशेष महत्व बताया गया है और विधिपूर्वक किया गया श्राद्ध आत्मा की मुक्ति का द्वार खोलता है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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