(These warriors of mahabharata were killed by cheating) द्वापर युग में धर्म की रक्षा करने के लिए महाभारत का युद्ध हुआ था। यह युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ था। इसलिए इसे कुरुक्षेत्र का युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध में सबसे बड़ी भूमिका भगवान श्रीकृष्ण ने निभाई थी। इस युद्ध की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें भगवान कृष्ण ने स्वयं अर्जुन के सारथी बने थे। यह युद्ध कुल 18 दिनों तक चला। इस युद्ध में कई चीजें ऐसी हैं, जिन्हें विस्तार से पढ़ने की आवश्यकता है। अब ऐसे में इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं कि महाभारत युद्ध में किस महायोद्धा की छल से मृत्यु हुई थी।
इस महायुद्ध को हुए हजारों साल बीत गए, लेकिन कहते हैं कि आज भी कुरुक्षेत्र की जमीन योद्धाओं के लहू से लाल है। धर्म और अधर्म के इस युद्ध में धर्म की जीत के लिए कई महान योद्धाओं को छल और युद्ध के नियम के विरुद्ध जाकर मार डाला गया। क्योंकि युद्ध का केवल एक ही नियम जीत होता है। इसके लिए सारे नियम भुला दिए जाते हैं।
योद्धाओं में श्रेष्ठ भीष्म छल से मारे गए
महाभारत के महायुद्ध में सबसे बुजुर्ग और सभी योद्धाओं में श्रेष्ठ भीष्म थे। वह अपनी राजभक्ति के कारण कौरवों के साथ युद्ध में भाग लेने का निर्णय किया और पांडवों के विजय में सबसे बाधक भी बने थे। इन्हें पराजित किए बिना महाभारत के युद्ध में पांडवों का विजयी होना मुश्किल था। ऐसा इसलिए क्योंकि भीष्म कौरवों के सेनापति के तौर पर उनके ढाल बने हुए थे। इस युद्ध में 10 दिनों तक पांडवों की सेना का संहार करते रहे। ऐसी स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण (श्रीकृष्ण मंत्र) की सलाह से अर्जुन अपने रथ पर शिखंडी को लेकर आए। जो न तो पुरुष थे और न स्त्री। भीष्म शिखंडी को एक स्त्री मानते थे और पांडवों को इस रहस्य के बारे में पता था। भीष्म के स्त्री पर अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाने की प्रतिज्ञा का लाभ उठाते हुए अर्जुन ने युद्ध के दसवें दिन भीष्म को बाणों से छलनी कर दिया था और भीष्म बाणों की शैय्या पर लेटे-लेटे अंत तक युद्ध को देखते रहे।
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गुरु द्रोणाचार्य छल से मारे गए
भीष्म के बाद कौरवों के सेनापति द्रोणाचार्य बनें। ये कौरव और पांडवों के गुरु थे। भीष्म के जैसे ही पांडवों के मार्ग में बड़े बाधक बने हुए थे। इन्हें भी युद्ध में पराजित कर पाना बेहद मुश्किल था। ऐसा माना जाता है कि द्रोणाचार्य को केवल उनका शोक ही मार सकता है। ऐसे में पांडवों ने द्रोणाचार्य के साथ एक छल किया। भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी को मार दिया और द्रोणाचार्य के पास जाकर कहने लगे कि मैंने अश्वत्थामा का वध कर दिया। बता दें, अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र का भी नाम था। द्रोणाचार्य को भीम की बात पर भरोसा नहीं था।
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इसलिए उन्होने धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा कि क्या मेरा पुत्र अश्वत्थामा मारा गया ? इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि अश्वत्थामा मारा गया, लेकिन यह नर भी हो सकता है और हाथी भी। इस दौरान जब युधिष्ठिर यह कह रहे थे उस समय भगवान श्रीकृष्ण (श्रीकृष्ण भोग) ने शंखनाद कर दिया। जिससे द्रोणाचार्य बात को सही से सुन नहीं पाए और शोकाकुल होकर अपने अस्त्र-शस्त्र रख दिए। इसी मौके का फायदा उठाकर द्रौपदी के भाई ने द्रोणाचार्य का वध कर दिया।
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